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सामाजिक समरसता ही भारतीय संस्कृति का सार

सामाजिक समरसता ही भारतीय संस्कृति का मूल सार है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण कर्मयोगी संत रविदास और महर्षि बाल्मीकि जैसे संत है। यह कहना है सदर विधायक विपिन वर्मा डेविड का। वे शनिवार को विश्व हिदू महासंघ द्वारा आयोजित सामाजिक समरसता सम्मेलन में बोल रहे थे। सम्मेलन में समाज के सभी तबके के लोगों को सम्मानित किया गया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 08 Feb 2020 10:05 PM (IST)Updated: Sun, 09 Feb 2020 06:08 AM (IST)
सामाजिक समरसता ही भारतीय संस्कृति का सार
सामाजिक समरसता ही भारतीय संस्कृति का सार

एटा, जागरण संवाददाता: सामाजिक समरसता ही भारतीय संस्कृति का मूल सार है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण कर्मयोगी संत रविदास और महर्षि वाल्मीकि जैसे संत हैं। यह कहना है सदर विधायक विपिन वर्मा डेविड का। वे शनिवार को विश्व हिदू महासंघ द्वारा आयोजित सामाजिक समरसता सम्मेलन में बोल रहे थे।

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महासंघ कार्यालय पर आयोजित सम्मेलन में सदर विधायक ने भारतीय संस्कृति की महानता पर प्रकाश डाला। कोई भी धार्मिक कार्यक्रम हो, उसमें जब तक समूचे समाज का प्रतिनिधित्व नहीं होता तब तक वह पूरा नहीं हो सकता। ऐसी संस्कृति पर प्रत्येक को गर्व करना चाहिए। सम्मेलन में गोरक्षा प्रकोष्ठ के प्रदेशाध्यक्ष योगेंद्र चौधरी, मंडल प्रभारी अवधेश गुप्ता, जिला प्रभारी नलिन राजन गुप्ता, प्रदीप भामाशाह, मातृशक्ति जिलाध्यक्ष निशा चौहान ने समाज के सभी तबके के लोगों को शॉल उढ़ाकर व प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया। इस मौके पर प्रभात कुलश्रेष्ठ, राजवीर सिंह, गोविद मिश्रा, दीपक कुशवाह, नीतेश जोशी, अनुज दीक्षित, जुगेंद्र कुशवाह, पियूषकृष्ण दुबे, सचिन गुप्ता सभासद, नितिन वर्मा, यतीक सक्सेना, सुनील पाठक, हरीशप्रताप सिंह, अरविद कनोजिया, विजय पचौरी, रंजीत, योगेश पचौरी, गोपाल पाठक, नीरज गुप्ता, गौरव पुंढीर, तरुणेश, कुलदीप शाक्य आदि मौजूद थे।


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