Move to Jagran APP

111 रणबांकुरों ने ली मातृभूमि पर प्राण न्योछावर करने की शपथ

राजपूत रेजीमेंट सेंटर की पासिग आउट परेड में शामिल 111 रणबांकुरे शनिवार को देश सेवा में मातृभूमि पर अपने प्राणों तक को न्योछावर करने से पीछे न हटने की शपथ लेकर भारतीय सेना में शामिल हुए। इस अवसर पर डिप्टी कमांडेंट कर्नल नवीन शर्मा ने परेड का निरीक्षण किया और प्रशिक्षण में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले जवानों को पदक लगाकर सम्मानित किया। इस अवसर पर मौजूद रिक्रूट्स के परिजनों को भी पदक भेंट किए गए।

By JagranEdited By: Published: Sat, 19 Oct 2019 11:19 PM (IST)Updated: Sun, 20 Oct 2019 06:09 AM (IST)
111 रणबांकुरों ने ली मातृभूमि पर प्राण न्योछावर करने की शपथ

जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : राजपूत रेजीमेंट सेंटर की पासिग आउट परेड में शामिल 111 रणबांकुरे शनिवार को देश सेवा में मातृभूमि पर अपने प्राणों तक को न्योछावर करने से पीछे न हटने की शपथ लेकर भारतीय सेना में शामिल हुए। इस अवसर पर डिप्टी कमांडेंट कर्नल नवीन शर्मा ने परेड का निरीक्षण किया और प्रशिक्षण में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले जवानों को पदक लगाकर सम्मानित किया। इस अवसर पर मौजूद रिक्रूट्स के परिजनों को भी पदक भेंट किए गए।

loksabha election banner

युद्ध भूमि में विजय या मृत्यु राजपूतों का सर्व धर्म रहा है इनके चरित्र में कायरता का कोई स्थान नहीं है। यही राजपूत रेजीमेंट का ध्येय वाक्य है। 37 हफ्तों के कड़े प्रशिक्षण को सफलतापूर्वक पूर्ण कर शनिवार को भारतीय सेना का अंग बनने वाले 111 रणबांकुरों के लिए अविस्मरणीय बना गया। सदियों से चले आ रहे रवायती अंदाज में यह रिक्रूट पासिग आउट परेड पास कर सैनिक बन गए। डिप्टी कमांडेंट कर्नल नवीन शर्मा ने परेड का निरीक्षण किया। प्रशिक्षण में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले रिक्रूट नवीन (ग्लोरिया ट्रेनिग कंपनी) लोकेंद्र (नौशेरा ट्रेनिग कंपनी) और रवि कुमार (अखौरा ट्रेनिग कंपनी) को क्रमश: प्रथम, द्वितीय व तृतीय पुरस्कार से नवाजा गया। डिप्टी कमांडेंट ने इन रिक्रूटों को पदक भेंट कर सम्मानित किया। यह है राजपूत रेजीमेंट का इतिहास

राजपूतों को योद्धाओं का राजा कहा जाता रहा है। सन 1866 में 16 लखनऊ रेजीमेंट को पहली बार 16 राजपूत के नाम से जाना गया। प्रथम विश्वयुद्ध में परसिया की लड़ाई के बाद इसे बैटल ऑफ ऑनर परसिया से सम्मानित किया गया। सन 1921 में भारतीय सशस्त्र सेना के पुनर्गठन के बाद 16 राजपूत को फतेहगढ़ लाया गया और इसे ट्रेनिग बटालियन बनाया गया। सन 1922 में राजपूत ग्रुप का उदय हुआ और इसे सातवीं राजपूत रेजीमेंट के नाम से जाना जाने लगा। सन 1942 में सातवीं राजपूत रेजीमेंट का नाम बदलकर सात राजपूत रेजीमेंट सेंटर रखा गया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यह भारत का सबसे बड़ा सेंटर था। इसमें रिक्रूट्स की संख्या लगभग 12 हजार के करीब थी। रेजीमेंट के साफे का महत्व

राजपूत रेजीमेंट की वर्दी में साफा काफी महत्वपूर्ण अंग है। वर्ष 1960 में बटालियन कमांडर सम्मेलन के दौरान मैरून रंग का साफा सेरेमोनियल शुभारंभ में पहने पहनने के लिए प्रस्ताव रखा गया, लेकिन इसी रंग की पगड़ी पैराशूट रेजीमेंट की होने के कारण सैन्य मुख्यालय ने इसकी अनुमति नहीं दी आखिरकार नौ साल बाद 24 अक्टूबर 1969 को गहरे लाल रंग के साफे को राजपूत रेजीमेंट के लिए आधिकारिक मान्यता दी गई। तब से आज तक यह सात मुर्री का साफा रेजीमेंट की शान है। एनसीसी कैडेट्स सैन्य हथियारों को देख चकित

इस अवसर पर एनसीसी कैडेट्स के लिए है सैन्य हजारों की प्रदर्शनी लगाई गई सेना के खतरनाक हथियारों को एनसीसी कैडेट्स ने कौतूहल से देखा बच्चों ने सैन्य अधिकारियों से इन हथियारों के बारे में बारीकी से जानकारी भी ली।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.