निर्मोही अखाड़ा ने कहा, अयोध्या पर अब अपना दावा छोड़े दें मुस्लिम
अयोध्या में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि अयोध्या तो भगवन राम की जन्मस्थली है। बाबरी मस्जिद के मुद्दई हाजी महबूब ने कहा हम तो काफी पहले से चाह रहे थे ।
By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Tue, 21 Mar 2017 01:32 PM (IST)Updated: Tue, 21 Mar 2017 04:31 PM (IST)
अयोध्या (जेएनएन)। राम मंदिर मुद्दे में सुप्रीम कोर्ट की ओर से मध्यस्था की पहल का अयोध्या के दोनों पक्षों ने स्वागत किया है। इलाहाबाद में भी अखाड़ा परिषद से सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को सराहा है।
अयोध्या में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि अयोध्या तो भगवन राम की जन्मस्थली है। इस पर मुस्लिम अपना दावा छोड़ दें। उधर बाबरी मस्जिद के मुद्दई हाजी महबूब ने कहा हम तो काफी पहले से चाह रहे थे कि दोनों पक्ष इस मामले में बैठ कर वार्ता करें और इस मामले का निर्णय हो।
रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद आस्था का प्रश्न है और इस विवाद का हल दोनों पक्षों की आपसी बातचीत से होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस सुझाव का रामनगरी में स्वागत हुआ है। दशकों से मंदिर-मस्जिद विवाद के सौहार्दपूर्ण हल की मुहिम चला रहे हनुमानगढ़ी से जुड़े शीर्ष महंत ज्ञानदास ने कहा, आपसी सहमति मसले के हल का सर्वश्रेष्ठ तरीका रहा है और कोर्ट के ताजा रुख से न केवल ऐसे प्रयास को वैधानिकता मिली है बल्कि उसकी ईमानदारी पर भी किसी को शक नहीं होगा।
कोर्ट के बाहर मामला सुलझना संभव नहीं
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक तथा अपर महाधिवक्ता जफरयाब जिलानी को सुप्रीम कोर्ट का निर्देश रास नहीं आ रहा है। जिलानी ने कहा कि इस प्रकरण पर बातचीत के मामले कई बार फेल हो चुके हैं। इसी कारण से अयोध्या मसले में कोर्ट के बाहर कुछ भी होना संभव नहीं है।
पीढ़ियों से बाबरी मस्जिद के पक्षकार एवं अंजुमन मोहाफिज मकाबिर मसाजिद के इलाकाई सदर हाजी महबूब ने कहा, यह बहुत अच्छी बात है, हमारे प्रयास से यदि मुल्क में अमन-चैन सुनिश्चित हो तो यह हमारे लिए खुशी की बात होगी। बात-चीत से मसला हल होना कठिन भी नहीं है। भास्करदास जैसे कुछ लोग आएं, जो रामजन्मभूमि के पक्षकार हैं और संजीदे हैं। ऐसे प्रयास से उन लोगों को दूर रखना होगा, जो अपनी दुकान चलाकर सांप्रदायिक तनाव पैदा करते हैं।
सदियों से रामजन्मभूमि का उत्तराधिकार बरकरार रखने के लिए प्रयासरत वैरागी संतों की संस्था निर्मोही अखाड़ा के सरपंच महंत भास्करदास के अनुसार सभी चाहते हैं कि समझाैते से मसले का हल हो और यह सौभाग्य का विषय है कि कोर्ट के ताजा रुख के बाद से समझौते की जो कोशिश होगी, उस पर राजनीति का रंग नहीं होगा और उसकी ईमानदारी पर कहीं अधिक लोग विश्वास करेंगे।
बाबरी मस्जिद के एक अन्य पक्षकार एवं बाबरी मस्जिद के मरहूम मुद्दई हाशिम अंसारी के पुत्र मो. इकबाल ने भी सुप्रीम कोर्ट के रुख का स्वागत किया है। उन्होंने कहा, यह झगड़ा खत्म होना चाहिए और इसके लिए बात-चीत बेहतर रास्ता है। उन्होंने याद भी दिलाया कि उनके वालिद हनुमानगढ़ी के शीर्ष महंत ज्ञानदास के साथ मिलकर समझौते से मसले के हल का प्रयास भी करते रहे हैं।
प्रतिष्ठित तिवारी मंदिर के महंत और सुलह-समझौता की विरासत के प्रतिनिधि गिरीशपति त्रिपाठी कहते हैं, कोर्ट के ताजा रुख से मंदिर-मस्जिद विवाद के हल का सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प खुलने के साथ देश की साझी विरासत बुलंद होने की संभावना जगी है। अयोध्या मुस्लिम वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष सादिक अली बाबू भाई ने कहा, हम लोग जस्टिस पलोक बसु के नेतृत्व में दशकों से जिस प्रयास को रंग दे रहे थे, कोर्ट का रुख उसे वैधानिकता प्रदान करने वाला है और इस प्रयास को अंजाम तक पहुंचाकर पूरी दुनिया के सामने भारत राष्ट्रीय एकता एवं भाईचारा की मिसाल पेश कर सकता है।
कानून पारित कर हो मंदिर निर्माण
विहिप के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा के अनुसार हिंदू पक्ष ने वार्ता का सदैव स्वागत किया है पर पुराना रुख दोहराते हुए कहा है कि इस मसले का सर्वश्रेष्ठ हल सोमनाथ की तर्ज पर कानून पारित करा मंदिर का निर्माण करना है।
आपसी सहमति से हो हल
इलाहाबाद में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का स्वागत किया। महंत नरेंद्र गिरि ने कहा के विवाद का हल आपसी सहमति से ही हो सकता है। वह पहले से पहल कर भी रहे हैं। मस्जिद के मुद्दई स्व. हासिम अंसारी से कई बार वार्ता करके सहमति बनाने का प्रयास कर चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने पर कोई एक पक्ष दुखी होगा जो देश व समाज के हित में नहीं होगा। उन्होंने कहा है कि वह दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता कराने और आपस में बातचीत करवाने की पहल खुद आगे बढ़ाएंगे। अगर सुप्रीम कोर्ट के जज मध्यस्थता कराने की पहल करते हैं तो वह भी उसमें उनका साथ देंगे।
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