डाक्टर बहू बनी किसान, स्ट्राबेरी से किया हैरान
हाथों में होम्योपैथिक चिकित्सा की डिग्री तो थी लेकिन किसानी में ऐसा
जागरण संवाददाता, एटा : हाथों में होम्योपैथिक चिकित्सा की डिग्री तो थी लेकिन किसानी में ऐसा कर दिखाया, जिसकी उम्मीद नहीं की जा सकती। आसपास के क्षेत्र में स्ट्राबेरी की खेती सिर्फ सोचना मात्र था लेकिन जिले की डाक्टर बहू ने उसे साकार कर दिखाया। वह जिले की पहली स्ट्राबेरी उत्पादक किसान हैं। मायके के हुनर को ससुराल में पूरा कर दिखाया वही इस जिले की शान बन गई।
कुछ इस तरह की मिसाल दीपाली सिंह ने पेश की है। वह महाराष्ट्र के जिला सतारा की निवासी हैं। 2008 में होम्योपैथिक डाक्टर की डिग्री ली। उनके पिता तानाजी राव वहां प्राइवेट जाब से रिटायर होकर स्ट्राबेरी की नर्सरी चलाते हैं। उस क्षेत्र में स्ट्राबेरी से किसानों को तकदीर बदलते देखा। 2009 में एटा जिले के निधौली कलां क्षेत्र स्थित गांव बाबसा निवासी चिकित्सक डा. जसवंत सिंह से विवाह हुआ तो ससुराल आईं। यहां किसानों की गरीबी और महिलाओं की हालत को देख दुखी थीं। लोगों को स्ट्राबेरी की खेती करने को प्रोत्साहित किया लेकिन कोई आगे नहीं आया।
उन्होंने ठाना कि ऐसे बात नहीं बनेगी खुद करके दिखाना होगा। पति व ससुराल के लोगों ने उनकी मंशा पर रजामंदी दी। महाराष्ट्र से पौध मंगाई तथा ससुराल बाबसा में एक हेक्टेयर जमीन पर स्ट्राबेरी की खेती अक्टूबर 2020 से शुरू की। पहले प्रयास में पिता ने भी मार्गदर्शन किया। प्रयास रंग लाया और दिसंबर से स्ट्राबेरी का उत्पादन मिलने लगा। डा. बहू की किसानी ने चौंका दिया। अभी अप्रैल तक स्ट्राबेरी की फसल मिलेगी। क्षेत्र के किसानों की समृद्धि के लिए उन्होंने रास्ता प्रशस्त किया है, वहीं महिला सशक्तिकरण को आयाम दिया है। पहले ही साल ही अच्छा मुनाफा
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डा. दीपाली को स्ट्राबेरी की खेती का पहला साल था तो लागत ज्यादा रही। सुरक्षा की दृष्टि से एक हेक्टेयर खेत की बाउंड्री तथा मजदूरी आधारित खेती से खर्चा 8 लाख से ज्यादा हुआ। उत्पादित स्ट्राबेरी आगरा, दिल्ली तथा कानपुर बेच रही हैं। उम्मीद है 5-6 लाख का मुनाफा हो जाएगा। स्ट्राबेरी संग लहसुन व तरबूज
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डा. दीपाली ने स्ट्राबेरी के साथ अच्छे मुनाफे के लिए लहसुन तथा तरबूज की भी फसल उसी खेत में की है। अप्रैल में यह फसलें भी अतिरिक्त आमदनी देंगी। महिला स्वावलंबन की मंशा
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दीपाली ने स्ट्राबेरी की खेती के साथ गांव में महिलाओं के रोजगार पर भी जोर दिया। स्ट्राबेरी उगाने में पौध लगाने से लेकर फल तोड़ने तक सारे मजदूरी के कार्य महिलाओं से करा कर उन्हें स्वावलंबी बनाने को प्रेरित किया है। महिलाओं को पुरुषों के साथ अच्छे लाभ के लिए खेती को प्रेरित भी कर रही हैं। दूर-दूर से आ रहे अब किसान
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खेतों में स्ट्राबेरी अब दूर क्षेत्रों के किसानों को भी बाबसा आने के लिए आकर्षित कर रही है। एटा, मैनपुरी, बदायूं, कानपुर, शाहजहांबाद, संभल, फर्रुखाबाद सहित कुछ अन्य प्रदेशों के किसान भी यहां पहुंच स्ट्राबेरी करने की जानकारी जुटा रहे हैं। उनके शांतिनगर आवास पर रोज ही किसान पहुंचते हैं। पहले ही साल मिशन शक्ति पुरस्कार
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स्ट्राबेरी दीपाली की किसानी को देख पहली फसल देखकर तत्कालीन डीएम सुखलाल भारती ने उन्हें मिशन शक्ति पुरस्कार से नवाजा। वहीं शासन स्तर पर सम्मान की भी संस्तुति की। डा. दीपाली मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी शुक्रिया कहती हैं जिन्होंने इस बार स्ट्राबेरी प्रदर्शनी आयोजित कराई। वह स्ट्राबेरी खेती को उद्यान योजनाओं में शामिल किए जाने का आग्रह करती हैं ताकि गरीब किसान इस दिशा में आगे कदम बढ़ा सकें।