खटारा बसें बढ़ा रहीं यात्रियों का दर्द
रेलवे की अपेक्षा राज्य सड़क परिवहन निगम की बसों का किराया करीब तीन गुना अधिक है। इसके बावजूद रोडवेज बसों में सुविधाओं का अभाव है। हालात यह हैं कि अधिकांश बसें खटारा हैं। बसों के शीशे तक गायब हैं। आवश्यक फर्स्टएड बाक्स तक उपलब्ध नहीं रहता। सर्दी बढ़ने के साथ ही बसों में यात्रा कठिन हो गई है।
जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : रेलवे की अपेक्षा राज्य सड़क परिवहन निगम की बसों का किराया करीब तीन गुना अधिक है। इसके बावजूद रोडवेज बसों में सुविधाओं का अभाव है। हालात यह हैं कि अधिकांश बसें खटारा हैं। बसों के शीशे तक गायब हैं। आवश्यक फर्स्टएड बाक्स तक उपलब्ध नहीं रहता। सर्दी बढ़ने के साथ ही बसों में यात्रा कठिन हो गई है।
रोडवेज बसों का विवरण हर माह निगम मुख्यालय को भेजा जाता है। नियमानुसार 10 लाख किलोमीटर का सफर करने वाली बस निष्प्रयोज्य मान ली जाती है। हाल ही में बने नये नियम के अनुसार बस की उम्र 10 वर्ष होने पर उसे नीलामी के लिए डिपो से वापस बुलाया जा सकता है। स्थानीय डिपो में इन दिनों निगम की 92 बसें संचालित हैं। सात अनुबंधित बसें भी चल रही हैं। करीब 10 बसें उम्र पूरी कर चुकी हैं। इनके शीघ्र नीलामी के लिए वापस जाने की संभावना है। आधे से अधिक बसें देखने में ही खस्ताहाल लग रही हैं। नतीजतन बसों में यात्रियों को धक्का लगाना पड़ता है। किसी की खिड़की के शीशे गायब हैं तो किसी की छत टपकती है। सर्दी में रात्रिकालीन सेवाओं में यात्रियों को खटारा बसों में काफी परेशानी होती है। हल्की बारिश में छतें टपकने लगती हैं। रोडवेज की बसें कहीं भी खड़ी हो जाती हैं। यह हालत तब है जब ट्रेन की अपेक्षा बसों का किराया तीन गुना तक है। शहर के रोडवेज बस स्टेशन से प्रतिदिन 350 से 400 बसें आती-जाती हैं। इन बसों की हालत बहुत अच्छी नहीं है। नियमानुसार हर बस में फर्स्ट एड बाक्स उपलब्ध रहना चाहिए, लेकिन वह उपलब्ध नहीं रहता। डिपो में संचालन का काम देख रहे गौरीशंकर ने बताया कि किराया मुख्यालय से तय होता है। यात्रियों की सुविधा का पूरा ध्यान रखने का प्रयास किया जाता है।