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बाल-गोपाल चाहें स्नेह की छांव, खो न जाएं ये तारे जमीं पर

सोहम प्रकाश इटावा देखो इन्हें ये हैं ओस की बूंदें पत्तों की गोद में आसमां से कूदें

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 11:12 PM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 11:12 PM (IST)
बाल-गोपाल चाहें स्नेह की छांव,  खो न जाएं ये तारे जमीं पर
बाल-गोपाल चाहें स्नेह की छांव, खो न जाएं ये तारे जमीं पर

सोहम प्रकाश, इटावा देखो इन्हें ये हैं ओस की बूंदें

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पत्तों की गोद में आसमां से कूदें

अंगड़ाई लें फिर करवट बदल कर

नाजुक से मोती हंस दें फिसल कर

खो न जाएं ये, तारे जमीं पर बाल मन पर केंद्रित 'तारे जमीन पर' फिल्म के टाइटल सांग के ये बोल कोरोना काल में माता-पिता को खोने वाले बाल-गोपाल की भी मौन अभिव्यक्ति हैं। उप्र मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना का एक मूल उद्देश्य वक्त के मारे ऐसे बच्चों को गलत हाथों में जाने से रोकना है। योजना से उनके आर्थिक-शैक्षिक व्यवस्था का इंतजाम की शुरुआत हो चुकी है। अब उनको मानसिक संबल और स्नेह की जरूरत है। समाजसेवी संगठनों की तरफ से मिलने वाली मदद और उनके संकल्पबद्ध कदमों की आहट का इंतजार है। दरअसल अबोध भविष्य और मेधा को सरकारी योजनाओं की इमदाद के भरोसे छोड़ देना नाकाफी है। एक दशक में स्थापित न

हो सका खुला आश्रय गृह

कोरोना काल में स्वैच्छिक संगठनों को उस दिशा में भी कदम बढ़ाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है, जिसमें उनकी भूमिका के बिना कुछ योजनाओं की जनपद में शुरुआत ही नहीं हो सकी। समेकित बाल संरक्षण योजना के तहत एक दशक में खुला आश्रय गृह की स्थापना न होने से लखनऊ व कानपुर पर निर्भरता है। दरअसल इसके लिए स्वैच्छिक संगठन की तरफ से आवेदन नहीं आए। देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले सभी बच्चों में विशेष रूप से भिखारियों, आवारा कूड़ा बीनने वाले, घूम-घूमकर तमाशा दिखाने वाले अनाथ बच्चों के लिए 25 बच्चों की क्षमता वाला खुला आश्रय गृह खोला जाना था।

इसी प्रकार प्रत्येक जनपद में उपेक्षित, निराश्रित शिशुओं के लिए पालन-पोषण, देखभाल सहायता तथा संवेदनहीन परिवार में दत्तक ग्रहण को बढ़ावा देने के लिए विशेषज्ञ दत्तक ग्रहण अभिकरण की स्थापना की जानी थी। इसका संचालन जनपद स्तर पर प्रतिष्ठित स्वैच्छिक संगठनों द्वारा किया जाना था। स्वैच्छिक संगठनों का चयन कर प्रस्ताव का अग्रसारण करने का कार्य जिला बाल संरक्षण समिति करती। लेकिन यहां एक भी प्रस्ताव नहीं आया। ऐसी स्थिति में लखनऊ और कानपुर पर निर्भरता रहती है।

चाइल्ड लाइन खोले जाने की जरूरत

चाइल्ड लाइन-1098 खोले जाने की आवश्यकता जताते हुए शासन को विभाग की तरफ से प्रस्ताव भेजा गया है। स्वीकृति की प्रतीक्षा है। इसको स्वैच्छिक संगठन संचालित करेगा। इसी प्रकार मानसिक व शारीरिक रूप से अविकसित तथा एचआईवी से पीड़ित बच्चों के लिए उनकी विशेष आवश्यकताओं के ²ष्टिगत संस्था में 10 बच्चों की विशेषीकृत यूनिट की स्थापना के लिए भी प्रस्ताव शासन को गया है। नई बाल कल्याण समिति गठित

समेकित बाल संरक्षण योजना के तहत कार्य करने के लिए नई बाल कल्याण समिति का गठन किया गया है। इसमें अध्यक्ष दीप नरायण शुक्ला, सदस्य रेखा गुप्ता, संजय कुमार कुलश्रेष्ठ, डा. शैलेंद्र शर्मा, राजेंद्र सिंह हैं। यह समिति अगस्त से सक्रिय हो जाएगी। योजना पर कार्य करने के लिए भवन का निर्माण कचौरा रोड सराय ऐसर में किया गया है। कार्य करने के लिए कार्यक्रम प्रबंधक, परियोजना अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी, लेखाधिकारी, लेखाकार, सह कंप्यूटर प्रचालन की नियुक्ति संविदा पर की गई है। किशोर न्याय बोर्ड का गठन किया गया है। वर्तमान में बोर्ड में जुडीशियल से प्रधान मजिस्ट्रेट के साथ दो सदस्यों में डा. दीपक दीक्षित और सुनीता हैं। विशेष गृह में किशोरों को स्वावलंबन का प्रशिक्षण

कचौरा रोड पर सराय ऐसर स्थित राजकीय विशेष गृह (किशोर) में विभिन्न गंभीर अपराधों में बंद अंडर ट्रायल व सजायाफ्ता किशोरों को कौशल विकास योजना से स्वावलंबी बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। व्यावसायिक प्रशिक्षण के तहत काष्ठ कला, अगरबत्ती बनाना, क्राफ्टिग, कुर्सी आदि बुनने में दक्ष किया जाता है। प्रशिक्षण देने के पीछे सरकार की मंशा यह होती है कि सजा पूरी होने के बाद किशोर यहां से निकले तो वह आत्मनिर्भर बन सके। भरण-पोषण के लिए अपना व्यवसाय शुरू कर सके। भले ही जाने-अनजाने में कोई अपराध हो गया हो वे सजा भुगत रहे हों, लेकिन उनको यहां जिदगी का सबक सिखाया जाता है।

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राजकीय विशेष गृह (किशोर) में बीएसए की तरफ से अंडर ट्रायल और अपचारी (सजायाफ्ता) दोनों प्रकार के किशोरों को प्राथमिक शिक्षा के लिए दो शिक्षकों की व्यवस्था की गई है। वर्तमान में बंद अपचारी चार बच्चे चौथी व पांचवीं दर्जा की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

सोहन गुप्ता, बाल संरक्षण अधिकारी


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