अपने लिए जिये तो क्या जिये तू जी ऐ दिल जमाने के लिए
जिगल बेल की निर्देशिका श्रीमती मंजिला झुनझुनवाला जी से हमारी एक मीटिग हुई हैजिसमे यह निर्णय लिया गया है की जिला अधिकारी साहब से बात कर लिया जाए
स्वच्छ-शुभ्र पर्यावरण जीवन का लक्ष्य
शिक्षक एवं मर्मज्ञ कथाव्यास शिवेंद्र को एक दशक पूर्व यह भान हुआ कि सर्वाधिक अहम सरोकार तो पर्यावरण से जुड़ा है। कथाव्यास के तौर पर वे जहां भी प्रवचन करने जाते, पूर्णाहुति के अवसर पर वहां अनिवार्य रूप से 108 पौधे रोपित कराने लगे। सवेरा परिवार की आगामी योजना एक गांव को गोद लेकर उसे वृहद स्तर पर पक्षियों एवं सुंदर वृक्षों से आदर्श गांव एवं पर्यटन स्थल के रूप में सज्जित करने की है।
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उड़ान परों से नहीं हौसलों से भरी जाती है
जिले की मिल्कीपुर तहसील के ग्राम परसपुर सथरा निवासी श्रवणजीत अपनी जरूरतों से ऊपर उठकर उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के रूप में स्वयं को पूरे समाज की जरूरतों के लिए समर्पित किया। सिलाई के काम से उनके पास जो पूंजी बचती है, उसे वे पौध वितरित करने, पौधरोपण और पौध संरक्षण में लगाते हैं। कोरोना संकट के बीच गिलोय की महत्ता सामने आने पर वे 10 हजार पौधों से युक्त गिलोय की नर्सरी तैयार कर रहे हैं।
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यहां कल्पवृक्ष सहित अनेक दुर्लभ पौधों का है संरक्षण
आचार्य पीठ दशरथमहल बड़ास्थान पीठाधीश्वर बिदुगाद्याचार्य देवेंद्रप्रसादाचार्य धर्माचार्य के रूप में अपनी अहम जिम्मेदारियों के बीच पर्यावरण के प्रति सरोकार का बखूबी इजहार करते हैं। आश्रम में उनके आवासीय प्रखंड के सामने का उद्यान सदियों पुराना है।
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असंभव को संभव बनाया
आज जब बंदरों के आतंक से वन संपदा और उद्यान संरक्षण का रोना आम है, तब बिड़ला धर्मशाला को देखकर लगता है कि यदि संकल्प सच्चा हो तो असंभव को संभव बनाया जा सकता है। करीब पांच बीघा के इस परिसर में प्राचीन वृक्षों की कतार के साथ आधुनिक उद्यान का संयोजन मनोहारी है। इसके पीछे धर्मशाला के प्रबंधक पवन सिंह का सतत प्रयास और वन संपदा के प्रति उनकी गहन अंतर्दृष्टि है।