इटावा में 'समाजवाद' का रहा दबदबा
गौरव डुडेजा इटावा इटावा लोकसभा सीट पर समाजवादियों का शुरू से दबदबा रहा है। समाजवादी
गौरव डुडेजा, इटावा : इटावा लोकसभा सीट पर समाजवादियों का शुरू से दबदबा रहा है। समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव का गृह क्षेत्र होने के कारण यहां हमेशा से उनकी पकड़ मजबूत रही। पहले सोशलिस्ट पार्टी और फिर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार ही सर्वाधिक बार जीते। सपा ने चार बार इस सीट पर परचम लहराया है। भाजपा ने दो बार कब्जा जमाया तो बसपा को भी एक बार जीत हासिल हुई। कांग्रेस भी यहां तीन बार जीत का स्वाद चख चुकी है।
1952 से लेकर वर्ष 2014 तक के लोकसभा चुनावों की बात की जाए तो 1952 और 57 में इटावा लोकसभा सीट सुरक्षित थी। 1952 में निर्दलीय उम्मीदवार अर्जुन सिंह ने जीत हासिल की थी। 1957 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के तुलाराम ने बाजी मारी। 1967 में इटावा लोकसभा सीट सामान्य हो गई, जिस पर सोशलिस्ट पार्टी के अर्जुन सिंह ने परचम लहराया। 1971 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के श्रीशंकर तिवारी ने जीत दर्ज की, जबकि 1977 में इमरजेंसी के दौरान भारतीय लोकदल के कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया ने विजय पताका लहराई। 1980 में जनता पार्टी एस के टिकट पर रामसिंह शाक्य चुनाव जीते, जबकि 1984 में कांग्रेस के रघुराज सिंह ने मैदान मार लिया। 1989 में जनता दल से रामसिंह शाक्य ने फिर वापसी की। 1991 में सपा-बसपा गठबंधन से बसपा प्रमुख कांशीराम मैदान में उतरे। उन्हें भी इटावा की जनता ने जीत का सेहरा पहनाया। 1996 में जनता दल से रामसिंह शाक्य ने एक बार फिर चुनावी रण जीता। 1998 में भाजपा का ग्राफ बढ़ा और सुखदा मिश्रा सांसद बनीं। हालांकि 1999 में सपा के रघुराज सिंह शाक्य अच्छे मतों से विजयी हुए। 2004 में भी रघुराज सिंह शाक्य ने जीत दर्ज की। परिसीमन के बाद 2009 में इटावा सुरक्षित सीट कर दी गई। इस चुनाव में सपा के प्रेमदास कठेरिया ने जीत दर्ज की। 2014 में मोदी लहर में भाजपा के अशोक दोहरे ने परचम लहराया।