कार्तिक में शिखर पर होता है रामनगरी का वैभव
रामनगरी में शायद ही कोई ऐसा माह हो जब व्रत और उत्सव न हों पर अयोध्या के सांस्कृतिक सौंदर्य का वैभव देखना हो तो कार्तिक मास में एक बार अवश्य अयोध्या आइए। कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को भगवान राम की वनवास से वापसी हुई थी। यूपी के मुख्यमंत्री और अयोध्या के चितेरे योगी आदित्यनाथ ने इस सांस्कृतिक विरासत को दीपोत्सव के रूप में प्रतिष्ठित किया।
नवनीत श्रीवास्तव, अयोध्या : रामनगरी में शायद ही कोई ऐसा माह हो जब व्रत और उत्सव न हों पर अयोध्या के सांस्कृतिक सौंदर्य का वैभव देखना हो तो कार्तिक मास में एक बार अवश्य अयोध्या आइए। कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को भगवान राम की वनवास से वापसी हुई थी। यूपी के मुख्यमंत्री और अयोध्या के 'चितेरे' योगी आदित्यनाथ ने इस सांस्कृतिक विरासत को 'दीपोत्सव' के रूप में प्रतिष्ठित किया।
कार्तिक मास में उत्सवों की शुरुआत कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से 'धनतेरस' के रूप में होती है। इसी दिन से अयोध्या के मंदिरों में दीपावली का उत्सव आरंभ होता है। चतुर्दशी को हनुमानजी की जयंती मनाई जाती है तो अगले दिन होने वाली दीपावली के दिन की तो बात की निराली है। अमावस्या को प्रत्येक मंदिर में भगवान का विशेष पूजन होता है और हजारों-लाखों दीपों से अयोध्या के घाट, मंदिर और घर आलोकित रहते हैं। आमतौर पर प्रतिपदा को शुभ कार्यों के लिए निषेध माना जाता है, लेकिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा रामनगरी के मंदिरों में उत्सव का मौका होती है। प्रतिपदा को सभी मंदिरों में भगवान को छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग लगता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को रामनगरी की 14 कोसी परिक्रमा होती है, जबकि एकादशी के दिन पंचकोसी परिक्रमा की जाती है। इस परिक्रमा में शामिल होने के लिए देश भर से श्रद्धालु जुटते हैं। कोरोना से पहले 15 दिन चलता था मेला
कोरोना से पहले अयोध्या में कार्तिक मेला शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक चलता था। 15 दिन के मेले का समापन पूर्णिमा स्नान से होता है। पूर्णिमा पर सरयू स्नान करने के लिए देश भर से श्रद्धालु आते थे, जबकि इससे पहले दोनों परिक्रमा और उससे पहले यम द्वितीया और डाला छठ में लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान के पूजन व सरयू स्नान को जुटते हैं। हालांकि, कोरोना की वजह से गत वर्ष कार्तिक मेला नाममात्र ही हुआ था।