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प्रथम गुरु के आगमन से गौरवान्वित है रामनगरी

अयोध्या सिखों के प्रथम गुरु नानकदेव का जन्म तो सुदूर ननकाना साहब में हुआ पर रामनगरी उनसे अछूती नहीं रही। हरिद्वार से पुरी की यात्रा के दौरान प्रथम गुरु ने रामनगरी में धूनी रमायी और लोगों की उपदेश दिया। बात 1499 ई. की है जब 30 वर्षीय युवा गुरु हरिद्वार से जगन्नाथपुरी तक की तीर्थयात्रा के दौरान रामनगरी पहुंचे। यहां उन्होंने पुण्यसलिला के सरयू के तट पर स्थित

By JagranEdited By: Published: Sun, 29 Nov 2020 11:45 PM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2020 11:45 PM (IST)
प्रथम गुरु के आगमन से गौरवान्वित है रामनगरी

अयोध्या : सिखों के प्रथम गुरु नानकदेव का जन्म तो सुदूर ननकाना साहब में हुआ, पर रामनगरी उनसे अछूती नहीं रही। हरिद्वार से पुरी की यात्रा के दौरान प्रथम गुरु ने रामनगरी में धूनी रमायी और लोगों को उपदेश दिया। बात 1499 ई. की है, जब 30 वर्षीय युवा गुरु हरिद्वार से जगन्नाथपुरी तक की तीर्थयात्रा के दौरान रामनगरी पहुंचे। यहां उन्होंने पुण्य सलिला के सरयू के तट पर स्थित ब्रह्मा जी के पौराणिक मंदिर के करीब डेरा जमाया। प्रथम गुरु के अयोध्या आगमन की पुष्टि सिख परंपरा के प्रतिनिधि इतिहासकार भाई संतोष सिंह की कृति 'नानक प्रकाश' एवं भाई मनी सिंह की कृति 'त्वारीख गुरु खालसा' से होती है। यह इतिहास गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड के रूप में सदियों से प्रवाहमान है। 1499 में सरयू के जिस ब्रह्मकुंड घाट पर प्रथम गुरु नानकदेव ने धूनी रमायी थी, उस स्थल पर 1667 ई. में नवम गुरु तेगबहादुर एवं 1671 ई. में दशम गुरु गोविद सिंह मात्र छह वर्ष की अवस्था में पटना से आनंदपुर जाते समय मां गुजरीदेवी एवं मामा कृपाल सिंह के साथ पहुंचे। करीब एक शताब्दी बाद कश्मीर से आये सिख परंपरा के दिग्गज संत बाबा गुलाब सिंह ने गुरुओं की चरण रज से अनुप्राणित पुण्य सलिला सरयू के पावन तट पर गुरुद्वारा का निर्माण कराया और गुरुओं के आगमन से जुड़ी विरासत सहेजी। इसमें बेल का वह प्राचीन वृक्ष भी था, जिसके नीचे बैठ कर प्रथम गुरु ने स्थानीय प्रबुद्ध जनों के साथ सत्संग किया था और वह कुआं भी था, जिसके जल से प्रथम गुरु ने श्रद्धालुओं को आशीर्वाद दिया था। गुरुद्वारा में प्रथम गुरु के साक्षी इस वृक्ष और कुआं के साथ नवम एवं दशम गुरु के आगमन की स्मृति भी क्रमश: उनके खड़ाऊं एवं तीर-खंजर के रूप में अक्षुण्ण है।

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सुप्रीमकोर्ट से भी बयां है प्रथम गुरु का आगमन

- प्रथम गुरु नानकदेव के अयोध्या आगमन और रामलला के दर्शन की प्रामाणिकता सुप्रीमकोर्ट से भी परिभाषित है। कोर्ट में मंदिर मामले के गवाह राजेंद्र सिंह की ओर से गुरु नानकदेव की जीवनी 'नानकसखी' को पेश करते हुए बताया गया कि बाबर के आदेश पर 1528 में जो मंदिर तोड़ा गया, उसमें विराजे रामलला का दर्शन प्रथम गुरु ने 1528 से कुछ दशक पूर्व किया था। सुप्रीमकोर्ट ने रामलला के हक में 1045 पेज के फैसले में अतीत के इस प्रसंग का जिक्र भी किया है।

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गुरुओं की आस्था के केंद्र में रही रामनगरी

- गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड के वर्तमान मुख्यग्रंथी ज्ञानी गुरजीत सिंह के अनुसार सिख गुरुओं की नजर में रामनगरी आस्था की केंद्र रही है। वे न केवल अयोध्या आते रहे, बल्कि रामजन्मभूमि की मुक्ति के संघर्ष में उनके अवदान का स्पष्ट प्रमाण मिलता है। सुप्रीमकोर्ट ने इस प्रमाण को भी स्वीकार किया कि 1859 में सिख निहंगों के जत्थे ने रामजन्मभूमि को स्वतंत्र करा लिया था।


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