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कोरोना से जंग के अग्रणी सूरमा बन उभरे विकास

कोरोना के खात्मे की जंग में रामनगरी के जो चुनिदा योद्धा

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 11:18 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 11:18 PM (IST)
कोरोना से जंग के अग्रणी सूरमा बन उभरे विकास
कोरोना से जंग के अग्रणी सूरमा बन उभरे विकास

अयोध्या : कोरोना के खात्मे की जंग में रामनगरी के जो चुनिदा योद्धा सामने आए, विकास श्रीवास्तव उनमें अग्रणी हैं। मूलत: कारोबारी विकास के डीएनए में सेवा-संवेदना का संस्कार है, पर संकट काल में वे अपनी पहचान का अतिक्रमण करते हुए रामनगरी के प्रतिनिधि सेवाधर्मी की भूमिका में सामने आए। इस भूमिका का निर्वहन आसान नहीं था। मदद की जरूरत इक्का-दुक्का लोगों को ही नहीं थी।

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लॉकडाउन के चलते लोगों को घर की चौखट तक सिमट कर रह जाना पड़ा। यह दौर मुट्ठी भर साधन-सुविधा सम्पन्न वर्ग के लिए तो छुट्टी मनाने का सबब बना, पर नित्य रोजी-रोटी की जुगत करने वाला मेहनतकश तबका पाई-पाई का मोहताज हो उठा। गत वर्ष 25 मार्च को लॉकडाउन हुआ और अगले दिन से अकेले रामनगरी में हजारों लोगों की भूख ज्वलंत समस्या बनकर खड़ी हो गई। इस सुरसामुखी समस्या के आगे बजरंगबली के भक्त विकास पूरी ²ढ़ता से सामने आए। इस अवधि में उन्होंने न केवल प्रतिदिन सौ से अधिक लंच पैकेट बांटे, बल्कि पांच किलो चावल, इतना ही आटा, एक किलो दाल, एक किलो चीनी, एक लीटर सरसों का तेल, चायपत्ती, मसाला, आलू आदि से युक्त खाद्यान्न की किट बनवा कर वितरित कराने की मुहिम छेड़ी। अनुमान था कि उनकी यह मुहिम दो-चार दिनों तक चलेगी, पर यह निरंतर आगे बढ़ने के साथ व्यापक होती गई। 21 दिन बाद लॉकडाउन का दूसरा चरण शुरू होने पर आम लोगों के साथ मददगारों की भी परीक्षा शुरू हुई और इस परीक्षा में विकास पूरी तरह से खरे उतरे। सेवा-सहायता की उनकी मुहिम निष्कंप लौ की तरह जारी रही। यह सिलसिला लॉकडाउन के तीसरे चक्र में भी चला। लॉकडाउन का दौर तो थमा, पर जरूरतमंदों को लड़खड़ाती अर्थव्यस्था से निजात मिलने में काफी वक्त लगा और ऐसे में विकास बहुतों की बांह थामे नजर आए। बाजारीकरण के मौजूदा दौर में जब क्षुद्र स्वार्थ के लिए कदम-कदम पर अपना ईमान दांव पर लगाने वाले लोग देखे जाते हैं, तब लोगों का पेट भरने के लिए अपनी जमा-पूंजी के साथ स्वयं को दांव पर लगाने वाले विकास किसी मिसाल से कम नहीं हैं। कोरोना संकट के बीच उन्होंने 50 हजार से अधिक लंच पैकेट वितरित करने के साथ 15 हजार से अधिक खाद्यान्न किट वितरित की। प्रत्येक किट तैयार करने में छह सौ की और लंच पैकेट तैयार कराने में 30 रुपये की लागत आई।

ऐसे में समझा जा सकता है कि सेवा-संवेदना के इस महायज्ञ में विकास ने अपनी कितनी पूंजी समर्पित की होगी। यह अभियान विशुद्ध रूप से कारोबार से अर्जित उनकी खुद की कमाई पूंजी से संचालित हुआ। मदद के नाम पर उन्हें पत्नी रेनू, भाई पवन एवं विशाल सहित मित्रों का भावनात्मक सहयोग जरूर हासिल हुआ और विकास इसे अपनी ताकत मानकर भविष्य में भी स्वयं को ऐसी सेवा के लिए समर्पित करने की ²ढ़ता दर्शाते हैं।


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