शिक्षा में काली कमाई पर नेताजी की चुप्पी
नया शिक्षासत्र शुरू हो चुका है। संयोग है कि इन दिनों लोकसभा चुनाव का माहौल भी है। हर साल प्राइवेट स्कूलों में मनमानी फीस वसूलने और किताब ड्रेसों में भी कमीशनखोरी का दायरा बढ़ रहा है। अभिभावक स्कूल में प्रवेश से लेकर परीक्षा परिणाम मिलने तक शोषण का शिकार होते हैं। लेकिन जनप्रतिनिधियों ने इस मामले पर कुछ नहीं कहा। बल्कि वे स्कूल संचालकों की शिकायत पर पर्दे के पीछे से उन्हें कार्रवाई से बचा लेते हैं।
एटा, जासं। नया शिक्षासत्र शुरू हो चुका है। इस बार संयोग है कि इन दिनों लोकसभा चुनाव का माहौल भी है। हर साल प्राइवेट स्कूलों में मनमानी फीस वसूलने और किताब, ड्रेसों में भी कमीशनखोरी का दायरा बढ़ रहा है। अभिभावक स्कूल में प्रवेश से लेकर परीक्षा परिणाम मिलने तक शोषण का शिकार होते हैं। इन दिनों उनमें गुस्सा भी खूब होता है, लेकिन कभी नहीं दिखा कि जनप्रतिनिधियों ने अपने ही मतदाताओं की इस शोषण की कहानी पर दो शब्द भी कहे हों। इतना जरूर है कि स्कूल संचालकों की शिकायत पर पर्दे के पीछे से उन्हें कार्रवाई से बचा लेते हैं।
हर अभिभावक की सोच बच्चों को अच्छे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने की है। इसी मंशा से जहां इंग्लिश मीडियम स्कूलों की संख्या बढ़ी हैं। वहीं स्कूलों की मनमानी और अभिभावकों के शोषण का दायरा रफ्तार पकड़े है। प्राइमरी तक की कक्षाओं में पहले प्रवेश के नाम पर 10 से 15 हजार रुपये तक की वसूली बेखौफ है। फीस का निर्धारण भी हर साल बिना किसी नियम के संचालक खुद तय करते हैं। किताबों, ड्रेस की खरीद निर्धारित दुकानों से कराई जाती है। इस एवज में स्कूल संचालक विक्रेताओं से एकमुश्त लाखों की रकम वसूलते हैं। अभिभावकों की यह पीड़ा हर साल अप्रैल से जुलाई तक रहती है। बात नेताओं और जनप्रतिनिधियों तक भी पहुंचती है, लेकिन वह कुछ भी नहीं बोलते। न अपने क्षेत्र में और न ही सदन में किसी ने यह पीड़ा उठाई। चूंकि इन दिनों चुनावी माहौल है, ऐसे में स्कूलों के शोषण का यह मुद्दा गायब है। न नेता ही शोषण पर अंकुश के लिए कुछ कह रहे हैं इतना जरूर है कि पीड़ित अभिभावक यह कहकर शांत हो जाते हैं कि उन्हें सिर्फ वोट से मतलब है। दिखी उम्मीद पर नतीजा सिफर
पिछले साल प्रशासन के पास दो दर्जन से ज्यादा स्कूलों और दर्जनभर बड़े पुस्तक विक्रेताओं की शिकायतें थीं। दोनों की साठगांठ सामने आई पर हुआ कुछ नहीं। यहां तक कि फीस निर्धारण समिति ने किसी भी विद्यालय के विरुद्ध कार्रवाई नहीं की। इतना हुआ कि जिम्मेदारों ने स्वार्थपूर्ति कर चुप्पी साध ली और अभिभावक बैकफुट पर ही रहे। यह कहते लोग
-किसान को पेंशन दी जा रही है और उसी का बेटा मोटी फीस के कारण अच्छे स्कूलों में नहीं पढ़ पा रहा। नेताओं से जवाब लेना चाहिए। सर्वेश कुमार
-अब तक फीस निर्धारण के मापदंड स्पष्ट नहीं हैं। सरकार योजनाओं की तरह शिक्षा पर अपना रुख साफ करे ताकि स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लग सके। सुभाष शर्मा
-किताबों में बड़ा खेल है। आधी-आधी कमीशन स्कूल ले रहे हैं। ऐसे स्कूलों पर कार्रवाई के लिए कोई जनप्रतिनिधि आगे नहीं आया। दिनेश यादव
-हर बात के लिए कानून पर अभिभावकों के शोषण को रोकने के लिए अधिकारियों पर कुछ भी नहीं। उन पर भी कानून कार्रवाई हो। हुतेंद्र आमौरिया