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नीरज के गीत, कविताओं में रहा एटा का शब्दकोश

अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए यह

By JagranEdited By: Published: Mon, 04 Jan 2021 03:19 AM (IST)Updated: Mon, 04 Jan 2021 03:19 AM (IST)
नीरज के गीत, कविताओं में रहा एटा का शब्दकोश
नीरज के गीत, कविताओं में रहा एटा का शब्दकोश

एटा, जागरण संवाददाता: अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए, जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए यह पंक्तियां पद्मविभूषण महाकवि डा. गोपालदास नीरज की एटा में अंतिम पंक्तियां थीं, जोकि 20 दिसंबर 2015 को उन्होंने राजकीय इंटर कालेज के 101 वीं वर्षगांठ समारोह में अपने मुख से बयां कीं। वह खुद राजकीय इंटर कालेज के ही पुरातन छात्र थे। वे भले ही अब नहीं है लेकिन एटा से उनका नाता जीवंत है।

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भले ही नीरजजी ने साहित्य के क्षेत्र में उच्च मुकाम प्राप्त किया, उनके गीत और कविताओं में जीआइसी में पढ़ाई के दौरान सीखा शब्दकोष भी कहीं न कहीं शामिल रहा। गोपालदास नीरज जैसे व्यक्तित्व को भला कौन नहीं जानता। दुनिया में रूमानियत और श्रृंगार के गीतों से प्रसिद्ध महाकवि का एटा से भी अटूट रिश्ता रहा है। बचपन में उनके परिवार के हालात बेहतर नहीं थे। उनमें प्रतिभा शुरू से ही थी और पढ़ाई-लिखाई में भी मेधावी थे। वह वर्ष 1938 में एटा के पटियाली गेट स्थित अपनी ननिहाल में आकर रहे। उसी साल शहर के राजकीय इंटर कालेज में उन्होंने कक्षा 6 में प्रवेश लिया। यह वही उम्र थी जब कोई भी विद्यार्थी जूनियर की शिक्षा की शुरुआत के साथ ही शब्दकोष को बढ़ाता है। जीआइसी में लगातार अध्ययनरत रहते हुए उन्होंने वर्ष 1942 में हाईस्कूल उत्तीर्ण किया।

एटा में बिताए पांच सालों के साथ उनका राजकीय इंटर कालेज से भी जीवनभर का नाता जुड़ गया। वैसे तो वह आगे की पढ़ाई करते हुए लगातार ऊंचाइयों को छू गए, लेकिन कवि सम्मेलनों के मंच पर जब भी आने का मौका मिला वह आते रहे। लोगों के जहन में 2015 के अंतिम माह जीआइसी में हुए कार्यक्रम में उनके द्वारा गायी गई पंक्तियां आज भी यादों को संजोए हैं।

उस समय भी वृद्धावस्था और रोगग्रस्त थे, लेकिन उन्होंने कार्यक्रम में सहभागिता की। जीआइसी के पुरातन छात्र व पर्यावरणविद् ज्ञानेंद्र रावत कहते हैं कि नीरज एटा में रहने के दौरान पटियाली गेट स्थित कुएं पर स्नान करते हुए गुनगुनाया करते थे- महामंत्र है यह कल्याणकारी जपाकर जपाकर हरिओम तत्सत। एटा उन्हें कभी नहीं भुला सकेगा। जीआइसी पुरातन छात्र समिति के संयोजक एआरएम संजीव यादव बताते हैं कि पढ़ाई-लिखाई के बाद वह कभी जीआइसी नहीं आए, लेकिन जब स्थापना समारोह का निमंत्रण देने पहुंचे तो उनके मुख पर जो खुशी और एटा से लगाव दिखा वह अब भी याद है।

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आज भी गुनगुनाते उनके गीत

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'' इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में, लगेंगी आपको सदियां हमें भुलाने में, न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में'' और '' कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे'' जैसे गीत आज भी जिले के कई लोग गुनगुनाते देखे जा सकते हैं।


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