अभिभावक तय करें कि मिड-डे मील चाहिए या गुणकारी शिक्षा
इटावा, जागरण संवाददाता: शिक्षा का अधिकार अधिनियम जब लागू किया गया था तब यह मंशा थी कि जो गरीब परिवार
इटावा, जागरण संवाददाता: शिक्षा का अधिकार अधिनियम जब लागू किया गया था तब यह मंशा थी कि जो गरीब परिवार अपने बच्चों को सिर्फ इसलिए नहीं पढ़ा सकते कि उनके पास किताबों, फीस, यूनीफॉर्म आदि पर खर्च करने के लिए पैसे नहीं हैं, वे शिक्षा से वंचित न रहें। यह प्रावधान है कि ऐसे गरीब बच्चे के घर के निकट एक किलोमीटर के दायरे में सरकारी स्कूल न हो तो उसके घर के सबसे नजदीक स्थित मान्यता प्राप्त प्राइवेट विद्यालय को अपने यहां 25 प्रतिशत तक प्रवेश देने होंगे। इसके लिए सरकार 450 रुपये प्रतिमाह प्रति बच्चा विद्यालय को भुगतान करेगी। ऐसा नहीं है कि निजी विद्यालय ऐसे बच्चों को अपने यहां प्रवेश देना नहीं चाहते, ¨कतु हर एक किलोमीटर पर सरकारी स्कूल होने के चलते उनके यहां गरीब बच्चों के प्रवेश नहीं हो पा रहे हैं।
जनपद इटावा की बात करें तो अधिनियम बनने के बाद से अब तक एक भी बच्चे को इसके तहत प्रवेश नहीं दिया गया है। स्थितियों का आकलन करने पर पता चलता है कि अधिनियम में सिर्फ कक्षा एक या उससे पूर्व की कक्षाओं में ही प्रवेश लेने पर इस सुविधा का लाभ मिलने का जो प्रावधान है, उससे इस अधिनियम का व्यापक प्रयोग नहीं हो पा रहा है। कई ड्रॉप आउट या गरीब होते जा रहे परिवार के बच्चे को आगे की पढ़ाई जारी रखनी हो तो वह इसका लाभ नहीं ले सकता है। कुछ विद्यालयों से बात कर आरटीई की पड़ताल करने का प्रयास किया गया जो इस प्रकार है।
अधिनियम की पेचीदगी से स्कूल व अभिभावक विवश
आवास विकास स्थित कृष्णा मिशन स्कूल के प्रबंधक सीताराम जादौन कहते हैं कि प्रतिवर्ष उनके यहां करीब 20 दुर्बल आय वर्ग के बच्चे ऐसे आते हैं जो आरटीई के तहत प्रवेश चाहते हैं, लेकिन उनके घर के एक किलोमीटर परिधि में सरकारी स्कूल होने के चलते प्रवेश नहीं ले पाते। इसके लिए बीएसए कार्यालय में कई बार अनुरोध किया गया ¨कतु कोई लाभ नहीं हुआ। उनका कहना है कि हम ऐसे गरीब बच्चों को प्रवेश देने के लिए और वे हमारे यहां पढ़ने के लिए तैयार हैं, लेकिन अधिनियम की पेचीदगी के आगे स्कूल व अभिभावक दोनों ही विवश हैं।
अधिनियम की शर्तों में हो रियायत
गांधी नगर स्थित दि ग्रेट मदर टेरेसा पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य विमल श्रीवास्तव कहते हैं कि शहरी क्षेत्र में हर एक किलोमीटर पर स्कूल होने के चलते यहां के गरीब बच्चों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम का लाभ नहीं मिल पा रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में शायद इसलिए यह योजना फलीभूत नहीं हो रही होगी कि वहां इतनी संख्या में मान्यता प्राप्त विद्यालय नहीं हैं। बकौल विमल इस अधिनियम की कुछ शर्तों में रियायत बरती जाए तो एक बड़े गरीब तबके को गुणवत्तायुक्त शिक्षा मिल सकती है और वह भी समाज की मुख्य धारा से जुड़कर अपना जीवन सफल बना सकता है।
अभिभावकों को जागरूक किया जाना जरूरी
जागरूकता के अभाव में अभिभावक मान्यता प्राप्त विद्यालय में बच्चों को पढ़ाने के लिए नहीं भेजता है, क्योंकि वहां फ्री में यूनीफॉर्म, किताबें और खाना नहीं मिलता। वहीं सरकारी स्कूलों में शिक्षा की दशा और गुणवत्ता क्या है यह कहने की बात नहीं। अशोक नगर स्थित एलडी मॉडर्न पब्लिक स्कूल की प्रबंधक मीनाक्षी श्रीवास्तव कहती हैं कि यह अभिभावक को तय करना होगा कि उसे मिड-डे मील में खाना चाहिए या अपने बच्चे को ऐसी शिक्षा देनी है जिससे वह जिम्मेदार और आत्मनिर्भर बनकर जीविकोपार्जन कर सके।
पात्र बच्चे को मिलेगा प्रवेश
यदि कोई पात्र बच्चा आएगा और नियमों के अनुरूप होगा तो उसको प्रवेश दिलाने के लिए बीएसए कार्यालय तैयार है। ऐसे बच्चे का फॉर्म भरवा कर पत्रावली जिलाधिकारी की संस्तुति के लिए भेजी जाती है। वे विद्यालय विशेष को उस बच्चे के एडमिशन के लिए आदेश जारी करेंगे और वांछित निकट के स्कूल में उसे प्रवेश मिलेगा।- जेपी राजपूत, बीएसए