सीता अशोक से रक्षित होगा राम मंदिर
धूलरोधी माने जाने वाले यह वृक्ष राम मंदिर में प्रयुक्त शिलाओं को धूल-हवा से बचाएंगे
अयोध्या : मां सीता लंका की जिस अशोक वाटिका में थीं और अशोक के जो वृक्ष थे, वह वे वृक्ष नहीं हैं, जिन्हें हम अशोक के नाम से जानते हैं। वस्तुत: वह वृक्ष आज सीता अशोक के नाम से जाने जाते हैं और लुप्तप्राय हो चले हैं। यह वृक्ष नये सिरे से प्रासंगिक हैं। सीता अशोक के पौधे न केवल रामजन्मभूमि परिसर में, बल्कि राम मंदिर के चारों ओर लगाए जाएंगे। यह जानना रोचक है कि सीता अशोक वृक्ष उत्तर प्रदेश का राज्य वृक्ष है। इसी वृक्ष के नीचे लंका में मां सीता बैठा करती थीं।
सीता अशोक वृक्ष महिलाओं को शारीरिक व मानसिक ऊर्जा देता है। कुछ आधुनिक शोधार्थियों की मान्यता है कि सीता अशोक सभी प्रकार के शोक और वास्तु दोष को नष्ट करता है। रामजन्मभूमि परिसर को सीता अशोक से सज्जित करने के पीछे मकसद राम मंदिर की आयु बढ़ाने का है। यह वृक्ष लगभग 28 से 30 फीट ऊंचे होते हैं। इन्हें धूलरोधी भी माना जाता है। समझा जाता है कि इससे मंदिर की ओर उड़ने वाली धूल को काफी हद तक रोका जा सकेगा। इससे मंदिर में लगे पत्थर धूल से बचेंगे और उनकी आयु बढ़ेगी।
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विभिन्न प्रांतों में मिलती है मौजूदगी
सीता अशोक की विभिन्न प्रांतों में मौजूदगी मिलती है। इसको बांग्ला में अस्पाल, मराठी में अशोक, गुजराती में आसोपालव और लैटिन भाषा में जोनेशिया अशोका या सराका इंडिका कहा जाता है। सीता अशोक वृक्ष बंगाल व असम की खाड़ी और मुंबई के आसपास भी उगता है। सीता अशोक वृक्ष के ऊपर पुणे विश्वविद्यालय में रिसर्च किया जा रहा है। यही नहीं विश्वविद्यालय में सीता अशोक वृक्ष का पूरा एक बाग भी है। अशोक सामान्य वृक्ष में फूल नहीं आते, पर सीता अशोक वृक्ष में फूल आते हैं।
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रामजन्मभूमि परिसर के लिए सीता अशोक वृक्ष पुणे, बंगाल और असम से मंगाए जाएंगे। विशेषज्ञों का कहना है की सीता अशोक वृक्ष के लगने से राम मंदिर में लगे पत्थरों की आयु लगभग दो सौ वर्ष ज्यादा हो सकती है। रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट इस हिसाब से मंदिर का निर्माण करा रहा है कि वह एक हजार वर्ष तक अक्षुण्ण रहे। ट्रस्ट की इस कोशिश में सीता अशोक का रोपण सहायक बन सकता है। राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कार्यालय प्रभारी प्रकाश गुप्त कहते हैं, यह पौधा बहुत महत्वपूर्ण है और परिसर में इसकी उपस्थिति बड़े महत्व की होगी।