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दीपोत्सव से परिभाषित हुए राजनीति के गहन निहितार्थ

श्रीराम से जुड़ी भारतीय अस्मिता का नया प्रतिमान गढ़ विरोधियों के आगे लक्ष्मण रेखा खींचने की तैयारी.

By JagranEdited By: Published: Sat, 14 Nov 2020 06:08 AM (IST)Updated: Sat, 14 Nov 2020 06:08 AM (IST)
दीपोत्सव से परिभाषित हुए राजनीति के गहन निहितार्थ
दीपोत्सव से परिभाषित हुए राजनीति के गहन निहितार्थ

अयोध्या : दीपोत्सव से राजनीति के गहन निहितार्थ परिभाषित हुए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दीपोत्सव के मुख्य शिल्पी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक ऐसी अयोध्या का निर्माण करना चाहते हैं, जो भारतीय अस्मिता का नया प्रतिमान गढ़ने वाली हो। चतुर्थ दीपोत्सव के उद्घाटन अवसर पर मुख्यमंत्री ने इस परिकल्पना का खाका खींचा। हालांकि भविष्य की अयोध्या का सपना दिखाते समय मुख्यमंत्री राजनीतिज्ञ से कहीं अधिक श्रीराम से अनुप्राणित भारतीय मूल्यों, आस्था और आदर्शों के अनुरागी नजर आये। दीपोत्सव की आयोजन समिति से जुड़े अवध विश्वविद्यालय कार्यपरिषद के सदस्य केके मिश्र कहते हैं कि यही आम राजनीति और मुख्यमंत्री की सियासत की धारा का फर्क है, उनके लिए आस्था भी सियासत की भेंट चढ़ती है और गैरिक वसनी साधक के लिए सियासत भी आस्था से अभिषिक्त हो उठती है। मिश्र जैसे भाजपा के प्रशंसकों की अपनी मीमांसा है, पर कोई शक नहीं कि अयोध्या के बहाने मुख्यमंत्री एक ऐसी लक्ष्मण रेखा खींचना चाहते हैं, जिसे पार करना विरोधियों के लिए आसान नहीं होगा। मुख्यमंत्री की इस मुहिम में भाजपा ही नहीं संपूर्ण देश की राजनीति में युगपुरुष की तह स्थापित हो रहे प्रधानमंत्री का भी संरक्षण हासिल है। यह संकेत मुख्यमंत्री के उद्बोधन से प्रत्यक्ष परिलक्षित हुआ। उन्होंने न केवल श्रीराम के साथ प्रधानमंत्री को अपने उद्बोधन के केंद्र में रखा, बल्कि स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री अयोध्या को दुनिया की सबसे खूबसूरत नगरी बनाने के अलावा राम राज्य की परिकल्पना को भी साकार कर रहे हैं। यह महज भविष्य की योजना ही नहीं है, बल्कि इस दिशा में पूरी प्रतिबद्धता से अमल भी हो रहा है। मुख्यमंत्री ने स्वयं पर्यटन विकास से जुड़ी ऐसी अनेक योजनाएं गिनाईं, जो रामनगरी को शिखर का स्पर्श दे रही हैं। मुख्यमंत्री की इस कोशिश को भव्य-दिव्य राममंदिर निर्माण की तैयारियां ठोस आधार भी प्रदान कर रही हैं। मुख्यमंत्री स्वयं भी इस तथ्य से बखूबी वाकिफ हैं और यह याद दिलाना नहीं भूलते कि प्रधानमंत्री के संकल्प और रणनीति की वजह से राम मंदिर के रूप में दुनिया के रामभक्तों का पांच सदी पुराना सपना साकार हुआ है। मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे वशिष्ठभवन के महंत डॉ. राघवेशदास कहते हैं, कोई शक नहीं कि मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने वाले किसी युग पुरुष से कम नहीं हैं और यदि वे राम राज्य की परिकल्पना के अनुरूप 'नहि दरिद्र कोउ दुखी न दीना/ नहि कोउ अबुध न लक्षण हीना/ सब नर करहि परस्पर प्रीती/ चलहि स्वधर्म निरत श्रुति नीती' की स्थापना करने में कुछ हद तक भी कामयाब हुए, तो विरोध की राजनीति उन्हें छू तक नहीं पायेगी।

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