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किसानों के लिए नहीं खुल सके ग्रामीण अवस्थापना केंद्र

मंडी समिति ने करोड़ों रुपयों की लागत से वर्ष 2013-14 में गांव में किसानों की सुविधा के लिए ग्रामीण अवस्थापना केंद्रों का निर्माण कराया था। यह केंद्र शासन के आदेश पर साधन सहकारी समितियों के पास बनाए गए थे। बाद में नीलामी प्रक्रिया शुरू होते ही विवाद हो गया। सहकारिता विभाग ने केंद्रों पर स्वामित्व का दावा ठोंक दिया। इसी के बाद केंद्र किसानों के लिए नहीं खुल सके। कई स्थानों पर असरदार लोगों ने दुकानें हथिया लीं। नीलामी चबूतरों पर ग्रामीण ताश-पत्ते खेलकर दोपहरी काटते हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 21 Apr 2019 10:48 PM (IST)Updated: Sun, 21 Apr 2019 10:48 PM (IST)
किसानों के लिए नहीं खुल सके ग्रामीण अवस्थापना केंद्र
किसानों के लिए नहीं खुल सके ग्रामीण अवस्थापना केंद्र

जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : मंडी समिति ने करोड़ों रुपये की लागत से वर्ष 2013-14 में गांव में किसानों की सुविधा के लिए ग्रामीण अवस्थापना केंद्रों का निर्माण कराया था। यह केंद्र शासन के आदेश पर साधन सहकारी समितियों के पास बनाए गए थे। बाद में नीलामी प्रक्रिया होने पर विवाद हो गया। सहकारिता विभाग ने केंद्रों पर स्वामित्व का दावा ठोंक दिया। इसके बाद केंद्र किसानों के लिए नहीं खुल सके। कई स्थानों पर असरदार लोगों ने दुकानें हथिया लीं। नीलामी चबूतरों पर ग्रामीण ताश-पत्ते खेलते दिखते हैं।

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सपा सरकार के दौरान ग्रामीण अवस्थापना केंद्र (एएमएच) का निर्माण कराने का निर्णय लिया गया था। सातनपुर मंडी क्षेत्र में गांव बरुआ, बुढ़नामऊ व अमृतपुर में यह केंद्र बनाए गए थे, जिसके तहत 13 दुकानें बनाई गई थीं। केंद्रों में दुकानों के अलावा नीलामी चबूतरे बनाए गए थे। जिनमें टीनशेड डाला गया था। इसके अलावा मोहम्मदाबाद मंडी क्षेत्र में 5, कायमगंज क्षेत्र में नौ एवं कमालगंज क्षेत्र में भी यह केंद्र खोले गए थे। शासन के आदेश पर इन केंद्रों का निर्माण साधन सहकारी समितियों के निकट कराया गया था। शासन की मंशा थी कि अवस्थापना केंद्रों में बनी दुकानें किसानों को आवंटित की जाएंगी। एक दुकान की लागत करीब तीन लाख रुपये थी। जबकि शासन ने नीलामी में जमा होने वाली राशि 30 हजार 500 रुपये रखी थी। वर्ष 2015 में मंडी समिति ने दुकानों की नीलामी की। कुछ दुकानें नीलाम हो गईं, लेकिन उनकी धनराशि जमा नहीं हो सकी। इसी बीच सहकारिता विभाग ने आपत्ति लगा दी। कहा, दुकानें उनकी भूमि पर बनी हैं, इस कारण नीलामी का अधिकार उन्हें है। देखरेख भी सहकारिता विभाग ही करेगा। मजे की बात यह है कि नीलामी का रुपया जमा न होने के बावजूद लोगों ने जोड़तोड़ कर कुछ दुकानों पर अपने ताले डाल लिए। दुकानें निजी उपयोग में लायी जा रही हैं। शहर से सटे गांव बुढ़नामऊ में 4 दुकानें बनी हैं। जिनमें 2 दुकानों पर असरदार लोगों के ताले पड़े हैं। दो दुकानें सहकारिता विभाग के पास बताई गई हैं। नीलामी चबूतरों का भी कोई उपयोग नहीं हो रहा। ग्रामीण ताश खेलकर वहां दोपहरी काटते हैं। ग्रामीण अवस्थापना केंद्रों का निर्माण किसानों की सुविधा के लिए कराया गया था। इसमें मंडी समिति का पैसा लगा था। नीलामी प्रक्रिया के दौरान ही सहकारिता विभाग ने आपत्ति उठा दी। इससे अपने जिले में ही नहीं प्रदेश स्तर पर कहीं भी नीलामी का पैसा जमा नहीं हो सका और अवस्थापना केंद्र बंद ही रह गए। इसके बाद इस पर अब तक कोई निर्णय नहीं हुआ। केंद्रों पर बनी दुकानों की चाबियां भी मंडी परिषद के पास नहीं हैं। इस संबंध में वरिष्ठ विभागीय अधिकारियों को भी विस्तृत जानकारी है।

शिव कुमार राघव, सचिव, सातनपुर मंडी


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