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पुलिस की ढिलाई से लटकी हैवानों की सजा

जनपद में बालिकाओं व किशोरियों के साथ दुष्कर्म छेड़छाड़ व हत्या आदि के लगभग 550 मुकदमे लंबे समय से न्यायालय में विचाराधीन चल रहे हैं। अधिकांश मुकदमों में पुलिस की लचर पैरवी से उनकी सुनवाई समय से नहीं हो पा रही है। इस वर्ष जनवरी से लेकर अब तक न्यायाधीश ने 22 मुकदमों में फैसला सुनाया जिसमें आठ अभियुक्तों को सजा व जुर्माने से दंडित किया गया। कुछ माह से न्यायालय को अधिकार न मिल पाने से 22 मुकदमों की सुनवाई पूरी होने के बाद भी फैसले का इंतजार है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 06 Dec 2019 11:15 PM (IST)Updated: Sat, 07 Dec 2019 06:07 AM (IST)
पुलिस की ढिलाई से लटकी हैवानों की सजा
पुलिस की ढिलाई से लटकी हैवानों की सजा

जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद :

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हैदराबाद दुष्कर्म कांड के आरोपितों के एनकाउंटर के बाद देश भर में बहस गर्म है कि हैवानों को सजा का तरीका क्या हो। भले इस मुद्दे पर राय बंटी हुई नजर आती हो, मगर एक बिंदु पर जाकर स्वर मिलते हैं कि सजा जल्द से जल्द दी जाए। कानूनी प्रक्रियाओं में इंसाफ के लिए इंतजार लंबा न हो। मुकदमों की जल्द सुनवाई करके सजा दी जाए। जिले में भी तमाम मामले में हैं जो जाने कब से फैसला और सजा सुनाए जाने की प्रतीक्षा में वर्ष दर वर्ष घिसट रहे हैं। बालिकाओं-किशोरियों के साथ दुष्कर्म, छेड़छाड़ व हत्या आदि के 550 मुकदमे लंबे समय से न्यायालय में विचाराधीन चल रहे हैं। कई तो तीन-चार या पांच साल से लंबित हैं। वजह यह कि अधिकांश मुकदमों में पुलिस की लचर पैरवी से सुनवाई समय से नहीं हो पा रही है। जनवरी 2019 से लेकर अब तक 22 मुकदमों में फैसला हो पाया है। इनमें आठ अभियुक्तों को सजा और जुर्माने से दंडित किया गया।

पाक्सो अधिनियम की पैरवी कर रहे अपर जिला शासकीय अधिवक्ता तेज सिंह राजपूत ने बताया कि पुलिस अधिकांश मुकदमों में समय से गवाह पेश नहीं कर पा रही है। न्यायालय से कई बार नोटिस जारी कर गवाह बुलाने के लिए कहा जाता है। इसके बावजूद गवाह नहीं आने पर वरिष्ठ अधिकारियों को पत्र भेजने पड़ते हैं। उन्होंने बताया कि लगभग 550 मुकदमे विचाराधीन चल रहे हैं। 22 मुकदमों की सुनवाई पूरी हो चुकी है। जल्द ही इन पर फैसला आने की उम्मीद है। इसके अलावा इस वर्ष 22 मुकदमों में फैसला सुनाया जा चुका है।

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सुनवाई के दौरान मुकर जाते अधिकांश गवाह

मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस न्यायालय में आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट तो दाखिल करती है, लेकिन सुनवाई के दौरान अधिकांश गवाह मुकर जाते हैं। इससे आरोपित साक्ष्य के अभाव में बरी हो जाते हैं। गवाहों को न्यायालय में सुरक्षित लाने व ले जाने के लिए सुरक्षा भी उपलब्ध कराई जाती है। कुछ गवाह आपसी बुराई भलाई व अन्य कारणों से गवाही देने नहीं आते। एडीजीसी ने बताया कि मुकदमों में गवाहों के मुकरने से भी कुछ फैसले आरोपितों के पक्ष में हो जाते हैं।


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