अंग्रेजी मस्तिष्क से भारतीय संस्कृति का चितन ठीक नहीं
जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि भारतीय संस्कृति का चितन कभी अंग्रेजों के मस्तिष्क से नहीं करना चाहिए। इसके लिए मस्तिष्क भी भारतीय होना चाहिए।
देवरिया: जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि भारतीय संस्कृति का चितन कभी अंग्रेजों के मस्तिष्क से नहीं करना चाहिए। इसके लिए मस्तिष्क भी भारतीय होना चाहिए।
वह भटनी क्षेत्र के जय मां दुर्गा सेवा न्यास जिगिना मिश्र की तरफ से आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के पहले दिन सोमवार को कथा का रसपान करा रहे थे। उन्होंने कहा कि
बहुत सारे साधुओं को अंग्रेजी बोलने की हवस हो गई है। कहते हैं कि हम अंग्रेजी बोलेंगे, अंग्रेजी पढ़ेंगे। हम उन्हें मना नहीं कर रहे हैं कि अंग्रेजी मत बोलो, मत पढ़ो। भारत में जन्मा हुआ संत अंग्रेजी जाने या ना जाने, लेकिन उसको संस्कृत जानना होगा। संस्कृत नहीं जानते हो तो देश परिवेश का अपमान होगा। पाणिनी अंग्रेजी नहीं जानते थे, लेकिन विदेशों में भी लोग उनकी प्रतिभा का लोहा मानते हैं। विदेश में कोई ऐसी यूनिवर्सिटी नहीं जहां उनको नहीं पढ़ाया जाता हो। जगतगुरु के सिंहासन पर अगर हम हैं तो संस्कृत जानना पड़ेगा। यदि हम संस्कृत नहीं जानते तो भारतीय संस्कृति के साथ विश्वासघात कर रहे हैं। जगतगुरु रामभद्राचार्य जी ने कहा कि भागवत वांगमय पंचामृत है। भगवान ने पांच बार भागवत कहा। सत्रह पुराण लिखने के बाद वेदव्यास ने नारद के कहने पर भागवत लिखा। भारतीय अन्य ग्रंथों का महात्म्य लिखने के बाद कहा जाता है। वहीं भागवत का महात्म्य लिखने के पहले कह दिया गया। भागवत की महत्ता का वर्णन सुनकर श्रोताओं की तालियों से पंडाल गूंज उठा। इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ विधायक कमलेश शुक्ला ने दीप जलाकर किया। संचालन शिवाकांत मिश्र व सुधाकर मिश्र ने संयुक्त रूप से किया। जिलाधिकारी अमित किशोर, एसपी डा.श्रीपति मिश्र, आंजनेय दास मकसूदनाचार्य, अध्यक्ष गौतम मिश्र, उमेश नाथ तिवारी, पवन मिश्र, रवि प्रकाश मिश्र, कमलेश मिश्र, कृष्णाकांत मिश्र, डा.संजीव शुक्ला आदि मौजूद रहे।