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लेखपालों के बस्ते में डंप हो गया वरासत दर्ज करने का आदेश

जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : प्रदेश शासन निर्विवाद भूमि व अन्य संपत्तियों की वरासत एवं पट्टेदारों

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 Sep 2018 05:04 PM (IST)Updated: Fri, 14 Sep 2018 05:04 PM (IST)
लेखपालों के बस्ते में डंप हो गया वरासत दर्ज करने का आदेश
लेखपालों के बस्ते में डंप हो गया वरासत दर्ज करने का आदेश

जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : प्रदेश शासन निर्विवाद भूमि व अन्य संपत्तियों की वरासत एवं पट्टेदारों को पांच साल बाद संक्रमणीय भूमिधर के तौर पर राजस्व रिकार्ड में दर्ज करने पर जोर दे रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि आदेश पर अमल नहीं हो रहा है। तहसील सदर में ही पट्टेदारों को संक्रमणीय भूमिधर दर्ज करने के लिए करीब 3200 से अधिक मामले लंबित है। जबकि शायद ही कोई गांव हो जहां निर्विवाद वरासत की पत्रावलियां लेखपाल व राजस्व निरीक्षकों के पास न लटकी हों। उनमें सौदेबाजी के बाद ही कार्रवाई होती है।

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प्रमुख सचिव सुरेश चंद्रा ने 20 फरवरी को जिलाधिकारियों को पत्र लिखकर निर्देश दिया था कि वरासत के निर्विवाद मामले व जिन पट्टेदारों को भूमि मिले पांच साल हो गए हों, उन्हें संक्रमणीय भूमिधर के तौर पर राजस्व अभिलेखों में अंकित करें। इस संबंध में अभियान चलाने और लेखपालों, राजस्व निरीक्षकों, नायब तहसीलदार, तहसीलदार व एसडीएम को शपथपत्र देने को कहा था। इसमें उन्हें यह घोषणा करनी थी कि उनके क्षेत्र में निर्विवाद वरासत व संक्रमणीय भूमिधर का एक भी प्रकरण लंबित नहीं है। साथ ही मुख्य सचिव के पत्र में साफ आदेश था कि अभियान के अंत में एक से 15 मई 2018 तक डीएम सहित सभी संबंधित अफसरों को राजस्व ग्रामों में जांच करवाकर यह सुनिश्चित करना था कि कोई मामला छूट तो नहीं गया है। इस संबंध में कोई शिकायत मिले तो कर्मचारी व अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जाए, लेकिन प्रमुख सचिव का आदेश भी लोगों को राहत नहीं दे सका। वरासत के मामले बड़ी तादाद में सालों लटके हैं। मुख्य बात यह है कि वरासत के मामलों की पत्रावलियां राजस्व निरीक्षक व लेखपालों के पास ही अटका ली जाती हैं, ताकि उनका रिकार्ड ही न मिल सके। संक्रमणीय भूमिधरी के 3200 से अधिक पत्रावलियां वर्षों से लंबित है। तहसीलदार सदर प्रदीप कुमार ने बताया कि प्रमुख सचिव के आदेश पर अमल करने का प्रयास चल रहा है। पट्टेदारों की पत्रावलियां नहीं मिल रही है। इससे समस्या आ रही है। पत्रावली खोजी जा रही है। वर्ष 1974 से पहले पट्टे की पत्रावलियां बनती ही नहीं थी।


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