रक्तदान के जरिए बचा ली जरूरतमंदों की जिंदगी
कारगिल युद्ध में दुश्मन से लोहा लेते वक्त घायल हुए देश के वीरों को देखा तो उनकी मदद के लिए सहसा ही आगे आए। घायल सैनिकों को रक्त की जरूरत थी तो स्वयं रक्तदान किया और अपने कई मित्रों से भी यह पुण्य कार्य कराया। तब से खून की जरूरत समझ में आई तो लगातार रक्तदान कर लोगों कि जिदगी बचाने में जुटे गए।
प्रशांत द्विवेदी, फर्रुखाबाद
कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मन से लोहा लेते वक्त घायल देश के वीरों की पीड़ा और जरूरत समझी। रक्तदान के लिए आगे आए और कई अन्य लोगों को भी प्रेरित किया। खून की जरूरत समझ आई तो इसी पहल में जुट गए। बीस साल में ये पूर्व सैनिक रक्तदान के जरिए तमाम जरूरतमंदों की जिंदगी बचा चुके हैं।
मोहम्मदाबाद कोतवाली क्षेत्र के गांव सहसापुर के मूल निवासी 61 वर्षीय धीरेंद्र सिंह राठौर 12 जनवरी 1979 में सेना में भर्ती हुए थे। 31 दिसबंर 1996 को रिटायरमेंट के बाद शहर की आवास विकास कालोनी में परिवार समेत रहने लगे। वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध छिड़ा। इस दौरान तमाम सैनिक दुश्मन की गोली से घायल हुए तो उन्हें खून की जरूरत पड़ी। ऐसे में पूर्व सैनिक धीरेंद्र ने खुद तो रक्तदान किया ही अपने दोस्तों और सहयोगियों से भी 15 यूनिट रक्तदान कराया। लोहिया अस्पताल के ब्लड बैंक से इसे जवानों के लिए भेजा गया। इसके बाद से ही धीरेंद्र सिंह रक्तदान के लिए लोगों को प्रेरित करने में जुट गए। 20 साल में अब तक वह खुद 38 बार रक्तदान कर चुके हैं। उन्होंने वर्ष 1997 को दिव्यांग कल्याण समिति का गठन भी किया था। यह समिति दिव्यांगों के हक की लड़ाई लड़ती है।
दिव्यांग भी कर रहे रक्तदान
धीरेंद्र सिंह कहते हैं कि रक्तदान से कई लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है। ऐसे में दिव्यांगों को भी रक्तदान का महत्व बताया। अब दिव्यांग भी इस पहल में शामिल हैं और निस्वार्थ भाव से रक्तदान करते हैं।
कई बार हो चुके हैं सम्मानित
धीरेंद्र सिंह कई बार सम्मानित हो चुके हैं। इसके अलावा जनपद कन्नौज में भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। धीरेंद्र कहते हैं अगर कोई भी जरूरतमंद उनसे संपर्क करता है तो उसे खुद या किसी दूसरे से खून जरूर दिलवाते हैं।
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