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जैन रत्नों की खान है एटा की पवित्र भूमि

क्षमावाणी पर्व पर विशेष आचार्य विमल तथा सन्मति सागर की ख्याति विदेशों तक महिलाओं ने भी दीक्षा लेकर जैन धर्म के प्रचार प्रसार को छोड़े सुख

By JagranEdited By: Published: Tue, 21 Sep 2021 05:19 AM (IST)Updated: Tue, 21 Sep 2021 05:19 AM (IST)
जैन रत्नों की खान है एटा की पवित्र भूमि
जैन रत्नों की खान है एटा की पवित्र भूमि

जासं, एटा: जैन धर्म में तमाम संत हुए, लेकिन जनपद की माटी में जन्मी जैन धर्म की विभूतियों के गौरव से यह क्षेत्र आज भी महक रहा है। आचार्य विमल सागर महाराज व आचार्य सन्मति सागर महाराज जैसे अनमोल रत्न जैन धर्म में ऐसे चमके जिनकी ख्याति देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक रही। महिलाओं ने भी आर्यिका रूप धारण कर धर्म के प्रचार-प्रसार में योगदान किया और कर रही है।

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वैसे तो इस जिले की भूमि वीर भूमि का गौरव पाती रही। इस बीच अहिसा परमो धर्म के संदेश को देश-विदेशों में पहुंचाने वाले प्रमुख जैन संतों के भी यहीं जन्म लेने से यहां की रज-रज में जैन धर्म के दर्शन होते हैं। कोसमा का लाल बन गया जैन धर्म की मिसाल

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जलेसर क्षेत्र के गांव कोसमा में जन्म लेने वाली विभूति आचार्य विमल सागर के रूप में विख्यात हुई। यहां के बिहारीलाल और माता कटोरी देवी के घर जन्मी इस विभूति को बाल्यकाल में नेमीचंद्र नाम मिला, लेकिन सिर से मां का साया जन्म के छह महीने बाद ही उठ गया। उन्होंने आचार्य महावीर कीर्ति महाराज से दीक्षा ली। पहले क्षुल्लक वृषभ सागर और फिर आचार्य विमल सागर महाराज के रूप में विख्यात हुए। अति कठिन तपस्या और धर्म के नियम-संयम के साथ एटा के नाम को धर्म के विश्व पटल तक पहुंचाया। वर्ष 1994 में सम्मेद शिखर पर उन्होंने समाधि ली। सन्मति के तप से निहाल हो गया फफोतू

---मुख्यालय से सिर्फ 14 किमी दूर स्थित गांव फफोतू भी जैन तीर्थ बना है, जहां आचार्य सन्मतिसागर महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए संत ने सेठ प्यारेलाल और माता जौमाला के घर जन्म लिया। बाल्यकाल में उनका नाम ओमप्रकाश रखा गया, लेकिन किशोरावस्था में पहुंचते-पहुंचते उन्होंने जैन धर्म को संत के रूप में अंगीकृत कर लिया। नौ नवंबर 1962 को मुनि दीक्षा लेकर जो नाम पाया, वह जैन धर्म में दूर-दूर तक आस्था का बिदु बना हुआ है। त्याग और व्रतों को लेकर वह जैन संतों में अग्रिम रहे। इसके बाद जीवन पर्यन्त जैन संत के आचरण के साथ धर्म का प्रचार-प्रसार किया और गुजरात के मेहसाणा में समाधि ली। यह संत भी बने जैन रत्न

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आचार्य शिवदत्त सागर, मुनि विष्णु सागर महाराज, मुनि उर्जयंत सागर, मुनि सुपा‌र्श्व सागर, मुनि सुमरसागर, मुनि पदमसागर, मुनि अनंतसागर, क्षुल्लक विजयसागर, क्षुल्लक सुरेन्द्र सागर, आर्यिका विनीतमती, आर्यिका मनोवती, आर्यिका नियममती, क्षुल्लिका विलक्षणमती, क्षुल्लिका विमोहमती, आर्यिका मोक्षमती, आर्यिका श्रेष्ठमती, आर्यिका विज्ञमती, क्षुल्लिका विवृद्धमती।


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