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इतिहास के लिए पहेली महाराज विक्रमादित्य

विक्रमी संवत 2076 की शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी छह अप्रैल से हो रही है। विक्रमी संवत का प्रणेता भातीय लोककथाओं के नायक उज्जैनी के राजा एवं दो हजार वर्ष पूर्व रामनगरी का जीर्णोद्धार कराने वाले महाराज विक्रमादित्य को माना जाता है। कहानियों-किवदंतियों में जिन विक्रमादित्य से भारतीय वांगमय ओत-प्रोत है वे इतिहास के लिए किसी पहेली से कम नहीं हैं। अधिकांश इतिहासकार विक्रमी संवत के प्रवर्तक राजा का

By JagranEdited By: Published: Tue, 02 Apr 2019 12:08 AM (IST)Updated: Tue, 02 Apr 2019 06:26 AM (IST)
इतिहास के लिए पहेली महाराज विक्रमादित्य
इतिहास के लिए पहेली महाराज विक्रमादित्य

अयोध्या : विक्रमी संवत 2076 की शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी छह अप्रैल से हो रही है। विक्रमी संवत का प्रणेता भारतीय लोककथाओं के नायक उज्जैनी के राजा एवं दो हजार वर्ष पूर्व रामनगरी का जीर्णोद्धार कराने वाले महाराज विक्रमादित्य को माना जाता है। कहानियों-किवदंतियों में जिन विक्रमादित्य से भारतीय वांगमय ओत-प्रोत है, वे इतिहास के लिए किसी पहेली से कम नहीं हैं। अधिकांश इतिहासकार विक्रमी संवत के प्रवर्तक राजा का समीकरण गुप्तवंशीय शासक चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य से स्थापित करते हैं। इसके पीछे चंद्रगुप्त की विक्रमादित्य उपाधि के साथ उनका आर्यावर्त सहित उज्जैन का राजा होना और विक्रम संवत के प्रवर्तक राजा की तरह वैष्णवानुरागी होना है। उनका रामनगरी से संबंध समीकृत है और संभव है कि उन्होंने अयोध्या का जीर्णोद्धार कराया हो पर विक्रमी संवत के प्रवर्तक को चंद्रगुप्त द्वितीय स्वीकार करने में सबसे बड़ी बाधा समय है।

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विक्रमी संवत के प्रवर्तक का समय जहां प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व का है। चंद्रगुप्त द्वितीय का समय चतुर्थ शताब्दी ईस्वी का उत्तरार्ध है। ऐसे में यह असंभव है कि उन्होंने सवा चार सौ वर्ष पूर्व विक्रम संवत का प्रवर्तन किया हो। कतिपय इतिहासकार दक्षिण भारत के शासक गौतमी पुत्र शातकर्णी से उनका साम्य स्थापित करते हैं। शातकर्णी निश्चित रूप से बल-विक्रम, उदारता, चरित्र और शासक के रूप में छाप छोड़ता है पर उसकी उपलब्धि इतनी भी अधिक नहीं है कि उसे विक्रमादित्य की तरह भारतीय परंपरा के महानतम शासकों में शुमार किया जाय। शातकर्णी का विक्रमादित्य नाम अथवा उपाधि सहित उज्जैन अथवा अयोध्या से भी कोई संबंध नहीं ज्ञात होता है। कुछ विद्वान विक्रमादित्य को चंद्रगुप्त द्वितीय के पिता एवं गुप्तवंश के यशस्वी शासक समुद्रगुप्त बताते हैं पर इस मान्यता के पीछे सबसे बड़ा संकट समुद्रगुप्त का विक्रमादित्य नाम अथवा उपाधिधारी होने का कोई संकेत नहीं मिलता।

साकेत महाविद्यालय में प्राचीन इतिहास विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कविता सिंह कहती हैं, विक्रम संवत के प्रवर्तक राजा विक्रमादित्य निश्चित रूप से महानता के पर्याय के रूप में स्थापित हैं पर उनकी पहचान सुनिश्चित करने के लिए समुचित शोध की आवश्यकता है।


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