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अद्भुत है रुक्मिणी विवाह प्रसंग: वर्षा नागर

ाहर के रामचंद्र शुक्ल कालोनी में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के षष्टम दिन मंगलवार को प्रवचन करती हुई कथा वाचक वर्षा नागर ने कहा कि श्रीमद् भागवत का लेस मात्र भी जीवन में उतर जाय तो यह जीवन संवर जाय। श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह प्रसंग अछ्वुत और काफी रोचक है। यह कथा मनुष्य के लिए प्ररेणादायी है

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Nov 2018 11:34 PM (IST)Updated: Tue, 20 Nov 2018 11:34 PM (IST)
अद्भुत है रुक्मिणी विवाह प्रसंग: वर्षा नागर
अद्भुत है रुक्मिणी विवाह प्रसंग: वर्षा नागर

देवरिया : शहर के रामचंद्र शुक्ल कालोनी में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के षष्टम दिन मंगलवार को प्रवचन करती हुई कथा वाचक वर्षा नागर ने कहा कि श्रीमद् भागवत का लेस मात्र भी जीवन में उतर जाय तो यह जीवन संवर जाय। श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह प्रसंग अछ्वुत और काफी रोचक है। यह कथा मनुष्य के लिए प्ररेणादायी है।

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उन्होंने कहा कि भक्ति के लिए हमारे अंदर सबसे पहले श्रद्धा का भाव होना चाहिए। यह भाव तब आयेगा जब परमात्मा के चरणों में हमारा अनुराग होगा। महाराजा भिष्मक के चार पुत्र और एक पुत्री थी। बड़े पुत्र का नाम रुक्मीण और पुत्री का नाम रुक्मिणी था। भगवान श्री कृष्ण के सौंदर्य और पराक्रम की बात सुनी तो वह श्री कृष्ण पर मुग्ध हो गई। वह मन ही मन में श्री कृष्ण से शादी करने का संकल्प ले लिया, परंतु उसके बड़े भाई रूक्मी उसका विवाह शिशुपाल से करना चाहते थे। उसने एक ब्राह्मण के हाथ में एक पत्र देकर श्री कृष्ण के पास भेजा। श्री कृष्ण ने पत्र को पढ़ा और ब्राह्मण द्वारा संदेश भेज दिया कि देवी के पूजा के समय मैं उसका हरण कर लूंगा, लेकिन चंदी नरेश शिशुपाल भी यह जानता था कि श्री कृष्ण और बलराम ऐसे समय में छल करके हरण कर सकते हैं। इसलिए शिशुपाल भी अपने बरात में शाल्ब, जरासंध, दंतवक्स, विदुरथ और पौंड्रक जैसे सहस्त्र राजाओं को लाया था, जो श्री कृष्ण के शत्रु थे और ये सभी इसी आस-पास से आए थे कि यदि श्री कृष्ण और बलराम जोर लगाएंगे तो ये शिशुपाल के मित्र भी पीछे नहीं रहेंगे। उधर बलराम को जब पता चला कि श्री कृष्ण अकेले ही रुक्मिणी लेने चला गया है तो वह भी चतुरंगनी सेना लेकर विदर्भ की ओर प्रस्थान कर गए। उधर विवाह की सारी तैयारियां पूरी हो चुकी है। रुक्मिणी श्री कृष्ण का बाट जोह रही थी इसी बीच ब्राह्मण देवता ने रुक्मिणी को खबर किया कि श्री कृष्ण पहुंच चुके हैं। राजा भीष्मक यह जानकर कि श्री कृष्ण और बलराम मेरी पुत्री की शादी देखने आए हैं तो उनका आव भगत किया और बड़े प्रेम से विश्राम की व्यवस्था करायी।

यहां मुख्य रूप से हृदय नारायण जायसवाल, चंद्रभूषण शुक्ल, मकसूदन, बलराम मणि, सूर्य देव त्रिपाठी, शंभू श्रीवास्तव, पंकज वर्मा, पूनम, नुपुर श्रीवास्तव, विद्यावती, शोभा, नीरज, मिथिलेश, अजय, वशिष्ठ त्रिपाठी, ओम प्रकाश त्रिपाठी, सुशील चंद्र श्रीवास्तव, अजय शुक्ल, संतोष मिश्र, देवकीनंदन वर्मा आदि मौजूद रहे।


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