स्वदेसी रंगों से चीनी रेशम में रंग भरने की मजबूरी
जागरण संवाददाता फर्रुखाबाद देश दुनिया में दशकों से पहचान बनाए शहर के कपड़ा कारोबार
जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : देश दुनिया में दशकों से पहचान बनाए शहर के कपड़ा कारोबारी स्वदेसी रंग तो कुछ सालों से इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन एक्सपोर्ट होने वाले दुपट्टा व स्कार्फ के टेबी सिल्क कपड़े का धागा चीन से आयात हो रहा है। चीनी उत्पादों का बहिष्कार किए जाने की मांग बढ़ने के साथ ही छपाई व्यवसायी अब इस समस्या का हल खोजने को एक्सपोर्टरों से बात कर रहे हैं।
शहर का कपड़ा छपाई कारोबार 100 साल से अधिक पुराना है। यहां के कारखानों में छपने वाले दुपट्टा व स्कार्फ फ्रांस, इटली, पेरिस, जर्मनी आदि खाड़ी देशों में सप्लाई किए जाते हैं। स्थानीय कारखाना मालिक दिल्ली, मुंबई, नोएडा के एक्सपोर्टरों से आर्डर लेकर कपड़ा तैयार करते हैं। एक्सपोर्ट होने वाला कपड़ा टेबी सिल्क तमिलनाडु के ई रोड से यहां मंगाया जाता है। इस कपड़े का धागा चीन से आयात होता है, हालांकि अन्य कपड़ा ई रोड में बनता है, इसका धागा भी स्वदेशी है। एकमात्र टेबी सिल्क में ही चीन का धागा लगता है। एक्सपोर्ट का कपड़ा छापने वाले कारखाना मालिक दिनेश साध ने बताया कि सिल्क अपने देश में भी बनती है, जिससे साड़ी व अन्य कपड़े तैयार होते हैं, लेकिन विदेश में इसे पसंद नहीं किया जाता। इसी वजह से एक्सपोर्टर स्कार्फ व दुपट्टा टेबी सिल्क पर ही छपवाने का आर्डर देते हैं। इसमें इस्तेमाल होने वाला धागा महीन होता है। इसके मुकाबले भारतीय सिल्क का धागा रफ होता है। कुछ साल पहले तक चीन के रंग भी छपाई में उपयोग होते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों से वह लोग स्वदेशी रंगों का इस्तेमाल ही अधिक करते हैं। ताजा हालात के चलते चीन के खिलाफ देश में गुस्सा है। वह लोग भी चाहते हैं कि चीनी उत्पादों का बहिष्कार हो। इस संबंध में एक्सपोर्टरों से रायमशविरा कर रहे हैं। विकल्प खोजने का प्रयास किया जाएगा।