तप से होती तन और मन की शुद्धि
जागरण संवाददाता, अलीगंज: सत्संग और तप ईश्वर प्राप्ति के साधन है, जिनसे तन और मन की शुद्धि हो
जागरण संवाददाता, अलीगंज: सत्संग और तप ईश्वर प्राप्ति के साधन है, जिनसे तन और मन की शुद्धि होती है। शुद्ध अंत:करण से ही व्यक्ति ईश्वर को प्राप्त कर पाता है। यह कहना है कथावाचक देवेन्द्र द्विवेदी का। वे तहसील क्षेत्र के गांव नगला पोहपी में आयोजित भागवतकथा में बोल रहे थे। उन्होंने कृष्ण सुदामा की मित्रता की कथा सुनाई।
उन्होंने कहा कि संगत का प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ता है। जब संगत अच्छी होती है तो अच्छे भाव और जब संगत खराब होती है तो खराब भाव विकसित होते हैं। ऐसे में सभी व्यक्तियों को अच्छी संगत अर्थात सत्संग में सम्मलित होना चाहिए। सत्संग से ज्ञान और भक्ति का भाव पैदा होता है। मौजूदा समय में संसारी व्यक्ति अपने तन और धन की ¨चता करता है। जबकि संसार में अपना मन मैला न हो इसकी फिक्र करनी चाहिए। निर्मल छल कपट से रहित व्यक्ति ही भगवान को प्राप्त कर सकेगा। सच्चा आनंद तो ठाकुर जी से ही प्राप्त हो सकता है। जब कोई व्यक्ति अपने आप को ईश्वर के आगे समर्पित कर देता है तो ईश्वर उसकी सभी परेशानियां दूर करते हैं। कथा में उन्होंने भगवान कृष्ण और सुदामा के द्वारिका में मिलन की कथा को सुनाया।
इस मौके पर राजू प्रताप, सोनेलाल पाल, अनिल पाठक, दीपक मिश्रा, मनोज कुमार, सुधीर मिश्रा, विनोद मिश्रा, वीरेन्द्र प्रताप, प्रमोद मिश्रा समेत आस पास के क्षेत्रों के काफी श्रद्धालु मौजूद थे।