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धर्मसभाः अयोध्या मामले में अध्यादेश की नौबत आई तो काशी और मथुरा भी लेंगे

मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या में रविवार को धर्मसभा में देश भर के 127 संप्रदायों के साधु-संतों और अखाड़ों के महामंडलेश्वरों ने एक साथ हुंकार भरी।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sun, 25 Nov 2018 07:13 PM (IST)Updated: Mon, 26 Nov 2018 07:37 AM (IST)
धर्मसभाः अयोध्या मामले में अध्यादेश की नौबत आई तो काशी और मथुरा भी लेंगे
धर्मसभाः अयोध्या मामले में अध्यादेश की नौबत आई तो काशी और मथुरा भी लेंगे

आनन्द राय, अयोध्या। श्रीराम जन्मभूमि भव्य मंदिर निर्माण के संकल्प के लिए अयोध्या की बड़े भक्तमाल की बगिया में रविवार को आयोजित विराट धर्मसभा में देश भर के 127 संप्रदायों के साधु-संतों और अखाड़ों के महामंडलेश्वरों ने एक साथ हुंकार भरी। सरकार और सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाया कि या तो कानून से या अध्यादेश से किसी भी तरह मंदिर बने। लेकिन, सबसे नई बात यह हुई कि धर्मसभा की अध्यक्षता कर रहे निरंजनी अखाड़ा, हरिद्वार के महामंडलेश्वर स्वामी परमानंद महाराज ने मुस्लिम समुदाय और वक्फ बोर्ड से अपील करते हुए चेतावनी दे दी, वे लोग स्वेच्छा से मंदिर बनने का रास्ता साफ कर दें। अगर अध्यादेश की नौबत आयी तो फिर अयोध्या ही नहीं, काशी और मथुरा भी लेंगे। इसके पहले प्रस्तावना में विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय ने भी जोर देकर कहा कि केवल मंदिर, केवल मंदिर, केवल मंदिर चाहिए। हालांकि चित्रकूट से आये पद्म विभूषण, तुलसी पीठाधीश्वर जगदगुरु स्वामी राम भद्राचार्य महाराज ने केंद्र सरकार के एक वरिष्ठतम मंत्री से बातचीत के हवाले से दावा किया कि आचार संहिता समाप्त होने के बाद केंद्र सरकार 11 दिसंबर को मंदिर निर्माण का रास्ता खोज लेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इसके लिए बैठक करेंगे। 

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धर्मसभा की खास बातें

  • मंदिर निर्माण के लिए संतों ने भरी हुंकार 
  • मुस्लिम समाज सौंप दे हिंदुओं की भूमि 
  • संतों का धर्मादेश चाहे कानून या अध्यादेश 
  • विवादित जमीन पर नहीं हो सकती नमाज 
  • उठी याचना नहीं अब रण होगा की हुंकार
  • राम मदिर के शिवा कुछ भी स्वीकार्य नहीं

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने शनिवार को राम मंदिर निर्माण के लिए लक्ष्मण किला मैदान में संत सम्मान और आशीर्वादोत्सव में मोदी पर हमला बोला था और कहा कि हमें तारीख बताइए कि मंदिर कब बनाएंगे। रविवार को विश्व हिंदू परिषद की धर्मसभा उनके सवालों का जवाब थी। सभास्थल को मंदिर आंदोलन की पुरानी स्मृतियों से सजीव किया गया था। सभा मंच पर अशोक सिंहल, राम चंद्र परमहंस महराज, महंत अव़ेद्यनाथ के पुराने कार्यक्रमों और लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या यात्रा की होर्डिंग और तस्वीरों के साथ संघर्ष को याद दिलाने की भरपूर कोशिश की गई थी। विहिप के केंद्रीय मंत्री राजेंद्र सिंह पंकज संचालन कर रहे थे और उन्होंने शुरुआत में ही माहौल बना दिया।

सरकार अपने वचन का पालन करे

विहिप के केंद्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय ने कहा कि मुस्लिम समाज ने वचन दिया है कि अगर अयोध्या में मंदिर सिद्ध हो गया तो हम दावा छोड़ देंगे। मेरा कहना है कि मुस्लिम वक्फ बोर्ड मुकदमा वापस ले ले और स्वेच्छा से यह स्थान हिंदू समाज के लिए छोड़ दे। भारत सरकार भी अपने वचन का पालन करे। दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में संत समाज के धर्मादेश से यह नारा गूंजा था कि संतों का धर्मादेश-कानून बनाएं या अध्यादेश। यह आयोजन उस नारे से भी आगे था। इसीलिए प्रस्तावना में मुसलमानों से ही पहल करने और जमीन सौंपने का अनुरोध हुआ। चंपत राय ने तो यह भी कहा कि जहां विवाद है वहां खुदा भी नमाज स्वीकार नहीं करता। 500 वर्ष की नमाज खुदा ने स्वीकार नहीं की है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से भी अनुरोध किया कि जल्द यह बताया जाए कि यह स्थान भगवान राम का है और यहां मस्जिद इनवैलिड है। यदि न्यायपालिका टालमटोल करे तो यह विधायिका का दायित्व है कि वह लोक भावनाओं का आदर करे। चंपत राय की इस प्रस्तावना के इर्द-गिर्द कई प्रमुख संत बोले और कई सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाते रहे।

नहीं सुनी तो अब रण होगा

अध्यक्षीय उदबोधन में स्वामी परमानंद जी महाराज ने मुस्लिम समाज से राम मंदिर भूमि छोड़ देने के साथ यह भी कहा कि भाजपा सरकार प्रस्ताव लाए और कानून बनाए उसके पहले मुस्लिम संगठन मंदिर को समर्पित कर दें ताकि भाई चारा कायम रहे। हम साधु हैं, एक बार याचना करते हैं लेकिन, अगर नहीं सुनी तो अब रण होगा। वैसे कोर्ट का फैसला भी हमारे हक में आने वाला है। उन्होंने संतों के साथ संघ और विहिप की भूमिका पर भी संतोष जताया। ढांचा ध्वंस के साक्षी रहे महंत ने यह भी दावा किया कि वह मंदिर बनने के भी साक्षी होंगे। रामानुजाचार्य राघवाचार्य ने कहा कि हम न्याय पालिका से राम मंदिर की लड़ाई लड़ रहे हैं। अगर यह मसला हल नहीं हुआ तो देश भर की 40 हजार मंदिरों की लड़ाई लड़ेंगे जिन्हें तोड़कर मस्जिद बना दिया गया है। 

आतंकवादियों के लिए कोर्ट खुल सकती है तो मंदिर के लिए क्यों नहीं 

रामानुजाचार्य राघवाचार्य जी महाराज को इस बात पर एतराज था कि आतंकवादियों के मुकदमे के लिए कोर्ट खुल सकती है तो मंदिर निर्माण के फैसले में देरी क्यों। दीपांकर जी महाराज ने भी कोर्ट में इतने समय तक मुकदमा लंबित रहने पर आक्रोश जताया। विद्याकुंड अयोध्या के स्वामी प्रेमशंकर महाराज ने संतों के बलिदान की याद ताजा की। दीपांकर ने कहा कि प्रभु श्रीराम को लोग कहते हैं कि टेंट में हैं लेकिन, वह तो कैद में हैं और उन्हें कैद से बाहर लाना होगा। 

अंतिम बार रामलला टेंट में 

अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री और धर्मादेश के प्रमुख आयोजक स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि भगवान श्रीराम की अनदेखी करनी भारी पड़ेगी। लोक के अनुसार तंत्र को चलना पड़ेगा। उन्होंने कोर्ट से कहा कि आप फैसला करिए, हम निर्णय सुनने को तैयार हैं। हम विलंब के लिए तैयार नहीं है। राम मंदिर बने, इसका रास्ता चाहे संसद के गलियारे से या सुप्रीम कोर्ट से गुजरे, हमे तो राम मंदिर चाहिए। बस, अंतिम बार राम लला को टेंट में देखने आया हूं। इसके बाद उनका मंदिर होना ही चाहिए। सनकादिक आश्रम अयोध्या के महंत और संत समिति के अध्यक्ष महंत कन्हैया दास ने कहा कि मंदिर निर्माण स्वतंत्र भारत के भाग्य का फैसला है। मैं सुप्रीम कोर्ट से पूछना चाहता हूं कि बाबर ने किस कोर्ट से पूछकर मंदिर तोड़ा था। दिगंबर अखाड़ा के महंत सुरेश दास ने कहा कि हर कोर्ट से बड़ी जनता की कोर्ट है। 

मोदी-योगी पर संतों को भरोसा 

राम मंदिर के लिए प्रधानमंत्री नरेंद मोदी से संतों से मांग की। उन पर और योगी पर भरोसा भी जताया। रामजन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष और मणिराम दास छावनी के महंत नृत्य गोपाल दास ने कहा कि मोदी और योगी से आशा है। मोदी को चाहिए कि वह मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करें।  जगदगुरु रामानुजाचार्य वासुदेवाचार्य जी महाराज ने कहा कि भारतीय संविधान की पहली प्रति पर भगवान राम, सीता और हनुमान की तस्वीर छपी है। यह देश अभी तक अघोषित हिंदू राष्ट्र है लेकिन, अब घोषित हिंदू राष्ट्र बनने वाला है क्योंकि नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से हुआ है। यह उनका तंज था लेकिन, प्रधानमंत्री से उन्होंने कहा कि शिवाजी की तलवार पर समर्थ गुरु रामदास ने सान चढ़ाई थी। मोदी जी आप शिवाजी की तरह तैयार हो जाइए और मंदिर बनवा दीजिए। वासुदेवाचार्य ने तो यहां तक कहा कि जैसे आबूधाबी में आपने मंदिर बनवा दिया वैसे ही वहां के सुलतान को बुलाकर यहां भी मंदिर का शिलान्यास करा दीजिए। ऐसा मौका फिर मिलने वाला नहीं है क्योंकि राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति अपने और देश-प्रदेश में अपनी ही सरकार है। 

सरकार गिरे तो गिरने दो पर मंदिर बनवा दो 

भगवान राम के ननिहाल छत्तीसगढ़ से आये संत बालक दास ने कहा कि मन की बात बहुत हुई, मत ज्ञान बांटिए मोदी जी। सरकार गिरती है तो गिरने दो लेकिन, मंदिर बनवा दो मोदी जी। हरिद्वार महानिर्वाणी अखाड़ा के महंत रवींद्र पुरी ने तो पूरी तैयारी बयां कर दी। कहा, शिलापूजन हो चुका, नींव खुद गई है और नींव के पत्थर तैयार है। बस अब मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो जाए। स्वामी अनंताचार्य महाराज ने भी मोदी-योगी की सरकार पर भरोसा जताते हुए कहा कि मंदिर बन जाना चाहिए। प्रतापगढ़ से आये पूर्व प्रचारक सियाराम गुप्ता ने मंदिर निर्माण के लिए एक करोड़ रुपये का चेक प्रदान किया। यह चेक राम मंदिर निर्माण न्यास के अध्यक्ष और मणिराम छावनी के महंत नृत्य गोपाल दास को भेंट किया गया।

मंदिर के लिए सरकार लाएगी अध्यादेश: रामभद्राचार्य 

चित्रकूट से आये पदमविभूषण जगदगुरु रामभद्राचार्य जी महाराज की बारी आई तो उन्होंने पूरे आयोजन को अलग दिशा दे दी। जगदगुरु ने कहा कि 23 नवंबर की रात्रि को साढ़े आठ बजे मोदी सरकार के एक वरिष्ठतम मंत्री से उनकी बातचीत हुई। उन्होंने कहा कि नाम नहीं बताऊंगा लेकिन,  इशारों से जाहिर कर दिया कि राजनाथ सिंह से उनकी बातचीत हुई थी। कहा, मंत्री ने सशपथ मुझसे कहा कि 11 दिसंबर के बाद प्रधानमंत्री और हम सब बैठकर कोई ऐसा निर्णय लेंगे कि राम मंदिर बनकर ही रहेगा। आप सभी संतों से कह दें कि हम विश्वासघात नहीं करेंगे। आचार संहिता समाप्त होने पर अध्यादेश या कानून का निर्णय लेंगे। इसमें आचार संहिता ने ही बाधा डाल दी। उन्होंने कहा कि अदालत भले न सुने लेकिन, जनता ने जिस विश्वास से योगी-मोदी को सत्ता में बिठाया है वह पूरा होगा। राम मंदिर निश्चित बनेगा। रामभद्राचार्य जी इस बात से भी खफा हो गये कि उनकी बातचीत पर स्वामी हंसदेवाचार्य ने अगर-मगर लगा दिया। उन्होंने दावे के साथ कहा कि पीएम के बाद के श्रेष्ठतम मंत्री से हमारी बातचीत हुई। इससे संतों के बीच का मतभेद भी सामने आया। हंसदेवाचार्य की बात का खंडन करने के बाद रामभद्राचार्य कार्यक्रम समाप्त होने से पहले ही चित्रकूट के लिए रवाना हो गए। 

नौ दिसंबर को दिल्ली में जुटान 

इसके पहले जगदगुरु रामानंदाचार्य हंसदेवाचार्य ने इशारों से कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि राम मंदिर निर्माण में सबसे बड़े विरोधी कुर्ते के ऊपर जनेऊ पहनने वाले तथाकथित हिंदू हैं। उन्होने कहा कि कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई रोकने में अवरोध पैदा किया। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि राम मंदिर हमारी प्राथमिकता में नहीं है। उन्होंने सरकार का बचाव किया कि यह सरकार की नाकामी नहीं है। कहा, सरकार राष्ट्रपति के जरिये सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखे और वरीयता के आधार पर मंदिर मामले में फैसला दे। एलान किया कि अगर यह नहीं हुआ तो नौ दिसंबर को दिल्ली में संत जुटेंगे और हुंकार भरेंगे। उन्होंने रामभक्तों से कहा कि आप लोग अपने-अपने क्षेत्रों में जन जागरण करिए। सगरा बाबू के महंत ब्रह़मचारी ने कहा कि राम मंदिर के लिए संकल्प लेते हैं। उत्तराखंड से आये स्वामी रामेश्वराचार्य ने कहा कि हमने हमेशा संविधान स्वीकार किया लेकिन, हमें भुलावा दिया जाता है। अयोध्या के रामशरण दास महाराज, दिगंबर अखाडा के महंत राम किशोर दास, महंत गौरीशंकर दास, केरल से आये ससंत शांतानंद जी महाराज, मणिराम दास छावनी के उत्तराधिकारी कमलनयन दास, हनुमान गढ़ी के पुजारी रामदास,  जगदगुरु श्रीधराचार्य जी महाराज ने भी मंदिर निर्माण के लिए हुंकार भरी। 

संतों के निर्णय को श्रद्धा के साथ मानेगा संघ 

इस आयोजन में विहिप के अलावा आरएसएस और भाजपा की भी सक्रिय भागीदारी रही। कई सांसद और विधायक अपने-अपने क्षेत्रों की जनता के साथ आये थे। सिद्धार्थनगर के सांसद जगदंबिका पाल तो घूम-घूमकर संतों का अभिवादन कर रहे थे। भाजपा संगठन के लोग व्यवस्था में लगे थे। मंच पर आरएसएस के सर सहकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने तो यहां तक कहा कि आरएसएस संतों के निर्णय को श्रद्धा से मानेगा। हम 30 वर्ष से संतों के आदेश को मानते आये हैं। उन्होंने भी दो टूक कहा कि हिदू समाज के शौर्य को कोई शांत नहीं कर सकता। देश भर में सभाएं हो रही हैं और नौ दिसंबर को दिल्ली में सांकेतिक सभा है। उन्होंने कार्यकर्ताओं से दोहराया कि हिंदू समाज के ही कुछ लोग निर्णय में अवरोधक बने हैं। फैसला करना होगा कि कौन लोग हैं जो मंदिर निर्माण नहीं चाहते। 

अयोध्या की रज लेकर मंदिर निर्माण की कसम 

धर्मसभा में आये राम भक्तों को संकल्प दिलाया गया। जगदगुरु हंसदेवाचार्य महाराज ने यह शपथ दिलाई और कहा कि जहां जो खड़ा है वह अपने हाथ में अयोध्या की रज ले ले। रोड़ा अटकाने वालों की बुद्धि ठिकाने लगाने पर जोर देते हुए उन्होंने संकल्प के वचन दोहराए- 'हम मर्यादा पुरुषोत्तम राम, माता सीता और बजरंग बली एवं पूर्वजों का स्मरण कर श्री अयोध्या की पवित्र रज माथे पर लगाते हैं। हम संकल्प लेते हैं कि श्रीराम जन्म भूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के लिए प्रच्च्वलित इस अग्नि को शांत नहीं होने देंगे। पूज्य संतों द्वारा दिखाये गये मार्ग पर भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण किसी भी मूल्य पर करके रहेंगे।उन्होंने इस संकल्प को जन-जन तक पहुंचाने का भी अनुरोध किया। 


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