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जागरूकता की खेती से खुशहाली की फसल

शहर के दो उद्यमी भाइयों ने जागरूकता की खेती का बीज बोया तो यह खुशहाली का पौधा बनकर बढ़ चला। पारंपरिक खेती करने वाले यहां के पिछड़े और गरीब किसानों को उन्होंने चिकोरी की खेती की राह दिखाई। धीरे-धीरे यह लोग जुड़े और कारवां बनता गया। समय गुजरा तो किसानों के हालात बदले साथ ही यह खेती और उद्यम जिले की शान बन गया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 14 Aug 2019 10:57 PM (IST)Updated: Sat, 17 Aug 2019 06:24 AM (IST)
जागरूकता की खेती से खुशहाली की फसल
जागरूकता की खेती से खुशहाली की फसल

एटा: शहर के दो उद्यमी भाइयों ने जागरूकता की खेती का बीज बोया तो यह खुशहाली का पौधा बढ़ता चला गया। पारंपरिक खेती करने वाले यहां के पिछड़े और गरीब किसानों को उन्होंने चकोरी की खेती की राह दिखाई। धीरे-धीरे यह लोग जुड़े और कारवां बनता गया। समय गुजरा तो किसानों के हालात बदले साथ ही यह खेती और उद्यम जिले की शान बन गया।

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इन्द्रपुरी कॉलोनी में रहने वाले उद्यमी भाई राकेश वाष्र्णेय व दिनेश वाष्र्णेय ने करीब 19 साल पहले कॉफी उत्पादन की योजना तैयार की। हैदराबाद पहुंचकर चकोरी की खेती की जानकारी ली। सोच लिया कि इस खेती के सहारे एटा के किसानों का भी भाग्य बदलेगा और उन्हें भी उन्नत खेती की राह मिलेगी। इसी सोच से वर्ष 2000 में उन्होंने बीज लाकर गरीब तबके के किसानों को खेती के लिए प्रेरित किया। खुद बीज दिया और अच्छे उत्पादन के लिए जानकारी भी जुटाई। फलस्वरूप पहले साल 300 लोगों ने 400 एकड़ जमीन पर खेती की शुरूआत की। इसके बाद चकोरी ने अच्छे परिणाम दिए तो गरीबी दूर करने का मंत्र दूसरे किसानों तक भी पहुंचा। चकोरी की शुरूआत शहर के आसपास गांव से हुई। अब यह खेती एटा व कासगंज जिले के कोने-कोने में समृद्धि की खेती बन गई है। यही नहीं समीपवर्ती बदायूं, बुलंदशहर, शिकोहाबाद, अलीगढ़ आदि क्षेत्रों में भी यह मंत्र फलीभूत हो रहा है। जो किसान 6-7 हजार रुपये बीघा का लाभ पाते थे, उन्हें चकोरी की फसल 15-20 हजार रुपये बीघे का लाभ दे रही है। खेती के साथ-साथ अब अन्य उद्यमी भी प्रोसेसिग प्लांट लगाकर लोगों को रोजगार दे रहे हैं। 17 हजार हेक्टेयर तक पहुंची खेती

जिस खेती को शुरूआत में करने के लिए किसान डरे, आज वह 17 हजार हेक्टेयर तक पहुंच चुकी है। जिले के 11 हजार से अधिक लोग इस खेती से मुनाफा कमाकर अपनी हालत सुधार रहे हैं। इसके अलावा उधारी पर जमीन लेकर भी चकोरी उगाई जा रही है। उन्होंने छू लीं ऊचाइयां

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जैथरा के सर्रा निवासी मानपाल, धुमरी के लियाकत अली, इतवारपुर के रामसनेही ही नहीं, बल्कि अब सैकड़ों किसान गरीब नहीं रहे। खुद की खेती के साथ वह अब खुद का भी कारोबार कर रहे हैं। मिल चुका है सम्मान

गरीबी को दूर करने का मंत्र देने वाले उद्यमी भाइयों द्वारा भी कृष्णा चकोरी प्रोसेसर्स उद्योग संचालित किया जा रहा है। उनके द्वारा किए गए प्रयासों के फलस्वरूप 2012 में प्रदेश सरकार ने उन्हें जनेश्वर मिश्र उद्यमी पुरस्कार से नवाजा। वहीं गरीबी उन्मूलन की दिशा में किए गए प्रयासों को सराहा। उद्यमी दिनेश वाष्र्णेय कहते हैं कि अब उनका प्रयास और ज्यादा किसानों को चकोरी से लाभ दिलाना है।


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