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कुशल कारीगरों के पलायन ने संकट में बैट्री उद्योग

जिले का बैट्री उद्योग संकट के गहरे दौर से गुजर रहा है। कोरोना काल में श्रमिकों के पलायन का गंभीर असर उद्योग जगत पर पड़ा है जिससे बैट्री उद्योग भी अछूता नहीं है। गर्मी के दिनों में बैट्री की मांग बढ़ जाती है लेकिन इस बार सीजन में उत्पादन कम होने की वजह से उद्यमियों को भारी नुकसान पहुंचा है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 01 Jun 2020 11:38 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jun 2020 06:09 AM (IST)
कुशल कारीगरों के पलायन ने संकट में बैट्री उद्योग
कुशल कारीगरों के पलायन ने संकट में बैट्री उद्योग

अयोध्या : जिले का बैट्री उद्योग संकट के गहरे दौर से गुजर रहा है। कोरोना काल में श्रमिकों के पलायन का गंभीर असर उद्योग जगत पर पड़ा है, जिससे बैट्री उद्योग भी अछूता नहीं है। गर्मी के दिनों में बैट्री की मांग बढ़ जाती है, लेकिन इस बार सीजन में उत्पादन कम होने की वजह से उद्यमियों को भारी नुकसान पहुंचा है। कच्चा माल तक मिलना मुश्किल हो गया है। जिले में बैट्री की पांच फैक्ट्रियां संचालित हैं। इन फैक्ट्रियों में बिहार, जम्मू, हरियाणा, दिल्ली व दक्षिण भारत के कुशल कारीगर कार्य करते हैं। मार्च में लॉकडाउन का ऐलान होने के बाद यह कारीगर अपने घरों को लौट गए। अभी यह वापस नहीं आए हैं। ऐसे में फैक्ट्रियों में उत्पादन का संकट खड़ा हो गया है।

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गैर प्रांतों की फैक्ट्रियों में हालात अधिक खराब

-बैट्री कारोबार से जुड़े सुमित जायसवाल कहते हैं कि बैट्री निर्माण के लिए सेपरेटर, ट्यूबलर बैक, कंटेनर आदि कच्चा माल गुजरात, दिल्ली, जयपुर से आता है। इन फैक्ट्रियों में अधिकांश श्रमिक यूपी और बिहार हैं, जो अपने-अपने प्रदेश को लौट चुके हैं। ऐसे में कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित कराने में गैर प्रांतों की फर्में मुश्किल में हैं। जिले में उत्पादित बैट्री की आपूर्ति यूपी के विभिन्न जिलों के अतिरिक्त राजस्थान और असम तक होती है। कोरोना के डर से एक जिले से दूसरे जिले में जाने का जोखिम भी है। ऐसे में आपूर्ति सुनिश्चित करना मुश्किल हो गया है। बैंक के लोन की किस्त और बिजली बिल का भुगतान भी उद्यमियों पर एक बड़ी आर्थिक जिम्मेदारी है।

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उत्पादन हो रहा प्रभावित

-बैट्री की फैक्ट्री चलाने वाले अमित गोयल कहते हैं कि फरवरी से बैट्री का निर्माण शुरू हो जाता है। मार्च में आपूर्ति चरम पर होती है, लेकिन मार्च में ही लॉकडाउन हो गया। आपूर्ति ठप हो गई। गर्मी बैट्री का सीजन माना जाता है, लेकिन यह सीजन उद्यमियों के लिए घाटे का साबित हो रहा है। कारखानों में श्रमिक नहीं है। फैक्ट्रियों में सिर्फ लोकल श्रमिक बचे हैं।


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