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सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मंदिर समर्थक संतों के उत्साह पर तुषारापात

रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई टाले जाने से मंदिर समर्थकों के उत्साह पर तुषारापात हुआ है। संतों ने इस फैसले के लंबे समय तक टालने पर नाराजगी व्यक्त की है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Mon, 29 Oct 2018 05:04 PM (IST)Updated: Mon, 29 Oct 2018 05:28 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मंदिर समर्थक संतों के उत्साह पर तुषारापात
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मंदिर समर्थक संतों के उत्साह पर तुषारापात

फैजाबाद (जेएनएन)। सुप्रीम कोर्ट में आज रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई टाले जाने से मंदिर समर्थकों के उत्साह पर तुषारापात हुआ है। संतों ने इस फैसले के लंबे समय तक टालने पर नाराजगी व्यक्त की है। वहीं बाबरी मस्जिद के पैरोकार इकबाल अंसारी ने कोई प्रतिक्रिया देने से इन्कार किया है तो सेंट्रल वक्फ बोर्ड के सदस्य मानते हैं कि इसका लाभ राजनीतिक पार्टियां ले सकती हैं।

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रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपालदास ने कहा, हमें उम्मीद थी कि मंदिर निर्माण का मार्ग अदालत के फैसले से प्रशस्त होगा पर अदालत ने जनवरी तक सुनवाई टालकर यह संकेत दिया है कि उससे मंदिर निर्माण की अपेक्षा उचित नहीं है। इसके बावजूद हम मंदिर निर्माण के प्रति उम्मीदजदा हैं और मुझे पूर्ण विश्वास है नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ सरकार के रहते मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होगा।

बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी से जुड़े शीर्ष महंत ज्ञानदास ने अदालत के रुख पर किसी प्रकार की टिप्पणी से इंकार करते हुए कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि मंदिर निर्माण को लेकर बेताबी देशव्यापी है और सभी पक्षों को मंदिर निर्माण से जुड़ी भावना को ध्यान में रखकर शीघ्र पहल की ओर बढऩा होगा। प्रतिष्ठित पीठ रामवल्लभाकुंज के अधिकारी राजकुमारदास ने कहा, कोर्ट का रुख निश्चित रूप से मायूस करने वाला है और ऐसे में हमारी अपेक्षा मोदी सरकार से है कि वह कानून बनाकर मंदिर निर्माण की बाधा दूर करे।

कोर्ट में राममंदिर के पैरोकार एवं नाका हनुमानगढ़ी के महंत रामदास ने कहा कि हिंदू समाज ने मंदिर के लिए अदालत के निर्णय की लंबी प्रतीक्षा की है। अदालत को शायद इस मसले की संवेदनशीलता का अंदाजा नहीं है। ऐसे में नरेंद्र मोदी मोदी सरकार को चाहिए कि वह अविलंब मंदिर निर्माण के लिए कानून पारित करे। यहां के वशिष्ठभवन के महंत एवं मंदिर आंदोलन के नायक रहे पूर्व सांसद डॉ. रामविलासदास वेदांती के उत्तराधिकारीडॉ. राघवेशदास का सुझाव है कि मंदिर का विषय जिस प्रकृति का है, उसके लिए कानून बनाना ही यथेष्ट मार्ग है। दशरथगद्दी के महंत बृजमोहनदास ने कहा, हिंदू समाज की सहिष्णुता की अब और परीक्षा नहीं ली जा सकती और अब एकमात्र रास्ता मंदिर के लिए कानून बनाने का है।

हिंदू समाज के धैर्य की बहुत प्रतीक्षा हुई

विहिप के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा ने कहा, कच्छप गति से बढ़ रही अदालती कार्यवाही हिंदू समाज की धैर्य की बहुत परीक्षा ले चुका है और बेहतर यही है कि अब कानून के माध्यम से मंदिर का निर्माण हो।

भाईचारा की संभावना पर कुठाराघात

मंदिर के लिए जागरण अभियान चलाने वाले भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रांतीय मंत्री बब्लू खान ने कहा, मंदिर निर्माण में देरी हैरान करने वाली है। जब बड़ी संख्या में मुस्लिम मंदिर के समर्थन में आ रहे हैं, तब मंदिर निर्माण की संभावना को नजरंदाज करना भाईचारा की प्रतिष्ठा पर भी कुठाराघात है।

मंदिर निर्माण न होने पर करूंगा आत्मदाह

अक्टूबर माह में मंदिर निर्माण को लेकर 12 दिनों तक अनशन के बाद सुर्खियों में छाए तपस्वीजी की छावनी के महंत परमहंसदास ने कहा कि गेंद सरकार के पाले में है और वह अपने वादे के अनुरूप मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करे। यदि यह संभव नहीं हुआ, तो वे छह दिसंबर से अनशन करेंगे और बात न बनने पर वे आत्मदाह भी कर सकते हैं।

कटियार ने कहा-कांग्रेस का हाथ

भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा पूर्व सांसद विनय कटियार ने कहा कि अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के बार-बार तारीख देने के पीछे कांग्रेस का हाथ है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस नहीं चाहती कि 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले राम मंदिर निर्माण पर कोई फैसला आए। कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल और प्रशांत भूषण के दबाव में बार-बार नई तारीखें दी जा रही हैं।

राजनीतिक पार्टियों को लाभ

इस मामले में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के सदस्य इमराम माबूद खाने ने कहा कि इस तरह सुनवाई टाले जाने का सीधा फायदा राजनीतिक पार्टियां उठा सकती हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में चल रहा यह मुकदमा देश के लिए बहुत अहम है, ऐसे में सुनवाई में देरी होने से केन्द्र सरकार राम मंदिर मुद्दे पर अध्यादेश लाने की कोशिश भी कर सकती है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हालांकि इसकी संभावना बहुत कम है कि केन्द्र सरकार ऐसी कोई गलती करेगी क्योंकि संसद में इस मुद्दे पर बिल लाने को सरकार को अधिकार नहीं है। इमरान माबूद खान ने कहा कि इससे सुन्नी वक्फ बोर्ड कतई निराश नहीं है।

सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड चाहता था कि इस मामले की सुप्रीम कोर्ट प्रतिदिन सुनवाई करे, ताकि सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड पर यह आरोप न लगे कि वक्फ बोर्ड सुनवाई टालना चाहता है। वक्फ बोर्ड अभी भी प्रतिदिन सुनवाई के लिए तैयार है। इमरान माबूद खान ने कहा कि इस मामले में किसी के भी पक्ष में जल्द फैसला हो, जिससे देश में अमन और चैन कायम हो। कोई इसका नाजायज फायदा न उठा सके। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने किस वजह से सुनवाई जनवरी तक के लिए आगे बढ़ा दी है, यह कहना संभव नहीं है। इतना बड़ा मामला है कि इस मामले की सुनवाई में भूमि का मालिकाना हक तय करने के लिए भी अदालत को पांच-छह हजार से ज्यादा कागजातों को फिर से देखना पड़ेगा।

कोर्ट के रुख पर टिप्पणी से इंकार

बाबरी मस्जिद के दोनों स्थानीय मुद्दई ने कोर्ट के रुख पर टिप्पणी करने से इंकार किया। हाजी महबूब ने कहा, सुनवाई टालना कोर्ट का निर्णय है। हालांकि हम आज भी यह चाहते हैं कि विवाद का निर्णय जल्द हो। मोहम्मद इकबाल अंसारी ने कहा, 70 वर्ष से इस विवाद में तारीख दर तारीख लगती रही है और हमें कुछ और इंतजार कर लेना चाहिए। उन्होंने लगे हाथ दोहराया कि कोर्ट का जो भी निर्णय आए वह सभी को मान्य हो।

संसद में नहीं बन सकता कानून

इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज और संविधान के जानकार जस्टिस गिरधर मालवीय का मानना है कि संसद मंदिर निर्माण के लिए कानून नहीं बना सकती। उसे ऐसा करने का अधिकार भी नहीं है, क्योंकि कानून बनाने के भी कुछ नियम हैं और उन नियमों के तहत कम से कम मंदिर निर्माण के लिए कानून तो नहीं बनाया जा सकता।

महंत धर्मदास ने भी सुनवाई टलने पर निराशा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जो लोग पार्लियामेंट में बिल लाकर राम मंदिर निर्माण की बात कर रहे हैं वह गलत हैं। उन्होंने कहा कि यह प्राइवेट सूट है। पार्लियामेंट से कानून बनाकर राम मंदिर की बात करने वाले लोग पागल हो गए हैं।

गौरतलब है कि अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी तक के लिए सुनवाई टाल दी है। इस मामले में सुनवाई के लिए अब जनवरी 2019 में तारीखें तय होंगी। चीफ जस्टिस सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ इस मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। 


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