नीरज के गीत कविताओं में छुपा है एटा का शब्दकोष
जागरण संवाददाता, एटा: गोलपाल दास नीजर को एटा में याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
जागरण संवाददाता, एटा: Þअब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए, जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए' यह पंक्तियां पद्मविभूषण महाकवि डा. गोपालदास नीरज की एटा में अंतिम पंक्तियां थीं, जोकि 20 दिसंबर 2015 को उन्होंने राजकीय इंटर कॉलेज के 101वीं वर्षगांठ समारोह में अपने मुख से बयां कीं। वह खुद राजकीय इंटर कॉलेज के ही पुरातन छात्र थे।
भले ही उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में उच्च मुकाम प्राप्त किया, उनके गीत और कविताओं में जीआइसी की पढ़ाई के दौरान सीखा शब्दकोष भी कहीं न कहीं शामिल है। उनके निधन की जानकारी के बाद यहां भी हर वर्ग आहत है और उनकी अंतिम पंक्तियों को याद कर रहा है।
गोपालदास नीरज जैसे व्यक्तित्व को भला कौन नहीं जो जानता। दुनिया में रूमानियत और श्रृंगार के गीतों से प्रसिद्ध महाकवि का एटा से भी अटूट रिश्ता रहा है। बचपन में उनके परिवार के हालात बेहतर नहीं थे। उनमें प्रतिभा शुरू से ही थी और पढ़ाई-लिखाई में भी मेधावी थे। घर के हालात ज्यादा ठीक न होने के कारण वह वर्ष 1938 में एटा के पटियाली गेट स्थित अपनी ननिहाल में आकर रहे। उसी साल शहर के राजकीय इंटर कॉलेज में उन्होंने कक्षा 6 में प्रवेश लिया। यह वही उम्र थी जब कोई भी विद्यार्थी जूनियर की शिक्षा की शुरूआत के साथ ही शब्दकोष को बढ़ाता है। जीआइसी में लगातार अध्ययनरत रहते हुए उन्होंने वर्ष 1942 में हाईस्कूल उत्तीर्ण किया। एटा में बिताए पांच सालों के साथ उनका राजकीय इंटर कॉलेज से भी जीवनभर का नाता जुड़ गया। वैसे तो वह आगे की पढ़ाई करते हुए लगातार ऊंचाइयों को छू गए, लेकिन कवि सम्मेलनों के मंच पर जब भी आने का मौका मिला वह आते रहे।
पहले काफी कम लोगों को जानकारी थी कि उनकी शिक्षा एटा में भी हुई है। वर्ष 2014 में राजकीय इंटर कॉलेज का 100वां स्थापना दिवस मनाया गया। संयोजकों द्वारा जब चमकते पुरातन छात्रों का रिकॉर्ड देखा तो गोपालदास नीरज सबसे पुरातन और चमकते सितारे के रूप में विद्यालय के पुरातन छात्र थे। उस समय भी वृद्धावस्था और रोगग्रस्त थे, लेकिन उन्होंने कार्यक्रम में सहभागिता की। इसके बाद दिसंबर 2015 में भी अंतिम बार कॉलेज के 101 वर्ष में प्रवेश पर आयोजित कार्यक्रम में शरीक हुए। उनके निधन की जानकारी ने सिर्फ जीआइसी के पुरातन छात्रों को ही स्तब्ध नहीं किया, बल्कि साहित्य जगत भी उनके व्यक्तित्व की कमी खलने की बात करते हुए दुखित हुआ है। जीआइसी के पुरातन छात्र व पर्यावरण विद् ज्ञानेंद्र रावत कहते हैं कि नीरज एटा में रहने के दौरान पटियाली गेट स्थित कुएं पर स्नान करते हुए गुनगुनाया करते थे- महामंत्र है यह कल्याणकारी जपाकर जपाकर हरिओम तत्सत। एटा उन्हें कभी नहीं भुला सकेगा। जीआइसी पुरातन छात्र समिति के संयोजक एआरएम संजीव यादव बताते हैं कि पढ़ाई-लिखाई के बाद वह कभी जीआइसी नहीं आए, लेकिन जब स्थापना समारोह का निमंत्रण देने पहुंचे तो उनके मुख पर जो खुशी और एटा से लगाव दिखा वह अब भी याद है। साहित्य जगत भी काफी आहत
----------
पदमविभूषण डा. नीरज के निधन से साहित्य जगत भी आहत हुआ है। शहर के कवि, साहित्यकार व बुद्धिजीवियों ने मां अंजना पब्लिक स्कूल में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की। जिसमें कवि एवं गीतकार डा. अरुण उपाध्याय ने कहा कि ¨हदी साहित्य के स्तंभ नीरज ऐसे सूर्य थे, जिनकी विलक्षण साहित्य प्रतिभा ने समूचे साहित्य जगत को आलोकित किया। साहित्य जगत को नई दिशा भी दी। अन्य कवियों ने भी श्रद्धांजलि देकर उनके निधन को अपूर्णनीय क्षति बताया, जिनमें डा. राकेश मधुकर, डा. राकेश सक्सेना, डा. जीके शर्मा, बलराम सरस, प्रशांत पाठक, नवनीत दुबे, विनय मिश्रा, अंशुमान उपाध्याय, अर्पित उपाध्याय, अनूप भावुक, डा. अंकुर मधुकर, शशिकिशोर सक्सेना, गोपाल संत आदि प्रमुख थे।