दो पोस्ट कब्जा कर घुस गए थे पाक में
भुजाएं भले ही बूढ़ी हो गई हों मगर दुश्मन का जिक्र होते ही फिर
एटा, जागरण संवाददाता: भुजाएं भले ही बूढ़ी हो गई हों मगर दुश्मन का जिक्र होते ही फिर सबक सिखाने को फड़कने लगीं। 1971 में पाकिस्तान को परास्त कर बांग्लादेश बनवाने वाले भारत के जांबाज सैनिकों का जुनून अभी भी कम नहीं है। जांबाजी भी ऐसी थी कि बमबारी और गोलीबारी के बीच कदम अपने मिशन को पूरा करने के बाद ही रुके थे।
भारत और पाक के बीच हुआ 1971 का युद्ध एक इतिहास बन गया। इस युद्ध में पाक ने भारतीय सेना के सामने घुटने टेक दिए थे। बांग्लादेश का उदय हुआ था। भारत में 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। एटा जिले के कस्बा जैथरा निवासी महावीर प्रसाद शर्मा ने इस युद्ध को बेहद करीब से देखा ही नहीं, लड़ा भी है। पाकिस्तान में घुसने वाली उस भारतीय बटालियन में शामिल थे जो बारूदी सुरंगें फटने के कारण घायल हो गई थी। कई साथी बलिदान हो गए थे, जख्मी हो गए थे मगर जुनून के आगे भारतीय जांबाजो के कदम अपना टारगेट पूरा करने के बाद ही रुके थे।
महावीर प्रसाद बताते हैं कि वे 19 जनवरी, 1961 को सेना में भर्ती हुए थे। अपने 28 साल के सैन्य कार्यकाल के दौरान उनकी तैनाती अगस्त 1971 में पश्चिम बंगाल में थी। उनकी बिग्रेड को लोआपाड़ा और नौआपाड़ा पोस्ट पर कब्जा करने का मिशन दिया गया। वे भी इस मिशन का हिस्सा थे।
तब 8वीं बटालियन में नायब सूबेदार रहे महावीर प्रसाद ने बताया कि कर्नल शमशेर सिंह उनके कमांडर थे। 22 नवंबर की रात 12 बजे हमारी बटालियन को हुक्म मिला कि बटालियन उक्त दोनों पोस्ट पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़े। करीब 800 जवान अपने मिशन को फतह करने के लिए कूच कर गए। भारत और पाकिस्तान की तरफ से तड़ातड़ फायरिग होने लगी। जिसमें हमारी बटालियन के 4 सीनियर आफिसर, 3 जेसीओ और 57 दूसरी रैंक के सैनिक शहीद हो गए। 765 जवानों के पैर बारूदी सुरंगें फटने से जख्मी हो गए थे, लेकिन फिर भी बटालियन ने हार नहीं मानी और दोनों पोस्ट पर कब्जा करके दिनासपुर की ओर जाने वाला रास्ता खोल दिया।
इसके बाद भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान के अंदर दाखिल हो गई। महावीर प्रसाद बताते हैं कि इसके बाद दोनों देशों में लंबी लड़ाई हुई। अंतत: पाकिस्तान के कमांडरों को भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा और बांग्लादेश मुक्त हो गया।