व्यापक आंदोलन का सबब भी रहा मंदिर का विषय
न्4श्रस्त्रद्ध4ड्ड क्त्रड्डद्व ञ्जद्गद्वश्चद्यद्गन्4श्रस्त्रद्ध4ड्ड क्त्रड्डद्व ञ्जद्गद्वश्चद्यद्गन्4श्रस्त्रद्ध4ड्ड क्त्रड्डद्व ञ्जद्गद्वश्चद्यद्गन्4श्रस्त्रद्ध4ड्ड क्त्रड्डद्व ञ्जद्गद्वश्चद्यद्गन्4श्रस्त्रद्ध4ड्ड क्त्रड्डद्व ञ्जद्गद्वश्चद्यद्ग
अयोध्या : चार जनवरी को सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई के साथ रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के जिस विवाद के पटाक्षेप की उम्मीद की जा रही है, वह सवा तीन दशक पूर्व अदालती सीमाओं का अतिक्रमण कर व्यापक आंदोलन का सबब भी रहा है। फरवरी 1986 में एक ओर डिस्ट्रिक्ट जज के आदेश पर विवादित इमारत में विराजे रामलला के द्वार का दर्शनार्थियों के लिए ताला खुलने का आदेश किया जाता है, दूसरी ओर मंदिर आंदोलन अंगड़ाई ले रहा होता है।
आंदोलन का सूत्रपात छह सितंबर 1984 को हुआ, जब विहिप के संयोजन में हजारों मंदिर समर्थकों ने सरयू तट पर मंदिर निर्माण का संकल्प लिया और रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति नामक संगठन का अस्तित्व सामने आया। इस संगठन के प्रथम अध्यक्ष मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवेद्यनाथ थे। 1987 से मंदिर निर्माण के लिए देश के सभी गांवों में शिलापूजन अभियान शुरू किया गया और इसी के साथ ही मंदिर आंदोलन परवान चढ़ा। तीन साल तक संचालित शिलापूजन के अभियान से पूरे देश में मंदिर निर्माण का आह्वान गूंजा और इसकी संगठित अभिव्यक्ति 1990 की कारसेवा में हुई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम ¨सह यादव ने मंदिर निर्माण के लिए आने वाले कारसेवकों को रोकने का अपूर्व प्रयत्न करते हुए एलान किया था, यहां प¨रदा भी पर नहीं मार सकता पर कारसेवा के लिए नियत 30 अक्टूबर 1990 के दिन यहां लाखों कारसेवक आ धमके। कुछ कारसेवकों ने विवादित इमारत पर भगवा ध्वज भी फहराने में सफलता पाई। कारसेवकों को रोकने के लिए पुलिस ने गोली भी चलाई और आधा दर्जन कारसेवक पुलिस की गोली के शिकार भी हुए। इसके बावजूद कारसेवकों का हौसला ठंडा नहीं पड़ा और वे दो नवंबर 1990 को और व्यापक तैयारी के साथ विवादित स्थल की ओर बढ़े, तो 30 अक्टूबर के हश्र से झुंझलाए प्रशासन ने इस बार कारसेवकों को रोकने के लिए किसी भी सीमा तक जाने का निर्णय कर रखा था। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि विवादित स्थल की ओर बढ़ते कारसेवकों के हुजूम पर गोलियों की बौछार हुई और आज तक यह नहीं तय हो सका है कि मृतक कारसेवकों की संख्या डेढ़ दर्जन थी या तीन दर्जन। गोलियों के आगे कारसेवकों को अपने पांव पीछे खींचने पड़े।
इसके बावजूद कारसेवकों का हौसला ठंडा नहीं पड़ा और आखिरकार छह दिसंबर 1992 की तारीख आई, जब लाखों आंदोलित कारसेवकों ने विवादित इमारत ढहा दी। इसके बाद भी मंदिर आंदोलन दशकों से प्रवाहमान है पर उसमें ढांचा ध्वंस होने के पूर्व की तुर्शी नहीं रह गई है और मंदिर निर्माण की आकांक्षा संसद में कानून या सुप्रीमकोर्ट के फैसले के इंतजार में है। अदालत में राममंदिर की पैरोकारी से जुड़े नाका हनुमानगढ़ी के महंत रामदास के अनुसार यह सुखद बदलाव है और संवैधानिक दायरे में राममंदिर निर्माण के साथ राष्ट्र मंदिर की भी बुनियाद मजबूत होगी।