कभी नायक रहे ढांचा ढहाए जाने के आरोपी आज हाशिए पर
मामले में चार जून की तारीख अहम हो गई है। कोर्ट ने इस दिन सभी 32 जीवित आरोपियों को तलब किया है। कोई शक नहीं कि उस समय ढांचा ढहाने के आरोपी मंदिर आंदोलन के नायक बनकर उभरे थे पर आज उनमें से कई हाशिए पर हैं।प्रथम चार्जशीट में जिन 40 लोगों के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किया गया उनमें विनय कटियार पवन पांडेय एवं संतोष दुबे भी शामिल थे। कुछ वर्ष बाद सीबीआई ने नौ लोगों के विरुद्ध एक और आरोप पत्र
अयोध्या : छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा ढहाने के मामले में चार जून की तारीख अहम हो गई है। कोर्ट ने इस दिन सभी 32 जीवित आरोपियों को तलब किया है। कोई शक नहीं कि उस समय ढांचा ढहाने के आरोपी मंदिर आंदोलन के नायक बनकर उभरे थे, पर आज उनमें से कई हाशिए पर हैं। प्रथम चार्जशीट में जिन 40 लोगों के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किया गया, उनमें विनय कटियार, पवन पांडेय एवं संतोष दुबे भी शामिल थे। कुछ वर्ष बाद सीबीआई ने नौ लोगों के विरुद्ध एक और आरोप पत्र दाखिल किया। इनमें डॉ. रामविलासदास वेदांती एवं महंत धर्मदास जैसे मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करने वाले स्थानीय धर्माचार्य थे। विनय कटियार उस समय स्थानीय फैजाबाद लोस क्षेत्र से सांसद होने के साथ मंदिर आंदोलन की युवा ब्रिगेड बजरंग दल के संस्थापक संयोजक थे। वे 1996 और 99 में भी फैजाबाद लोस क्षेत्र से ही भाजपा के टिकट पर सांसद चुने गए। प्रदेश भाजपाध्यक्ष और दो बार राज्यसभा सदस्य के रूप में भी उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। हालांकि हाल के कुछ वर्षों से राजनीतिक तौर पर नेपथ्य में हैं। पवन पांडेय की गणना उस समय शिवसेना के अत्यंत होनहार नेताओं में होती थी। 1991 में वे शिवसेना के टिकट पर पड़ोस की अंबेडकरनगर सीट से विधायक चुने गए थे। दिसंबर 92 की घटना के बाद भी उन्होंने राजनीतिक तौर पर स्थापित होने के लिए पूरा जोर लगाया, पर कामयाबी नहीं मिली। कुछ चुनावों में नजदीकी मुकाबले के बावजूद वे सफल नहीं हो सके। ढांचा ढहाये जाने के 28 वर्ष बाद भी पूरा जोर लगाने के बावजूद उनका राजनीतिक पुनर्वास सुनिश्चित नहीं हो पा रहा है। तीन दशक पूर्व शिवसेना के प्रदेश उप प्रमुख रहे संतोष दुबे को मंदिर आंदोलन का स्थानीय पर्याय माना जाता था, पर वे मंदिर आंदोलन की उस पांत के नेताओं की तरह खुशनसीब नहीं रहे, जो मंदिर आंदोलन के बूते विधान सभा अथवा लोकसभा की शोभा बढ़ाते। धर्मसेना के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में दुबे आज भी अपनी उपस्थिति का एहसास कराते हैं, पर ढांचा ढहाये जाने के समय का नायकत्व उनके लिए मृगमरीचिका से कम नहीं है। मूलत: धर्म प्रचारक डॉ. रामविलासदास वेदांती की गणना मंदिर आंदोलन के अग्रणी वक्ताओं में होती रही। भाजपा नेतृत्व ने उन्हें 1996 एवं 1998 के लोस चुनाव में क्रमश: मछलीशहर एवं प्रतापगढ़ सीट से अपना प्रत्याशी बनाया और वेदांती ने दोनों बार जीत हासिल कर इस अवसर का बखूबी उपयोग किया। इसके साथ ही वेदांती मंदिर आंदोलन की आवाज बराबर बुलंद करते रहे, पर राजनीतिक पुनर्वास की उनकी साध लंबे समय से लंबित है। निर्वाणी अनी अखाड़ा के श्रीमहंत धर्मदास को राममंदिर का संघर्ष विरासत में मिला। वे अभिरामदास उनके गुरु थे, जिन्हें 1949 में ढांचे में रामलला के प्राकट्य प्रसंग का मुख्य सूत्रधार माना जाता है। 1982 में अभिरामदास के साकेतवास के बाद धर्मदास मंदिर की अदालती लड़ाई भी लड़ते रहे हैं। उन्हें उम्मीद थी कि सुप्रीम फैसला आने के बाद रामलला की सेवा के अधिकार का कुछ हक उन्हें भी मिलेगा, पर अपनी अनदेखी से वे आहत चल रहे हैं।