आस्था की डगर पर यूं ही कट जाता लंबा सफर
सावन के महीने में मध्य प्रदेश से भी कावडिए सोरों से गंगाजल लेने आए हैं। उनकी कुछ अलग परंपरा भी हैं। वे केवल सावन को ही जलाभिषेक के लिए महत्व नहीं देते।
जागरण संवाददाता, एटा : घुंघरू की खनक के साथ जमीन पर पड़ते पांव, सबकी जुबां पर एक ही जयकारा 'बम बम' भोले। रूट खाली कराते डाक
कांवड़िए, कंधों पर रखीं सतरंगी कांवड़ें लेकर आस्था की डगर पर मीलों लंबा सफर तय करने के लिए कांवड़िए निकल पड़े हैं। यह लंबी यात्रा आस्था की डगर पर यूं ही पूरी हो जाती है। इन दिनों खास तौर पर मध्य प्रदेश के कांवड़िए सोरों से गंगाजल लेकर निकल रहे हैं।
कांवड़ चढ़ाने की परंपरा तमाम स्थानों पर अलग-अलग है। जरूरी नहीं कि सिर्फ सोमवार के दिन ही कांवड़िए जलाभिषेक करें, बल्कि अलग-अलग दिनों में भी मध्य प्रदेश के कांवड़िए भगवान शिव पर गंगाजल चढ़ाते हैं।
इन दिनों शहर से होकर तमाम कांवड़िए गुजर रहे हैं। सोमवार अभी दूर है, फिर यह कांवड़िए इतनी जल्दी गंगाजल लेकर क्यों जा रहे हैं। दरअसल यह शिव भक्त मध्य प्रदेश के हैं और वहां यह परंपरा है कि जरूरी नहीं कि सोमवार को ही भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाए, बल्कि अलग-अलग दिनों में भी कांवड़ें चढ़ाई जाती हैं। मध्य प्रदेश के मुरैना जनपद के एक जत्थे में शामिल रघुवीर ¨सह ने बताया कि वे 36 कोस तक की यात्रा एटा तक कर चुके हैं और चौदस को अपने गांव कुटियाना में जाकर जलाभिषेक करेंगे। चौदस शुक्रवार की है। उन्होंने कहा कि पिछले 10 वर्षों से कांवड़ यात्रा हर वर्ष करते हैं। उनके गांव के दो दर्जन के लगभग लोग हर साल सोरों से गंगाजल भरकर लाते हैं और सोमवार को जलाभिषेक नहीं करते। पिछली बार दशमी पर जल चढ़ाया था, उससे पहले द्वादशी को भी जलाभिषेक किया।
मुरैना जिले के ही गांव एसहा निवासी रूपकिशोर बताते हैं कि उनके यहां भी यह परंपरा है कि मनौती वाले देवस्थानों पर बोली गई तिथि पर ही जलाभिषेक किया जाता है। यह परंपरा सिर्फ मुरैना जिला ही नहीं बल्कि भिंड समेत अन्य कई जनपदों में है। यही वजह है कि कम से कम चार-पांच दिन पहले कांवड़ें भरकर लानी होती हैं क्योंकि मीलों लंबा सफर है, मगर बम-बम भोले के जयकारे लगाते बस यूं ही कट जाता है।
कांवड़ के दो रूप
पैदल कांवड़ :भिंड के रहने वाले राजपाल ¨सह बताते हैं कि कांवड़ यात्रा दो तरह से होती है इनमें से एक पैदल कांवड़ है, जो अधिकतर व्यक्तिगत रूप से ही लाई जाती है। कई बार अपने साथी की असमर्थता के कारण उनके नाम से भी कुछ लोग कांवड़ लेकर आते हैं। इसमें कांवड़ यात्री को यह ध्यान रखना होता है कि जिस स्थल से उसे कांवड़ लेकर आनी है और जहां उसे भगवान शिव का जलाभिषेक करना है उसकी दूरी क्या है। उसी के अनुसार अपनी यात्री की योजना बनानी होती है। उसे अपने जलाभिषेक स्थल तक पहुंचना होता है। पैदल कांवड़ यात्री कुछ समय के लिये रास्ते में विश्राम भी कर सकते हैं।
डाक कांवड़ :
डाक कांवड़ बहुत तेजी से लाई जाने वाली कांवड़ है इसमें कांवड़ियों का एक समूह होता है जो रिले दौड़ की तरह दौड़ते हुए एक दूसरे को कांवड़ थमाते हुए जल प्राप्त करने के स्थल से जलाभिषेक के स्थल तक पहुंचता है। इसमें कांवड़ यात्रियों को रुकना नहीं होता और लगातार चलते रहना पड़ता है। जब एक थोड़ी थकावट महसूस करता है तो दूसरा कांवड़ को थाम कर आगे बढ़ने लगता है। कांवड़ एक सजी-धजी, भार में हल्की पालकी होती है जिसमें गंगाजल रखा होता है। हालांकि कुछ लोग पालकी को न उठाकर मात्र गंगाजल लेकर भी आ जाते हैं। मान्यता है कि जो जितनी कठिनता से जितने सच्चे मन से कांवड़ लेकर आता है उस पर भगवान शिव की कृपा उतनी ही अधिक होती है।
कहते हैं कांवड़िए
हम हर साल कांवर चढ़ाने जाते हैं। यात्रा शुरू करने से पहले भले ही कुछ कठिनाई महसूस करते हों, लेकिन सड़कों पर आते ही भगवान शिव हौसला बढ़ा देते हैं।
- मुकेश ¨सह
प्रशासन को कांवड़ियों के लिए अतिरिक्त व्यवस्थाएं करनी चाहिए, लेकिन हर बार दावे ही किए जाते हैं जो धरातल पर नहीं दिखाई देते।
- मानपाल ¨सह
भगवान शिव के प्रति आस्था हमारा हौसला बढ़ाती है। कांवड़ चढ़ाने से हमारी मनोकामना भी पूरी हुई है। अब तो बस शिवभक्ति ही अच्छी लगती है।
- मलिखान ¨सह
भगवान शिव बड़े ही भोले हैं और वे सब पर उपकार करते हैं। शिव को जिसने पूछा, समझो उसी का उद्धार हो गया। हर-हर, बम-बम में भी असीम शक्ति है।
- रन ¨सह