तार-तार हो रही फकीरेराम मंदिर की अस्मिता
अयोध्या : सावन के साथ झूलनोत्सव की तैयारी में जहां रामनगरी के मंदिरों का वैभव परिभाषित हो
अयोध्या : सावन के साथ झूलनोत्सव की तैयारी में जहां रामनगरी के मंदिरों का वैभव परिभाषित हो रहा है, वहीं फकीरेराम मंदिर की अस्मिता तार-तार हो रही है। रामजन्मभूमि से कुछ ही फासले पर स्थित फकीरेराम मंदिर का अधिकांश हिस्सा सीआरपीएफ के कब्जे में है। मंदिर में उन साधुओं के लिए जगह नहीं बची है, जो मंदिर में स्थापित विग्रह के पूजन-अर्चन में सहयोगी हो सकते हैं। यह दुर्दशा ढाई दशक पुरानी है। जनवरी 1993 में रामजन्मभूमि परिसर का शासकीय अधिग्रहण किए जाने के बाद से ही अधिग्रहीत परिसर की सुरक्षा में तैनात सीआरपीएफ के जवानों ने मंदिर में डेरा डालना शुरू किया। सीआरपीएफ के जवान सुरक्षा संबंधी शर्तों का हवाला देकर मंदिर से साधुओं को निकालते रहे और कुछ ही वर्षों में वह दिन आया, जब मंदिर में मात्र महंत के लिए जगह बची। तत्कालीन महंत युगल किशोर शरण से अकेले भगवान की नियमित पूजा-अर्चना और भोग-राग संभव नहीं हो सका। इसी वर्ष फरवरी में युगल किशोर शरण चिरनिद्रा में लीन हो गए और उनकी जगह संत समाज ने युगल किशोर शरण के गुरु भाई रघुवर शरण को महंती दी। नवनियुक्त महंत ने जिलाधिकारी से बार-बार गुहार कर मंदिर से सीआरपीएफ का कब्जा हटाए जाने की मांग की पर बात नहीं बनी। नवनियुक्त महंत उन दिनों को याद करते हैं, जब माह भर तक चलने वाले फकीरेराम मंदिर के झूलनोत्सव कल्लू कथिक एवं स्वामी पागलदास सरीखे आला संगीतज्ञ की प्रस्तुति से सुशोभित होता था। मंदिर की करीब पांच सौ बीघा जमीन भी है पर सीआरपीएफ की बंदिश के चलते यह समृद्धि बेमानी साबित हो रही है।