Move to Jagran APP

मस्जिद में नमाज नहीं पढऩे वालों के घर में आग लगा दी जाय

बाबरी के पक्षकार खालिक अहमद खान के अनुसार कुरान में तो कहा गया है कि जहां मस्जिद हो, वहां मस्जिद में नमाज न पढऩे वाले के घर फूंक दिए जायं।

By Nawal MishraEdited By: Published: Fri, 28 Sep 2018 05:37 PM (IST)Updated: Fri, 28 Sep 2018 08:03 PM (IST)
मस्जिद में नमाज नहीं पढऩे वालों के घर में आग लगा दी जाय
मस्जिद में नमाज नहीं पढऩे वालों के घर में आग लगा दी जाय

फैजाबाद (जेएनएन)। नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है। मस्जिद में नमाज पढऩा अधिक पुण्यदायी है। मस्जिद अल्लाह का घर है। पैगमबर मोहम्मद साहब ने भी बिना किसी मजबूरी के मस्जिदों के बाहर नमाज पढऩा पसंद नहीं फरमाया है। कुरान में तो यहां तक उल्लेख मिला कि मस्जिद में नमाज न पढऩे वाले के घरों में आग लगा दी जाय। सुप्रीम कोर्ट का इस मसले पर फैसला आने के बाद ऐसी एक नहीं अनेक टिप्पणियां मुस्लिम नेता कर रहे हैं। यह कहना अनुचित है कि नमाज के लिए मस्जिद आवश्यक नहीं है। न केवल मजहबी अकीदे की दृष्टि से बल्कि सुप्रीमकोर्ट के ताजा फैसले के संदर्भ में भी ऐसी दावेदारी बेदम है। 

loksabha election banner

नमाज से जुड़े फैले पर मुस्लिम नेता बोले

  • मस्जिद में नमाज नहीं पढऩे वाले के घरों में आग लगा दी जाय-कुरान
  • समान्य जगह की अपेक्षा मस्जिद में नमाज पढऩा अधिक पुण्यदायी-महबूब
  • सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से मंदिर के मूल विवाद पर कोई फर्क नहीं- हाजी महबूब
  • मस्जिद अल्लाह का घर और इस्लाम मजहब का अभिन्न अंग-कासिम नोमानी
  • बिना किसी मजबूरी के मस्जिदों के बाहर नमाज पढऩा पसंद नहीं-हबीब

नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है 

हेलाल कमेटी के संयोजत एवं बाबरी के पक्षकार खालिक अहमद खान का मानना है कि कोर्ट के ताजा फैसले की मीडिया एवं हिंदू पक्ष गलत व्याख्या कर रहा है। हकीकत तो यह है कि कोर्ट का ताजा फैसला उस बुनियाद को मजबूत करने वाला है, जिस बुनियाद पर मुस्लिम बाबरी की लड़ाई लड़ रहे हैं। बकौल खालिक कोर्ट के ताजा फैसले से यह स्पष्ट हुआ है कि जन्मभूमि विवाद की सुनवाई धार्मिक भावना के आधार पर नहीं बल्कि जमीनी विवाद के तौर पर होगी। कुरान हदीस का उदाहरण देते हुए खालिक कहते हैं, इसमें कोई शक नहीं कि नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है पर जहां मस्जिद हो, वहां मस्जिद में ही नमाज पढ़ी जानी चाहिए। खालिक के अनुसार कुरान में तो यहां तक कहा गया है कि जहां मस्जिद हो, वहां मस्जिद में नमाज न पढऩे वाले के घरों में आग लगा दी जाय।

मस्जिद में नमाज पढऩा कहीं अधिक पुण्यदायी

वे यह भी याद दिलाते हैं कि रसूल-ए-पाक ने मदीना में सबसे पहले मस्जिद की तामीर कराई और इस्लामिक कानून तथा कुरान से यह भी साबित है कि समान्य जगह की अपेक्षा मस्जिद में नमाज पढऩा कहीं अधिक पुण्यदायी है। बाबरी के मुद्दई हाजी महबूब ने भी ऐसा ही संकेत दिया। सुप्रीमकोर्ट के ताजा निर्णय पर टिप्पणी करने से इंकार करते हुए उन्होंने एक ओर मस्जिद को अल्लाह का घर बताया, दूसरी ओर कहा कि ताजा निर्णय से मंदिर-मस्जिद के मूल विवाद पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

सुप्रीम कोर्ट फैसले पर पुनर्विचार करे

सहारनपुर स्थित संस्था  दारुल उलूम के मोहतमिम (वीसी) मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने कहा कि मस्जिद अल्लाह का घर होती हैं। इस्लाम मजहब का अभिन्न अंग हैं। सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। उन्हें पूरा यकीन है कि देश की सर्वोच्च अदालत इंसाफ करेगी। यह मामला मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़ा है, इसलिए इसमें आगे की कार्यवाही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ही करेगा। 

मस्जिदों के बाहर नमाज पढऩा पसंद नहीं 

जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मौलाना हसीब सिद्दीकी ने कहा कि अल्लाह ने मस्जिदों को आबाद करने का हुक्म दिया है। इतना ही नहीं पैगंबर मोहम्मद साहब ने बिना किसी मजबूरी के मस्जिदों के बाहर नमाज पढऩे को भी पसंद नहीं फरमाया है। फतवा ऑन मोबाइल सर्विस के चेयरमैन मुफ्ती अरशद फारूकी ने कहा कि इस्लाम में मस्जिदों की अहमियत है। पैगम्बर मोहम्मद साहब ने भी मक्का छोडऩे के बाद मदीना पहुंचने पर मस्जिद का निर्माण कराया था। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.