बेटों को मात देती बेटी, कामयाबी ऐसी पदक भी पड़े छोटे
वह बेटी नहीं फौलाद है। वह बिजली की तरह प्रतिद्वंदी पर टूटती है तो उसे धूल चटा कर ही मानती है। स्टेडियम में उसका अभ्यास देख लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। उसके कामयाबी की फेहरिस्त ऐसी है कि पदक छोटे पड़ गए हैं। जी हां बात हो रही है देवरिया नामनाथ निवासी ताइक्वांडो खिलाड़ी प्रियंका कुमारी है
देवरिया : वह बेटी नहीं फौलाद है। वह बिजली की तरह प्रतिद्वंदी पर टूटती है तो उसे धूल चटा कर ही मानती है। स्टेडियम में उसका अभ्यास देख लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। उसके कामयाबी की फेहरिस्त ऐसी है कि पदक छोटे पड़ गए हैं। जी हां बात हो रही है देवरिया नामनाथ निवासी ताइक्वांडो खिलाड़ी प्रियंका कुमारी है। वह शहर के क¨लद बिहार इंटरमीडिएट कालेज में कक्षा बारह की छात्रा है। स्टेडियम में उसने अभ्यास शुरू किया और लगातार सफलता के झंडे गाड़ रही है। स्टेडियम में वह अन्य ताइक्वांडो खिलाड़ियों के लिए प्रेरणाश्रोत बन गई है। घर की माली हालत ठीक नहीं होने के बाद भी वह अपने लक्ष्य से भटकी नहीं और लगातार आगे बढ़ रहीं है। वह बैंकाक में 26 से 29 अक्टूबर 2018 को आयोजित 8 वां तिराक इंटरनेशनल ताइक्वांडो चैंपियनशिप में गोल्ड जीतकर देवरिया का नाम पूरी दुनिया में रोशन की है। वह अब तक ताइक्वांडो स्टेट चैंपियनशिप में सात स्वर्ण पदक व नेशनल में एक सिल्वर मेडल अपने नाम की चुकी है।
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ऐसे मिली ताइक्वांडो सीखने की प्रेरणा
प्रियंका के पिता श्रवण कुमार यूनियन बैंक में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं। वह कक्षा चार में पढ़ने के दौरान ही स्टेडियम में विद्यालय की तरफ से स्टेडियम में फुटबाल खेलने के लिए जाती थी। ऐसे में वहां उसके अंदर ताइक्वांडो की प्रतिभा पहचान कोच ने उसे ताइक्वांडो सीखने की सलाह दी। यह बात वह अपने घर में बताई तो उसके पिता ने उसे ताइक्वांडो का प्रशिक्षण लेने की अनुमति देने के साथ ही पूरा सहयोग किया। वह स्टेडियम में कोच गिरीश ¨सह की देखरेख में अभ्यास करने लगी। स्कूली प्रतियोगिताओं से शुरू हुआ पदक जीतने का सिलसिला अब नेशनल तक पहुंच गया है। प्रियंका विश्व चै¨पयनशिप में हिस्सा लेकर देश के लिए स्वर्ण पदक जीतना चाहती है। उसका कहना है ताइक्वांडो लड़कियों के लिए सबसे बेहतर खेल है। यह आत्मरक्षा का सबसे बड़ा हथियार तो है ही इसमें शानदार कैरियर भी है। लड़कियों को खेले के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। अभी भी तमाम जागरूकता के बाद भी गांवों में लड़कियों को चूल्हा, चौका तक ही सीमित रखा जाता है, यह ठीक नहीं हैं। आज बेटियां किसी भी मामले में बेटों से कम नहीं हैं।
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स्टेट गेम्स में जीता सात स्वर्ण पदक, नेशनल गेम्स में सिल्वर
उसने वर्ष 2013 में ताइक्वांडो को अपनाया तो उसमें रम गई। प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया तो लगातार गोल्ड अपने नाम करने लगी। वह स्टेट प्रतियोगिताओं में वर्ष 2013 में बलरामपुर में 60 वां स्कूली स्टेट गेम्स में गोल्ड, वर्ष 2014 में लखनऊ में प्रथम कैडेट स्टेट प्रतियोगिता में गोल्ड व 2015 में ही लखनऊ में ही द्वितीय कैडेट स्टेट प्रतियोगिता में गोल्ड, 2016 में बिजनौर में द्वितीय ओपेन कैडेट स्टेट प्रतियोगिता में गोल्ड, वर्ष 2017 आइआइटी कानपुर में तृतीय कैडेट स्टेट प्रतियोगिता में गोल्ड, वर्ष 2017 में ही अलीगढ़ में द्वितीय कैडेट स्टेट प्रतियोगिता में गोल्ड, बिजनौर में वर्ष 2018 में 37 वां जूनियर स्टेट चैंपियनशिप में गोल्ड हासिल की। इसके अलावा वह नेशनल गेम में वर्ष 2013 में राजनंदगोन छत्तीसगढ़ के 60 वां नेशनल स्कूल गेम्स में, वर्ष 2014 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में प्रथम कैडेट नेशनल गेम्स में, वर्ष 2015 में हरियाणा के रोहतक में द्वितीय कैडेट नेशनल गेम्स में, इसी वर्ष महाराष्ट्र में, वर्ष 2016 में तेलंगाना में 62वां नेशनल स्कूली गेम्स प्रतियोगिता में प्रतिभाग की और उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। वर्ष 2017 में आगरा तृतीय कैडेट नेशनल ताइक्वांडो चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल हासिल की। 26 से 29 अक्टूबर 2018 को बैंकाक में आयोजित 8 वां तिराक इंटरनेशनल ताइक्वांडो चैंपियनशिप में गोल्ड जीतकर देवरिया का नाम पूरी दुनिया में रोशन की है। प्रियंका ने श्रीलंका की खिलाड़ी को धूल चटा कर गोल्ड अपने नाम किया।
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