जानलेवा बना बुखार, डेंगू भी हावी
जागरण संवाददाता, एटा: जिले में तेज बुखार जानलेवा बनता जा रहा है। इससे पीड़ित एक बालिका की
जागरण संवाददाता, एटा: जिले में तेज बुखार जानलेवा बनता जा रहा है। इससे पीड़ित एक बालिका की मौत हो गई। वह दो दिन से बीमार थी। उधर, शहर के एक बालक और एक बालिका में डेंगू की पुष्टि की गई है।
निधौली कलां क्षेत्र के गांव कुढ़ा निवासी कालीचरन की 10 वर्षीय पुत्री अंजली की दो दिन से तबियत खराब थी। परिजनों ने गांव में ही किसी झोलाछाप से बुखार की दवा दिला दी। लेकिन अंजली की हालत में सुधार नहीं हुआ। सोमवार की सुबह उसकी स्थिति और ज्यादा बिगड़ गई। घबराए परिजन उसे लेकर शहर आए और एक निजी चिकित्सक के पास ले गए। लेकिन बालिका की गंभीर हालत देख डॉक्टर ने हाथ खड़े कर लिए। उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराने की राय दी। जिस पर परिजन बालिका को लेकर जिला अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड पहुंचे। यहां चिकित्सक परीक्षण कर अंजली को भर्ती भी नहीं कर पाए थे कि उसने दम तोड़ दिया।
उधर, सोमवार को जिला अस्पताल की पैथोलॉजी लैब में दो और डेंगू के मामले टे¨स्टग के दौरान पहचान में आए। शहर के मुहल्ला श्याम नगर निवासी 14 वर्षीय मुस्कान और मुहल्ला गढ़ी लवायन निवासी 11 वर्षीय अर्श की जांच में डेंगू पाया गया। परिजनों ने बताया कि तीन-चार दिनों से बच्चों को बुखार आ रहा था। अधिक परेशानी होने पर डॉक्टर को दिखाया। जिन्होंने लक्षणों के आधार पर डेंगू टेस्ट कराने के लिए कहा था। टेस्ट के बाद परिजन चिकित्सकों से राय और उपचार लेकर घर चले गए।
जिला अस्पताल में बढ़ी मरीजों की भीड़
दीपोत्सव के बाद सोमवार को जिला अस्पताल खुला तो सुबह से ही मरीजों की भीड़ पहुंचना शुरू हो गई। दिन भर बाह्य रोगी विभाग में मेले जैसा माहौल नजर आया। मरीजों की भीड़ के आगे अस्पताल की व्यवस्थाएं बौनी साबित हो रही थीं। पंजीकरण कराने के लिए ही मरीजों को एक-एक घंटे कतार में लगना पड़ा। इसके बाद डॉक्टरों को दिखाने के लिए भी यही हाल था। डॉक्टरों की कमी ने हालातों को और बिगाड़ दिया। दोपहर 12 बजे केवल एक फिजीशियन और एक आई सर्जन ही ओपीडी में मरीजों को देख रहे थे। अन्य चैंबर खाली पड़े थे। जिसके चलते मरीज इधर से उधर भटक रहे थे। जबकि फिजीशियन का परामर्श लेने के लिए उन्हें लंबी कतार में लगना पड़ रहा था। ओपीडी में 1900 मरीजों ने पंजीकरण कराया। जबकि तमाम पुराने पंजीकरण वाले मरीज भी उपचार के लिए पहुंचे। कुल मिलाकर मरीजों की संख्या ढाई हजार के आसपास रही। इनमें अधिकांश लोग बुखार और पाचन की गड़बड़ी से पीड़ित थे।