Move to Jagran APP

पूर्व सांसद राजाराम मिश्र ने 70 वर्ष की उम्र में ले लिया राजनीति से संन्यास

अयोध्या जहां एक ओर राजनीति में परिवारवाद तेजी से फलफूल रहा है और तमाम जनप्रतिनिधि अपने पाल्यों के पांव सियासत में जमाने को बेचैन दिखते हैं वहीं यहां एक ऐसे भी सांसद निर्वाचित हुए जिन्होंने सियासत में नैतिकता और सिद्धांतों का साथ नहीं छोड़ा। यह जिक्र है पंडित राजाराम मिश्र का जिन्होंने 70 वर्ष की उम्र में राजनीति को त्याग दिया और साथियों के लिए आगे बढ़ने का रास्ता छोड़ा। यही नहीं उनके परिवारीजन अब भी सियासत से दूर अपनी रुचि के व्यवसाय में लीन हैं। उनकी एक मात्र पुत्री विद्यावती मिश्रा सिविल लाइन स्थित आवास में पुत्रों के साथ रहती हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 11:54 PM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 06:12 AM (IST)
पूर्व सांसद राजाराम मिश्र ने 70 वर्ष की उम्र में ले लिया राजनीति से संन्यास

अयोध्या : जहां एक ओर राजनीति में परिवारवाद तेजी से फलफूल रहा है और तमाम जनप्रतिनिधि अपने पाल्यों के पांव सियासत में जमाने को बेचैन दिखते हैं, वहीं यहां एक ऐसे भी सांसद निर्वाचित हुए, जिन्होंने सियासत में नैतिकता और सिद्धांतों का साथ नहीं छोड़ा। यह जिक्र है पंडित राजाराम मिश्र का, जिन्होंने 70 वर्ष की उम्र में राजनीति को त्याग दिया और साथियों के लिए आगे बढ़ने का रास्ता छोड़ा। यही नहीं उनके परिवारीजन अब भी सियासत से दूर अपनी रुचि के व्यवसाय में लीन हैं। उनकी एक मात्र पुत्री विद्यावती मिश्रा सिविल लाइन स्थित आवास में पुत्रों के साथ रहती हैं। राजाराम मिश्र के दामाद स्वर्गीय जगदीशचंद्र मिश्र सिचाई विभाग में इंजीनियर रहे। उनके तीन पौत्रों में चेस्ट फिजीशियन डॉ. पारितोष मिश्र बहराइच जिला अस्पताल में अधीक्षक हैं। दूसरे विनीत मिश्र हाईकोर्ट लखनऊ में अधिवक्ता और तीसरे पौत्र आशीष मिश्र ज्योतिषाचार्य व वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ हैं और एक पौत्री डॉ. दिव्या मिश्रा लखनऊ में वैज्ञानिक हैं। सभी सियासत से दूर हैं और अपने व्यवसाय को ही धार दे रहे हैं।

loksabha election banner

पूराबाजार के पूरे शीतल पंडित का पुरवा में राजाराम मिश्र का जन्म सन् 1900 में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा के बाद शहर के राजकीय विद्यालय में पढ़ रहे थे। इसी बीच 1921 में गांधीजी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। पढ़ाई छोड़ी, जेल गए। बाद में कानपुर के डीएवी कॉलेज से बीए किया। लखनऊ विश्वविद्यालय से एलएलबी किया। 1933 में वे कांग्रेस के सक्रिय सदस्य बने। 1937 में उनका विवाह हुआ। जेल में रहते 1941 में पुत्री विद्यावती का जन्म हुआ पर पत्नी बीमार हो गईं। इलाज के लिए वे जेल से पैरोल पर बाहर आए। पत्नी को लखनऊ ले गए लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने उनका इलाज यह कहते हुए मना कर दिया कि सरकार के खिलाफ लड़ने वालों के लिए कोई सुविधा नहीं है। इसी के बाद पत्नी का निधन हो गया। वे 1941-42 में असहयोग आंदोलन में दोबारा जेल गए, नजरबंद किए गए। देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद 1957 से 62 तक वे संसद सदस्य रहे। 1952 से 57 तक मिल्कीपुर व 1962-67 तक मयाबाजार क्षेत्र के विधायक चुने गए। 1946 के पहले प्रदेश की अंतरिम सरकार में विधायक रहे। फिर अचानक 70 वर्ष की उम्र में राजनीति से दूरी बना ली। ---------- 1972 से जीवन पर्यंत तक रहे गेरुआ वस्त्रधारी अयोध्या : 1972 में चारधाम के दर्शन को गए। वहां से जगद्गगुरू स्वामी स्वरूपानंद महाराज से नैसर्गिक दीक्षा ली। तब से जीवन की अंतिम स्वांस तक उन्होंने गेरुआ वस्त्र ही धारण किया और जप-तप करते रहे। पौत्र आशीष मिश्र बताते हैं कि विद्यालय में मेता नाम कक्षा आठ में नानाजी ने लिखवाया। बाद में उन्होंने घर के बाहर बरामदे में बिछे तख्त को अपना आसन बनाया। वे मुझसे धार्मिक नोट्स बनवाते थे। वे कहते हैं कि उस दौर की सियासत दूसरी तरह की थी पर अब राजनीति का चोला पूरा का पूरा बदल गया है, लिहाजा कभी मन भी उधर जाने का नहीं होता।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.