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जल संचयन की संभावना से युक्त हैं रामनगरी के मंदिर

इन दिनों जिस नव्य अयोध्या के निर्माण की तैयारी चल रही है वह इको फ्रेंडली होगा। इसमें नगर के पुरातन मदिरों के कुएं जल संरक्षण कके जरिए भव्य रूप देंगे।

By JagranEdited By: Published: Thu, 08 Apr 2021 11:32 PM (IST)Updated: Thu, 08 Apr 2021 11:32 PM (IST)
जल संचयन की संभावना से युक्त हैं रामनगरी के मंदिर
जल संचयन की संभावना से युक्त हैं रामनगरी के मंदिर

रघुवरशरण, अयोध्या

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इन दिनों जिस नव्य अयोध्या के निर्माण की तैयारी चल रही है, वह इको फ्रेंडली होगी। स्थानीय परिवेश एवं परिस्थितियां बदलाव की संभावना में सहायक भी हैं। वर्षा जल संचयन (रेन वाटर हार्वेस्टिग) पारिस्थितिकी से अनुकूलन में काफी सहायक माना जाता है। सरयू जैसी विशाल सदानीरा के समृद्ध सान्निध्य के चलते रामनगरी सदैव प्रचुर जलसंपदा से युक्त रही है, पर गत कुछ दशक से जलस्तर नीचे जाने के संकट से रामनगरी के भी कान खड़े होने लगे हैं। अब जबकि अयोध्या विश्व पर्यटन के क्षितिज पर नई पहचान बनाने के साथ 'इको फ्रेंडली' की मिसाल कायम करने को है, तब यहां रेन वाटर हार्वेस्टिग की संभावना नए सिरे से रोशन हो रही है। मंदिरों के प्रशस्त प्रांगण और कूपों की प्रचुरता इस संभावना को बल देने वाली है। बदलते दौर के साथ हालांकि कूपों की उपयोगिता सिमटती जा रही है, इसके बावजूद कुछ कूप ऐसे हैं, जो पवित्र-पौराणिक विरासत के रूप में पूरे प्रयास से अक्षुण्ण रखे गए हैं। जबकि कुछ कूप इसलिए जीवंत हैं कि पवित्र मानते हुए उनके जल से अनिवार्य रूप से संबंधित मंदिरों में विराजे भगवान की सेवा-पूजा की जाती है। न केवल इन कूपों से जल संचयन और जलस्तर को उन्नत बनाए रखने में सहायता मिलती है, बल्कि बड़ी संख्या में ऐसे कूप भी हैं, जो लावारिस होने के बावजूद जल संचयन में सहायक सिद्ध होते हैं। आने वाले दिनों में जब रामनगरी के सुनियोजित विकास पर अमल शुरू होगा, तब ऐसे कूपों की उपयोगिता कहीं अधिक वैज्ञानिक विधि से भी सुनिश्चित होगी। मंदिरों के विशाल प्रांगण जल संचयन के अन्य प्रकल्प के लिए भी सहायक सिद्ध होंगे। जल संचयन के लिए संजीवनी

- सिविल इंजीनियर करुणानिधि के अनुसार आधुनिक भवनों में वर्षा जल संचयन का प्रबंध अनिवार्य शर्त की तरह है और इससे जलस्तर उन्नत बनाए रखने के साथ वर्षा तथा नियमित उपयोग के बाद अवशिष्ट जल का समुचित निस्तारण कहीं अधिक सुगमता से सुनिश्चित होता है। वे कुआं पाटने की प्रवृत्ति से बचने की सलाह देते हैं और कहते हैं कि अव्वल तो इन्हें मौलिक स्वरूप में जीवंत रखना है और यदि इसमें कोई व्यावहारिक दिक्कत आती है, तो यह वर्षा जल संचयन के लिए संजीवनी जैसे हैं।

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पांच सदी से जीवंत है दुखभंजनी कूप

- गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड परिसर में स्थित दुखभंजनी कूप पांच शताब्दी से जीवंत है। पांच सदी पूर्व हरिद्वार से पुरी जाते हुए प्रथम गुरु नानकदेव यहीं ठहरे थे और इसी कूप के जल से उन्होंने लोगों को सभी प्रकार के दुख दूर होने का आशीर्वाद दिया था। गुरुद्वारा के वर्तमान मुख्यग्रंथी ज्ञानी गुरुजीत सिंह ने इस पुरातन कूप को बड़े यत्न से सहेज रखा है। वे कहते हैं, अयोध्या के कुओं-कूपों में वस्तुत: पुण्यसलिला सरयू का दिव्य जल ही अवस्थित है और इन्हें संरक्षित कर घर में दिव्य जल प्राप्त किए जाने के साथ जलस्तर उन्नत बनाए रखने में प्रभावी सहयोग किया जा सकता है।


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