कार्तिक में परम वैभव पर होता है रामनगरी का सांस्कृतिक सौंदर्य
अयोध्या : यूं तो वर्ष का शायद ही कोई ऐसा माह जो, जब अयोध्या में व्रत और उत्सव न हो, पर कार्ति
अयोध्या : यूं तो वर्ष का शायद ही कोई ऐसा माह जो, जब अयोध्या में व्रत और उत्सव न हो, पर कार्तिक के कहने ही क्या। रामनगरी के सांस्कृतिक सौंदर्य के परम वैभव से साक्षात्कार करना हो तो कार्तिक मास में एक बार अवश्य अयोध्या आइए। निश्चित ही.. उत्सवी, उल्लासी और उत्साही अयोध्या, दोनों बांहें खोलकर आपका स्वागत करती प्रतीत होगी। इसी माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को भगवान राम की वनवास से वापसी हुई थी। इसी उपलक्ष्य में इस दिन को दीपावली के तौर पर प्रतिष्ठा भी हासिल हुई। अयोध्या के 'चितेरे' योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने तो इस सांस्कृतिक विरासत को 'दीपोत्सव' के रूप में नए सिरे से वैश्विक ख्याति मिली।
कार्तिक मास में उत्सवों की शुरुआत कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से 'धनतेरस' के रूप में होती है। इसी दिन से अयोध्या के मंदिरों में दीपावली का उत्सव आरंभ होता है। कई मंदिरों में धनतेरस से लेकर अन्नकूट के दिन तक भगवान को नित्य नए वस्त्र धारण कराए जाते हैं और विशेष भोग भी लगाया जाता है। चतुर्दशी को हनुमानजी की जयंती मनाई जाती है। अयोध्या के मंदिर बजरंगबली के जन्मोत्सव पर सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से गुलजार रहते हैं, जबकि दीपावली के दिन की तो बात की निराली है। अमावस्या को प्रत्येक मंदिर में भगवान का विशेष पूजन होता है और हजारों-लाखों दीपों से अयोध्या के घाट, मंदिर और घर आलोकित रहते हैं। नाका हनुमानगढ़ी के महंत रामदास कहते हैं कि अयोध्या में कार्तिक मास का हर दिन विशेष होता है। प्रख्यात इतिहासकार डॉ. हरिप्रसाद दुबे के मुताबिक ये परंपराएं सदियों पुरानी हैं।
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भगवान को लगता है छप्पन भोग
आमतौर पर परिवा को शुभ कार्यों के लिए निषेध माना जाता है, लेकिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष परिवा रामनगरी के मंदिरों में उत्सव का मौका होती है। इस दिन लगभग हर मंदिर में भगवान को छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग लगता है। ऐसी मान्यता है कि वनवास के दौरान भगवान को अनेक कष्ट सहो पड़े और राजसी भोज से भी वंचित रहे। इसीलिए वनवास से वापसी के ठीक दूसरे दिन (दीपावली का अगला दिन) उनके स्वागत में मंदिरों में 56 प्रकार के व्यंजन बनते हैं। भोज-भजन की यह श्रृंखला सुबह से लेकर देर रात तक चलती रहती है।
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पंचकोसी और 14 कोसी परिक्रमा
कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को रामनगरी की 14 कोसी परिक्रमा होती है, जबकि एकादशी के दिन पंचकोसी परिक्रमा की जाती है। इस परिक्रमा में शामिल होने के लिए देश भर से श्रद्धालु जुटते हैं। लाखों की संख्या में आने वाले श्रद्धालु अयोध्या की अक्षय नवमी को 14 कोस व एकादशी को पांच कोस की परिधि से परिक्रमा करते हैं।
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15 दिन चलता है मेला
अयोध्या में कार्तिक मेला शुक्ल पक्ष की परिवा से लेकर पूर्णिमा तक चलता है। 15 दिन चलने वाले मेले का समापन पूर्णिमा स्नान से होता है। पूर्णिमा में सरयू में स्नान करने के लिए देश भर से श्रद्धालु आते हैं, जबकि इससे पहले दोनों परिक्रमा और उससे पहले यम द्वितीया और डाला छठ में लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान के पूजन व सरयू स्नान को जुटते हैं।
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