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धर्मसभा: संत मान रहे शक्तिप्रदर्शन जरूरी, नए नेतृत्व पर तेवर बरकरार रखने की चुनौती

विहिप की धर्मसभा पर अयोध्यावासियों की निगाहें लगी हैं। अधिकांश संत इसे मंदिर के लिए शक्ति प्रदर्शन का पैमाना मान रहे हैं। संत राम मंदिर निर्णाण के लिए शक्ति प्रदर्शन जरूरी मानते हैं।

By Nawal MishraEdited By: Published: Thu, 22 Nov 2018 10:04 PM (IST)Updated: Thu, 22 Nov 2018 10:12 PM (IST)
धर्मसभा: संत मान रहे शक्तिप्रदर्शन जरूरी, नए नेतृत्व पर तेवर बरकरार रखने की चुनौती
धर्मसभा: संत मान रहे शक्तिप्रदर्शन जरूरी, नए नेतृत्व पर तेवर बरकरार रखने की चुनौती

अयोध्या (जेएनएन)। विहिप की धर्मसभा पर अयोध्यावासियों की निगाहें लगी हैं। अधिकांश संत इसे मंदिर के लिए शक्ति प्रदर्शन का पैमाना मान रहे हैं। संत राम मंदिर निर्णाण के लिए शक्ति प्रदर्शन जरूरी मानते हैं। फिलहाल विहिप के लिए यह बड़ी चुनौती है। अयोध्या में विहिप की धर्मसभा ऐसे समय में हो रही है जब 90 के दशक के मंदिर आंदोलन की अगुवाई करने वाले तमाम चेहरे नहीं है। सांगठनिक रूप से समूचा चेहरा बदल चुका है। ऐसे में पुराना तेवर बरकरार रखकर उसमें संवर्द्धन करने की चुनौती भी है। 

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 पुरानी पीढ़ी ने जो सपना देखा नई पूरा करेगी

विश्व हिंदू परिषद की स्थापना 1964 में हुई थी। तत्समय स्वामी चिन्मयानंद, एसएस आप्टे व मास्टर तारा सिंह आदि इसके संस्थापकों में थे। बजरंगदल व दुर्गा वाहिनी विहिप के प्रमुख सहयोगी संगठन हैं। विहिप का सूत्र वाक्य धर्मो रक्षति रक्षित: है। विहिप के करीब दर्जन भर प्रकल्प भी संचालित हैं।  विहिप के प्रांतीय मीडिया प्रभारी ने बताया कि नए नेतृत्व में संगठन लगातार आगे बढ़ रहा है और पूर्व के पदाधिकारियों ने जो सपना देखा था, उसे वर्तमान पीढ़ी अवश्य पूरा करेगी। विहिप के अयोध्या तीर्थ विवेचनी सभा अध्यक्ष राजकुमारदास ने बताया कि नाम से ही ध्वनित है कि धर्मसभा धर्म की प्रतिष्ठा के लिए आहूत है और इसका मकसद राममंदिर के माध्यम से समाज को जोडऩे की है। धर्मसभा से किसी समुदाय-संप्रदाय को डरने की की जरूरत नहीं है। हम अयोध्यावासी सामाजिक एकता के प्रति दृढ़ हैं। 

कुछ बातें नई पुरानी

विहिप ने वर्ष 1984 में अयोध्या में सरयूतट पर संकल्पसभा की थी। इसके बाद मंदिर आंदोलन ने देशभर में उबाल ला दिया था। तत्समय विहिप अध्यक्ष विष्णुहरि डालमिया, महामंत्री अशोक सिंहल व संयुक्त मंत्री गिरीराज किशोर थे। रामजन्मभूमिन्यास के अध्यक्ष प्रतिवाद भयंकर के तौर पर प्रतिष्ठित रहे परमहंस रामचंद्रदास थे। विहिप के मौजूदा उपाध्यक्ष चंपत राय तब सहक्षेत्रीय संगठन मंत्री थे जबकि क्षेत्रीय संगठन मंत्री गुरुजन सिंह रहे। प्रांतीय संगठनमंत्री के पद पर पुरुषोत्तम नारायण सिंह, राजेंद्रसिंह पंकज व सूबेदार सिंह  थे। बजरंगदल के संयोजक विनय कटियार व महामंत्री जयभान पवइया थे। विहिप का बड़ा चेहरा रहे प्रवीण तोगडिय़ा तब गुजरात प्रांत के मंत्री थे। अब उनका नाता विहिप से टूट चुका है। परमहंस रामचंद्रदास, अशोक सिंहल, गिरिराज किशोर जैसे दिग्गज अब इस दुनिया में नहीं हैं तो विष्णुहरि डालमिया सक्रिय नहीं हैं। ऐसे में धर्मसभा से मंदिर आंदोलन जैसा ज्वार पैदा करने की तैयारी कर रही विहिप के नए नेतृत्व के कंधों पर पुराना तेवर दिखाने की चुनौती होगी।  

तब और अब 

  • विहिप अध्यक्ष-विष्णुहरि डायमिया-विष्णु कोकजे 
  • महामंत्री-अशोक सिंघल-मिलिंद परांडे  
  • बजरंगदल संयोजक-विनय कटियार-सोहन सोलंकी 
  • न्यास अध्यक्ष-परमहंस रामचंद्रदास-नृत्यगोपालदास 

शक्ति प्रदर्शन जरूरी मान रहे संत

अयोध्या आचार्य पीठ दशरथमहल बड़ास्थान के महंत बिंदुगाद्याचार्य देवेंद्रप्रसादाचार्य के अनुसार मंदिर निर्माण में विलंब बर्दाश्त से बाहर होता जा रहा है और यह उचित समय है कि हिंदूसमाज मंदिर के लिए अपनी आवाज बुलंद करे। जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य के अनुसार धर्मसभा को कुछ लोग गलत ढंग से परिभाषित कर रहे हैं। उनका कहना है कि हिंदू समाज राममंदिर के लिए आवाज उठाएं, इसमें कहां की राजनीति और सांप्रदायिकता है। प्रतिष्ठित पीठ रामवल्लभाकुंज के अधिकारी राजकुमारदास कहते हैं कि भगवान राम के स्वयं का जीवन मानवीय एकता और गरिमा का परिचायक रहा है और उनके मंदिर का संघर्ष भी इन्हीं मूल्यों का परिचायक है। नाका हनुमानगढ़ी के महंत रामदास कहते हैं, राममंदिर के लिए संवैधानिक मर्यादा को दांव पर लगाया जाना उचित नहीं है पर इस सच्चाई में भी कोई संदेह नहीं है कि जिस देश के आराध्य की अस्मिता संक्रमित हो, उस देश की प्रतिष्ठा निर्बाध रूप से आगे नहीं बढ़ सकती।

धर्मसभा से घबराने की जरूरत नहीं

मधुर उपासना परंपरा की प्रधान पीठ रंगमहल के महंत रामशरणदास कहते हैं, हमें राममंदिर चाहिए और संवैधानिक सीमाओं में जो कुछ संभव है, हम उसे करेंगे। निष्काम सेवा ट्रस्ट के व्यवस्थापक महंत रामचंद्रदास कहते हैं कि धर्मसभा या मंदिर आंदोलन से किसी को घबराने की जरूरत नहीं है। यह राममंदिर के साथ राष्ट्र मंदिर के निर्माण की मुहिम है। गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड के मुख्यग्रंथी ज्ञानी गुरुजीत सिंह के अनुसार इस देश की अस्मिता को शताब्दियों पूर्व से तार-तार करने की साजिश होती रही है और इसे धोने के लिए हर प्रयास में हमारे गुरुओं से लेकर हम साथ हैं। 


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