होली के पांच दिन पूर्व रामनगरी में रंगोत्सव की छटा
होली गुरुवार को है पर रामनगरी में रंगोत्सव की छटा रविवार से ही बिखरी। प्रात नौ बजे बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी से हनुमान जी के निशान के साथ शोभायात्रा निकली। विभिन्न वाद्यों की धुन पर दो दर्जन से अधिक नागा साधु अबीर-गुलाल उड़ाते हुए आगे बढ़े। मार्ग में पड़ने वाले लोग भी अबीर-गुलाल से अभिषिक्त होते जा रहे थे। रंगोत्सव की छटा बिखरते साधुओं में निर्वाणी अनी अखाड़ा श्रीमहंत धर्मदास एवं पार्षद पुजा
अयोध्या : होली गुरुवार को है पर रामनगरी में रंगोत्सव की छटा रविवार से ही बिखरी। प्रात: नौ बजे बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी से हनुमानजी के निशान के साथ शोभायात्रा निकली। विभिन्न वाद्ययंत्रों की धुन पर दो दर्जन से अधिक नागा साधु अबीर-गुलाल उड़ाते हुए आगे बढ़े। मार्ग में पड़ने वाले लोग अबीर-गुलाल से अभिषिक्त होते जा रहे थे। रंगोत्सव की छटा बिखरते साधुओं में निर्वाणी अनी अखाड़ा श्रीमहंत धर्मदास एवं पार्षद पुजारी रमेशदास सहित युवा साधुओं का जत्था शामिल था। उनमें से कई जगह-जगह रुककर पारंपरिक शस्त्रों के संचालन का प्रदर्शन कर रहे थे।
प्रतिवर्ष की तरह फाल्गुन शुक्ल एकादशी के मौके पर हनुमानगढ़ी से निकली शोभायात्रा रविवार को तुलसीदासजी की छावनी, मणिरामदासजी की छावनी, जानकीघाट बड़ास्थान होती हुई पंचकोसी परिक्रमा मार्ग की ओर बढ़ी। इन मंदिरों में हनुमानजी के निशान की पूजा के साथ रंगोत्सव में शामिल साधुओं को होली की भेंट भी दी गई। मणिरामदासजी की छावनी में शोभायात्रा के स्वागत के लिए स्वयं महंत नृत्यगोपालदास उपस्थित हुए। उन्होंने होलिकारों को भेंट के साथ आशीर्वाद भी दिया। पंचकोसी परिक्रमा करती हुई शोभायात्रा अपराह्न सरयू तट तक पहुंची। जहां अबीर-गुलाल से सने साधुओं ने पुण्यसलिला में डुबकी लगाई और वापस हनुमानगढ़ी की ओर लौटे। -------------इनसेट---------- भक्त की विजय का पर्व
- महंत धर्मदास के अनुसार होली अनाचार की ताकत बनी होलिका के खात्मे के साथ हरिभक्त बालक प्रहलाद की विजय की परिचायक है और इस स्मृति में आयोजित जश्न की मुनादी करना संतों का स्वाभाविक कर्तव्य है। ------------------- साढ़े चार सौ वर्ष पुरानी परंपरा
- पुजारी रमेशदास बताते हैं, साढ़े चार सौ वर्ष पूर्व अखाड़ों की स्थापना के साथ हनुमानगढ़ी के संत रंगभरी एकादशी के उपलक्ष्य में हनुमानजी के निशान के साथ शोभायात्रा निकालते रहे हैं। समय बदला पर यह परंपरा कायम है। ---------------------
बसंत पंचमी से ठाकुरजी को लगता है गुलाल
- मधुर उपासना के लिए प्रसिद्ध रामवल्लभाकुंज में विराजे आराध्य विग्रह को वसंत पंचमी से ही गुलाल लगाया जाने लगता है। फाल्गुन पूर्णिमा तक आराध्य के सम्मुख होली के पदों का गायन होता है। पूर्णिमा की शाम से अगले दिन तक रंगोत्सव शिखर पर होता है। रामवल्लभाकुंज के अधिकारी राजकुमारदास के अनुसार होली के भाव में निमग्न होकर भक्त भगवान तक आसानी से पहुंच सकता है। -------------------- रंग डारो न मोपे धनुषधारी
- आचार्य पीठ दशरथमहल बड़ास्थान के संस्थापक रामप्रसादाचार्य पैरों में घुंघरू बांध आराध्य को रिझाने वाले संत रहे हैं। उन्होंने होली को अपने समर्पण का आधार बनाया। उन्होंने होली के अनेक पद भी रचे। होली के मौके पर इन पदों की महफिल सजती है। दशरथमहल के महंत बिदुगाद्याचार्य देवेंद्रप्रसादाचार्य के अनुसार होली के बहाने आचार्यों ने भगवान से सुंदर संवाद कायम किया और यह अत्यंत प्रेरक है। ------------------------
दशरथमहल में फूलों की होली
- रामकोट क्षेत्र के पारंपरिक मंदिरों की श्रृंखला में शामिल दशरथगद्दी में फूलों की होली खेली गई। इससे पूर्व मंदिर में विराजे आराध्य को गुलाल अर्पित कर पांच दिवसीय होलिकोत्सव का आगाज किया गया। फूलों की होली में महंत बृजमोहनदास, महंत बलरामदास, पुजारी राजकुमारदास आदि सहित अनेक संत शामिल हुए।