गोरखपुर में मकान बनवाने का शहीद का सपना रह गया अधूरा
शहीद विजय कुमार का गोरखपुर में मकान बनवाकर रहने का सपना था, इसे पूरा करने के लिए जनवरी माह में बैंक से कर्ज लेकर जमीन का बैनामा गोरखपुर में कराए और अगली बार छुट्टी में आने पर मकान का निर्माण कराने का पत्नी से वादा कर घर से गए थे, लेकिन इस सपना को पूरा करने के पहले ही वे देश की रक्षा करते हुए दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिए
देवरिया : शहीद विजय कुमार का गोरखपुर में मकान बनवाकर रहने का सपना था, इसे पूरा करने के लिए जनवरी माह में बैंक से कर्ज लेकर जमीन का बैनामा गोरखपुर में कराए और अगली बार छुट्टी में आने पर मकान का निर्माण कराने का पत्नी से वादा कर घर से गए थे, लेकिन इस सपना को पूरा करने के पहले ही वे देश की रक्षा करते हुए दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिए।
रामायण के तीन पुत्रों में सबसे बड़े अशोक कुमार अपने परिवार के साथ गुजरात में रहते हैं, जबकि सबसे छोटे शहीद विजय कुमार अपने परिवार के साथ ही दूसरे नंबर के भाई की विधवा पत्नी व भतीजी की भी देखरेख करते थे। शहीद विजय कुमार की पत्नी विजय लक्ष्मी का कहना है कि ज्यादा जमीन भी नहीं है। मेरी बेटी की तबीयत खराब होने के चलते मैं अपने भाई के साथ देवरिया में किराए के मकान में रहती हूं। मेरे पति का सपना गोरखपुर में मकान बनवाकर हम लोगों को रखने का था, ताकि बेटी को अच्छी शिक्षा मिल सके और वह डाक्टर बन सके। इसलिए उन्होंने बैंक से कर्ज लिया और जनवरी माह में गोरखपुर में जमीन खरीदी। ड्यूटी पर जाते समय उन्होंने मुझसे वादा किया था कि अगली बार छुट्टी पर आएंगे तो गोरखपुर में मकान बनाएंगे, ताकि बेटी को अच्छी शिक्षा मिल सके। उनका सपना पूरा नहीं हो सका। अब मेरे पास बेटी के अलावा कोई नहीं है। इतना कहते ही वह फफक पड़ी।