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निकल रहा आलू का दम

आलू के रकबे में लगभग छह हजार हेक्टेटर की गिरावट आई है। लगभग 44 हजार हेक्टेअर में आलू की बुआई की गई है। पहले यह 50 हजार हेक्टेअर के करीब रहा। जिले के नौ शीतगृहों की भंडारण क्षमता 5

By JagranEdited By: Published: Thu, 18 Apr 2019 11:29 PM (IST)Updated: Thu, 18 Apr 2019 11:29 PM (IST)
निकल रहा आलू का दम
निकल रहा आलू का दम

अयोध्या : पिछले तीन वर्षों में शायद ही कोई साल ऐसा रहा हो, जिसमें आलू उत्पादकों की बल्ले-बल्ले रही हो। जब आलू की फसल बेचने का समय आता है तो दाम में ऐसी गिरावट आती है कि लागत तो दूर किसानों के पास शीतगृह का भाड़ा अदा करने की स्थिति नहीं होती। ऐसे में कोल्ड स्टोरेज में आलू छोड़ना उसकी मजबूरी होती है। किसान अन्य फसल की और मुड़ने लगा। इसका सबसे बड़ा कारण आलू की प्रोसिग का प्रबंध नहीं होना भी है। लोकसभा चुनाव में किसानों के बीच यह मुद्दा काफी सुर्ख है।

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जिले में कैशक्राप के तौर पर आलू की खेती किसान करते हैं। गन्ने के बाद किसानों की यह पहली पसंद है, लेकिन आलू की खेती से किसान निराश होने लगा। इन चुनौतियों से निपटने का कोई रास्ता किसानों के सामने नहीं है। यही वजह है कि आलू किसानी का रकबा 50 हजार हेक्टेअर से सिकुड़ कर करीब 44 हजार हेक्टेअर पहुंच गया है। इस बार शीतगृहों के सामने ट्रैक्टर-ट्राली की लंबी लाइन भंडारण के लिए देखने को नहीं मिली। न ही भंडारण के लिए उसे कई-कई दिन इंतजार करना पड़ा। उद्यान विभाग आलू के रकबे में गिरावट को स्वीकारता है। आलू की फसल तीन महीने की होती है। आलू का औसत उत्पादन दो सौ क्विंटल प्रति हेक्टेअर है। बोआई से लेकर खुदाई तक उसे तमाम परेशानी उसे झेलनी पड़ती है। मजदूर नहीं मिलते तो बोआई एवं खुदाई के लिए वह मशीन का सहारा लेने लगा है। बोरे से लेकर भंडारण तक की उसे धन की अलग से व्यवस्था करना होता है। इतना सब करने बाद यह तय नहीं है कि लागत निकलेगी। ------------------------ आलू प्रसंस्करण की इकाई जरूरी -राजकीय खाद्य विज्ञान प्रशिक्षण केंद्र है, लेकिन उसमें आलू से आधारित कोई ट्रेड नहीं है। पाककला, बेकरी एवं खाद्य संरक्षण का प्रशिक्षण दिया जाता है। यह डेढ़ वर्ष का डिप्लोमा होता है। रीडगंज में स्थित राजकीय खाद्य विज्ञान प्रशिक्षण केंद्र में ही राजकीय सामुदायिक फल संरक्षण एवं प्रशिक्षण केंद्र में भी आलू आधारित प्रशिक्षण नहीं होता। आचार, मुरब्बा आदि बनाना सिखाया जाता है। इस प्रशिक्षण केंद्र की सच्चाई भी जान लें। इसके दो ट्रेड के लिए प्रशिक्षक नहीं है। राजकीय सामुदायिक फल संरक्षण एवं प्रशिक्षण केंद्र की प्रभारी नसरीन जहां से प्रशिक्षण दिलाया जाता है। वह भी दो महीने बाद सेवानिवृत्त हो जाएंगी। पहले आलू उत्पादक आएं तो.. -राजकीय खाद्य विज्ञान प्रशिक्षण केंद्र में कोई आलू उत्पादक नहीं आता या उसे इस प्रशिक्षण केंद्र की जानकारी नहीं है। आता तो आलू से चिप्स एवं पापड़ बनाने की जानकारी दी जाती। दाम गिरने पर जरूर उसे चिप्स एवं पापड़ तैयार कर बिक्री करने से लाभ होता।

-दयानंद चौधरी, प्रधानाचार्य राजकीय खाद्य विज्ञान प्रशिक्षण केंद्र ------------------------ लागत बढ़ी-आमदनी घटी -आलू उत्पादकों को सही दाम कभी-कभार मिलता है। औसत लागत 80 हजार रुपये प्रति हेक्टेअर है। कोल्ड स्टोरेज में रखने के बाद बाजार भाव न आने पर लागत नहीं निकलती। किसानों का आलू से मोह भंग होने लगा है।

-पंकज वर्मा, कलाफरपुर -------------------- खाद्य प्रसंस्करण इकाई जरूरी

-आलू उत्पादकों की कमाई बढ़ाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण इकाई की स्थापना जरूरी है। बिना इसके आलू उत्पादकों की आमदनी को दोगुना करने का दावा बेमानी है। किसानों के लिए बेहतर सुविधाएं जरूरी हैं। इस ओर ठोस प्रयास होने चाहिए।

-सूर्यकांत पांडेय, सनेथू् -------------------------------- खाली रह गए शीतगृह

-आलू के रकबे में लगभग छह हजार हेक्टेयर की गिरावट आई है। लगभग 44 हजार हेक्टेअर में आलू की बुआई की गई है। पहले यह 50 हजार हेक्टेअर के करीब रहा। जिले के नौ शीतगृहों की भंडारण क्षमता 58,714 मीट्रिक टन है। भंडारण अभी 39,654 मीट्रिक टन है। इससे साफ है कि करीब 18 हजार मीट्रिक टन आलू भंडारण की जगह अभी शीतगृहों में है। उत्पादन का अनुमान 84 हजार मीट्रिक टन का है।

-संजय यादव, उद्यान निरीक्षक अयोध्या


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