Move to Jagran APP

डोपामिन मनोरसायन का असंतुलन बना रहा सट्टेबाज

फैजाबाद : शहरी युवाओं में तेजी से सट्टेबाजी की लत बढ़ती जा रही है। आइपीएल हो या फिर अन्य कोई माध्यम,

By JagranEdited By: Published: Tue, 29 May 2018 06:55 PM (IST)Updated: Tue, 29 May 2018 06:55 PM (IST)
डोपामिन मनोरसायन का असंतुलन बना रहा सट्टेबाज
डोपामिन मनोरसायन का असंतुलन बना रहा सट्टेबाज

फैजाबाद : शहरी युवाओं में तेजी से सट्टेबाजी की लत बढ़ती जा रही है। आइपीएल हो या फिर अन्य कोई माध्यम, उनमें जुआ खेलना एक जुनून बनता जा रहा है। आइपीएल ने इस लत को चरम पर पहुंचाने का काम किया। मैच पर सट्टा गली-गली लगता रहा। खासकर युवा वर्ग तेजी से सट्टेबाजी की तल में जकड़ता जा रहा है। भूख, प्यास, अच्छा-खराब सब भूल कर सिर्फ एक का दस बनाने के चक्कर में युवा इस सामाजिक अपराध में फंसते जा रहे हैं। असल में जुआ खेलना महज एक आदत नहीं बल्कि मनोरोग है। जागरण ने जिला अस्पताल की किशोर मित्र क्लीनिक के आंकड़ों से सच्चाई उजागर करते हैं।

loksabha election banner

...........

चिकित्सक कहते हैं कंपल्सिव गैंब¨लग बीमारी

-प्रतिमाह क्लीनिक में 50 से 60 ऐसे लोगों को उनके अभिभावक लेकर पहुंच रहे हैं, जो जुआ की वजह से अवसाद से गुजर रहे हैं। आपको जान कर हैरानी होगी कि जुआखोरी भी एक प्रकार का मनोरोग है। मनोचिकित्सा जगत में इसे कंपल्सिव गैंब¨लग (मनोबाध्य जुआ) के नाम से जाना जाता है। ऐसे लोग जुआ खेलने के नये-नये तरीके व मौके खोजते रहते हैं। क्रिकेट मैच या अन्य मुद्दों पर यह लत इस कदर हावी हो जाती है कि वे लगातार अपनी नींद व भूख त्यागकर बस सट्टेबाजी व जुआ खेलने में जुट जाते हैं। इतना ही नहीं ये लोग जुआखोरी जनित नशाखोरी के दुश्चक्र में भी फंसते चले जाते हैं। इनमें अवसाद, उन्माद, चिड़चिड़ापन, ¨हसा, मारपीट व अन्य परघाती या आत्मघाती नकारात्मक कृत्य के लक्षण उभरने लगते हैं।

................

क्या कहते हैं मनोविशेषज्ञ

-जिला अस्पताल के किशोर मनोपरामर्शदाता डॉ. आलोक मनदर्शन के अनुसार कंपल्सिव गैम्ब¨लग मनोविकार का एक रूप है। इस बीमारी से ग्रसित लोगों का मन ऐसे कृत्य में लिप्त होने का मादक खिचाव पैदा करता है। भले उन्हें चाहे कितनी भी आर्थिक हानि हो। ऐसी मन:स्थिति में ब्रेन-न्यूक्लियस में डोपामिन नामक मनोरसायन की तेज वृद्धि होती है, जिससे तीव्र मनो¨खचाव पैदा होता है। इसको डोपामिन ड्रैग कहा जाता है। आइपीएल खत्म होने के बाद अवसाद के शिकार मरीजों की संख्या में अक्सर इजाफा देखा गया है।

............

बचाव के उपाय

-कंपल्सिव गैंबलर को प्राय: यह पता नहीं होता कि वह मनोरोग का शिकार हो चुका है। उसे जागरूक किया जाना चाहिए, ताकि उसका मन जुआ खेलने की ओर आसक्त न हो। जुआरियों के गिरोह से पर्याप्त दूरी बनाते हुए व्यक्ति रचनात्मक कार्यों में खुद को व्यस्त रखे। ऐसे व्यक्ति का मनोपरिवर्तन करने में पारिवार का भावनात्मक सहयोग व सकारात्मक माहौल का बहुत योगदान है। काग्निटिव बिहैवियर थिरैपी (तलब के प्रति जागरूक किया जाना) व इंपल्स कंट्रोल थिरैपी बहुत ही कारगर है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.