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अयोध्या की पुकार : मुस्लिम भी बुलंद करते रहे हैं राम मंदिर की आवाज

Ayodhya Dispute case हिंदू-मुस्लिम एकता को दृढ़ता देने की गर्ज से 1857 की क्रांति के दौर में ही मुस्लिमों ने विवादित जमीन हिंदुओं को देने की योजना तैयार की थी।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Fri, 01 Nov 2019 12:20 PM (IST)Updated: Fri, 01 Nov 2019 12:20 PM (IST)
अयोध्या की पुकार : मुस्लिम भी बुलंद करते रहे हैं राम मंदिर की आवाज

अयोध्या [रघुवरशरण]। भगवान राम की नगरी अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद हिंदुओं -मुस्लिमों का विवाद नहीं है। यह सच्चाई उन मुस्लिमों से बयां है, जो लंबे समय से मंदिर के हक में आवाज बुलंद करते रहे हैं।

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हिंदू-मुस्लिम एकता को दृढ़ता देने की गर्ज से 1857 की क्रांति के दौर में ही मुस्लिमों ने विवादित जमीन हिंदुओं को देने की योजना तैयार की थी। यहां हालांकि ब्रिटिश हुक्मरानों की साजिश के चलते इस योजना पर पानी फिर गया और इस योजना के सूत्रधार मौलवी अमीर अली को बाबा रामशरणदास के साथ फांसी की सजा दे दी गई।

अयोध्या जामा मस्जिद ट्रस्ट के अध्यक्ष मरहूम सैयद असगर अब्बास रिजवी गत दशक के पूर्वार्ध में सौहार्द-संवाद से यह मसला हल करने के लिए आगे आए।

रिजवी का मानना था कि जहां रामलला विराजमान हैं, उस स्थल से मुस्लिमों को अपना दावा छोड़ देना चाहिए। हालांकि वे कामयाब नहीं हो सके और इसके पीछे वे ताकतें निर्णायक थीं, जो इस विवाद को जिंदा रखकर अपनी दुकानदारी चलाए रखना चाहती थीं। सितंबर 2010 में लखनऊ हाईकोर्ट का निर्णय आने के परिदृश्य में सौहार्द की मुहिम के साथ बाबरी मस्जिद के मुद्दई मरहूम हाशिम अंसारी तक ने रामलला के मंदिर को लेकर ङ्क्षचता जताई। अखाड़ा परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष और हनुमानगढ़ी से जुड़े शीर्ष महंत ज्ञानदास के साथ मिलकर वे यह विश्वास दिलाने में कामयाब रहे कि रामलला जहां विराजमान हैं, वहां मंदिर बने और मस्जिद अन्यत्र बने। 20 जुलाई 2016 को इंतकाल के वक्त तक हाशिम राम मंदिर के प्रति नरमी के पर्याय बने रहे।

स्वयंसेवी संस्था मित्र मंच के प्रमुख शरद पाठक कहते हैं, आज अदालत से इस मसले का पटाक्षेप होने को है पर हम उन मुस्लिमों को नहीं भुला सकेंगे, जिन्होंने मंदिर के समर्थन में आवाज बुलंद कर राममंदिर के साथ राष्ट्रमंदिर की नींव भी मजबूत की है। मंदिर आंदोलन से जुड़े डॉ. राघवेशदास मंदिर के समर्थन में खड़ी होने वाली मुस्लिमों की जमात को रहीम-रसखान की परंपरा का बताकर उन्हें महान धरोहर करार देते हैं। यह परंपरा गत माह ही और आगे बढ़ती नजर आई, जब लखनऊ में इंडियन मुस्लिम फार पीस के बैनर तले मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने विवादित जमीन ङ्क्षहदुओं को सौंपने का एलान किया।


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