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बूंद-बूंद पानी को मोहताज मुहल्ला न्यू रैवाड़ी

शहर के न्यू रैवाड़ी मुहल्ला की आबादी पानी को मोहताज है। नगर पालिका की जलापूर्ति वर्षों से ठप है। कई हैंडपंप भी जवाब दे चुके हैं। उनके सामने पानी जुटाने की चुनौती होती है। बढ़ती गर्मी के साथ गहरा रही पानी की समस्या पर कभी गंभीरता नही दिखाई जाती।

By JagranEdited By: Published: Mon, 08 Apr 2019 10:49 PM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2019 10:49 PM (IST)
बूंद-बूंद पानी को मोहताज मुहल्ला न्यू रैवाड़ी
बूंद-बूंद पानी को मोहताज मुहल्ला न्यू रैवाड़ी

एटा, जासं। शहर के न्यू रैवाड़ी मुहल्ला की आबादी पानी को मोहताज है। नगर पालिका की जलापूर्ति वर्षों से ठप है। कई हैंडपंप भी जवाब दे चुके हैं। आंख खुलते ही उनके सामने पानी जुटाने की चुनौती होती है। ऐसे में मुहल्लावासियों की दिनचर्या तो प्रभावित होती ही है। घरेलू कामकाज भी प्रभावित रहता है। बढ़ती गर्मी के साथ गहरा रही पानी की समस्या पर कभी गंभीरता नही दिखाई जाती।

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शहर के किदवई नगर से सटे इस क्षेत्र में तेजी से आबादी बढ़ी। यहां निवास करने वाले अधिकांश घर गरीब परिवारों के हैं, जिनके पास पानी के इंतजाम के नाम पर सबमर्सिबल तो बहुत दूर, निजी हैंडपंप तक नहीं हैं। कुछ वर्ष पहले तक पालिका की पाइप लाइन में पानी आता था। लेकिन अर्से से ये पाइप लाइनें पूरी तरह सूखी पड़ी हैं। जबकि कई इलाकों से लाइन ही गायब हो गईं है। पानी की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए न्यू रैवाड़ी मुहल्ला में पांच इंडियामार्का हैंडपंप लगाए गए थे, लेकिन वर्तमान में इनमें से चार पूरी तरह ठप हैं। एक हैंडपंप ही लोगों का सहारा है। इसमें भी पानी कम आ रहा है। ऐसे में लोगों को पानी की आपूर्ति के लिए लंबी दूरी तय कर दूसरे मुहल्ले से पानी भरना पड़ता है। कभी आसपास के संपन्न लोगों की मेहरबानी हो जाती है तो सबमर्सिबल से पानी भरने का मौका मिल जाता है। कहते हैं मुहल्लावासी

- जिनके पास पानी के निजी संसाधन हैं, उनके लिए कोई समस्या नहीं, लेकिन गरीब लोगों को पानी उपलब्ध नही हो रहा। अमित चौहान

- पानी की पाइप लाइन और खराब हैंडपंपों को लेकर अधिकारियों को शिकायतें की जा चुकी है। मगर आज तक ध्यान नही दिया। मुन्ना लाल

- पाइप लाइन में पानी देखे हुए अरसा बीत गया है। हर रोज हैंडपंपों से पानी ढोना दिनचर्या बन चुका है, हैंडपंप भी खराब हैं। मुन्नी देवी

- कुछ हैंडपंपों के हत्थे लोगों ने इसलिए निकाल दिए कि उनकी गाड़ियों को मुड़ने की जगह नहीं मिलती थी। जुवैदा बेगम


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