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रामनगरी में पली-बढ़ी कोवैक्सीन की खोज में शामिल रही डॉ. प्रज्ञा

संस्थान में उपनिदेशक के पद पर तैनात डॉ. प्रज्ञा की टीम ने मार्च माह में मानव के नमूने से कोरोना वायरस को सबसे पहले लैब में टिशू कल्चर पर आइसोलेट किया था। इसके बाद स्वदेशी कोविड कवच एलिसा का निर्माण किया गया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 10:42 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 07:27 PM (IST)
रामनगरी में पली-बढ़ी कोवैक्सीन की खोज में शामिल रही डॉ. प्रज्ञा
रामनगरी में पली-बढ़ी कोवैक्सीन की खोज में शामिल रही डॉ. प्रज्ञा

रमाशरण अवस्थी, अयोध्या

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मानवता के लिए वरदान बनी भारत बायोटेक की जिस कोवैक्सीन ने दुनिया भर में भारत को गौरवांवित किया है, उसे तैयार करने में रामनगरी में पली और पढ़ी डॉ. प्रज्ञा यादव का अहम योगदान है। पुणे के जिस राष्ट्रीय विषाणु संस्थान की लैब में यह वैक्सीन तैयार की गई, उसकी इंचार्ज डॉ. प्रज्ञा यादव हैं। संस्थान में उपनिदेशक के पद पर तैनात डॉ. प्रज्ञा की टीम ने मार्च माह में मानव के नमूने से कोरोना वायरस को सबसे पहले लैब में टिशू कल्चर पर आइसोलेट किया था। इसके बाद स्वदेशी कोविड कवच एलिसा का निर्माण किया गया। इस स्वदेशी किट से यह पता लगाया जा सकता है कि मानव में कोरोना संक्रमण है या नहीं। इसके बाद वैक्सीन की खोज के लिए कई टेस्ट किए गए। आम लोगों को वैक्सीन लगाने से पहले इसका अलग-अलग चरणों में क्लीनिकल ट्रायल किया गया। मानव पर ट्रायल करने से पहले वैक्सीन का प्रयोग जानवरों पर किया गया, जिसमें वैक्सीन को बेहद प्रभावी पाया गया। वैक्सीन विकसित होने के बाद इसके उत्पादन के लिए संस्थान और भारत बायोटेक के बीच एमओयू हुआ, जिसके बाद इसका उत्पादन शुरू किया गया और अब यही कोवैक्सीन भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर की उम्मीद बन गई है। इससे पहले भी डॉ. प्रज्ञा ने कई अहम शोध में भूमिका निभाई है, जिसमें एक यह भी है कि भारतीय चमगादड़ों का वायरस इंसानी मौत का कारण नहीं है।

डॉ. प्रज्ञा का रामनगरी से भी गहरा जुड़ाव है। उन्होंने साकेत महाविद्यालय से बीएससी और डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय से वर्ष 2001 बायोकमेस्ट्री से एमएससी की थी। इसके बाद उनका चयन राष्ट्रीय विषाणु संस्थान में वैज्ञानिक के पद पर हो गया। संस्थान से ही उन्होंने बायोटेक्नालॉजी में पीएचडी की। उनके पिता ध्रुवनाथ यादव उप्र राज्य विद्युत परिषद की टांडा परियोजना(मौजूदा एनटीपीसी) में कार्यरत थे। डॉ. प्रज्ञा मूल रूप से तो गोरखपुर की रहने वाली हैं। वह कहती हैं, अयोध्या को कभी नहीं भूल सकती। साकेत महाविद्यालय व अवध विवि में काफी कुछ सीखने को मिला और ईश्वर की कृपा से ऐसी शोध से जुड़ने का अवसर मिला, जिसका सुखद परिणाम अब पूरी मानवता के लिए वरदान बन गया है।

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मिल चुका है पुरस्कार

डॉ. प्रज्ञा यादव को उनके शोध कार्यों के लिए कई बार पुरस्कृत किया जा चुका है। उन्हें इंडियन वायरोलॉजिस्ट सोयायटी फेलो अवार्ड 2019 से नवाजा जा चुका है। इसके साथ महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उन्हें कोरोना योद्धा के तौर पर भी पुरस्कृत किया था।


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